नयी दिल्ली : गौकशी का इस्तेमाल धर्मनिरपेक्ष राजनीति के लिए प्रोटीन की तरह करने का आरोप लगाते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र ‘ऑर्गेनाइजर’ ने कहा है कि ऐसे लोग दादरी की घटना का इस्तेमाल हिंदू आस्थाओं पर कुठाराघात करने में कर रहे हैं, जिसमें हुई हत्या ‘कोई अभूतपूर्व घटना’ नहीं थी. गोधरा में सिखों और कारसेवकों के मारे जाने की घटना का उल्लेख करते हुए पत्र ने दादरी की घटना का विरोध करने वालों पर सवाल खडे किये हैं और पूछा है कि उन घटनाओं से तब उनकी अंतरात्मा क्यों नहीं जागी.
‘ऑर्गेनाइजर’ में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक, ‘‘एक बात समझ नहीं आती कि गायों और बछडों के वध पर पाबंदी से लोगों को प्रोटीन का सस्ता स्रोत मिलना कैसे बंद हो जाएगा. क्या संविधान निर्माता प्रोटीन को लेकर मौजूदा उदारवादी लोगों से कम जागरक थे जिन उदारवादी लोगों ने हाल ही में हिंदू भावनाओं के मामले में लंबी-चौडी दिलचस्पी दिखाई है.’ इसमें दादरी में गौमांस खाने की अफवाह के बाद कथित तौर पर पीट-पीटकर एक व्यक्ति की हत्या किये जाने की घटना के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों पर निशाना साधते हुए लिखा गया है, ‘‘गौमांस प्रोटीन का सस्ता स्रोत नहीं है.’ लेख के अनुसार, ‘‘प्रत्येक हत्या दुर्भाग्यपूर्ण होती है और क्रूर होती है. और ऐसे में कानून प्रवर्तन एजेंसियों को सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। लेकिन दादरी के मामले में अलग यह है कि मीडिया और स्वघोषित धर्मनिरपेक्ष तथा उदारवादी लोग इसका इस्तेमाल हिंदू भावनाओं को कठघरे में खडा करने के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं.’
ऑर्गेनाइजर में प्रकाशित एक और लेख के मुताबिक, ‘‘दादरी की घटना कोई अभूतपूर्व या ऐसी घटना नहीं है जो स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहले नहीं सुनी गयी हो. ऐसा ही कलबुर्गी की हत्या के मामले में है. इन दो घटनाओं से दो दर्जन जानेमाने साहित्यिक लोगों की अंतरात्मा इतनी तेजी से जाग गयी कि उन्होंने विरोध में अपने सम्मान लौटा दिये.’
भारतीय मुसलमानों की तुलना इराक के मुसलमानों से करने के संबंध में सपा नेता आजम खान पर निशाना साधते हुए लेख में लिखा गया है, ‘‘एक धर्मनिरपेक्ष संगठन के धर्मनिरपेक्ष नेता आजम खान ने भारत में मुसलमानों के हालात की तुलना इराक से की। दादरी और बाबरी के बीच तुकांत समानता होने से उन्हें शायराना अंदाज में इन घटनाओं के प्रभाव पर चिंता जताने का मौका मिल गया. आजम खान अतीत में आतंकवादी गतिविधियों को सही ठहरा चुके हैं.’ इसमें जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के इस बयान पर सवाल पूछा गया है कि इस्लाम में सूअर का मांस खाना निषेध है लेकिन वह सूअर का मांस खाने पर किसी को मारेंगे नहीं.
इस पर ऑर्गेनाइजर के लेख में कहा गया है, ‘‘क्या वह (उमर) यह कहना चाहते हैं कि उनके लिए सुअर उतने ही पवित्र हैं जितने हिंदुओं के लिए गाय हैं.’ दादरी की घटना के मामले में जांच की मांग करते हुए लेख में कहा गया, ‘‘उदारवादी लोगों की भारत को लेकर वास्तविक सोच क्या है? क्या यह भारत का विचार है जहां सार्वजनिक रुप से गौवध किया जाए, नियमित रुप से गौमांस उत्सव मनाये जाएं, महिसासुर दिवस मनाया जाए.’ लेख के मुताबिक, ‘‘क्या उदार भारत की उनकी सोच यही है, जहां याकूब मेमन जैसे आतंकवादी को दफन किये जाने पर सैकडों लोग पहुंचे और अफजल गुरु के समर्थन में राजधानी के बीचोंबीच किताबें बेची जाएं?’ पत्र के एक और लेख के मुताबिक सम्मान लौटाने वाले लेखक और प्रदर्शनकारी दुनियाभर में भारत की छवि खराब करने में संकोच नहीं कर रहे.