राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री पद के लिए प्रणव की बजाय चंद्रशेखर का किया था समर्थन
नयी दिल्ली : वर्ष 1990 में वी पी सिंह सरकार के पतन के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन चाहते थे कि प्रणव मुखर्जी प्रधानमंत्री बनें लेकिन राजीव गांधी कुछ और ही सोच रहे थे. यह दावा कांग्रेस के वयोवृद्ध नेता और गांधी परिवार के वफादार रहे एम एल फोतेदार की किताब ‘द चिनार लीव्ज’ में […]
नयी दिल्ली : वर्ष 1990 में वी पी सिंह सरकार के पतन के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन चाहते थे कि प्रणव मुखर्जी प्रधानमंत्री बनें लेकिन राजीव गांधी कुछ और ही सोच रहे थे. यह दावा कांग्रेस के वयोवृद्ध नेता और गांधी परिवार के वफादार रहे एम एल फोतेदार की किताब ‘द चिनार लीव्ज’ में किया गया है. किताब में फोतेदार ने लिखा है कि 1990 में जब वी पी सिंह के इस्तीफे के संदर्भ में राजनीतिक स्थिति पर विचारविमर्श करने के लिए उन्होंने राष्ट्रपति वेंकटरमन से मुलाकात की तो राष्ट्रपति ने जोर देते हुए उनसे कहा कि राजीव को मुखर्जी का समर्थन करना चाहिए. फोतेदार ने लिखा है ‘मैंने राष्ट्रपति वेंकटरमन से मुलाकात की और राजनीतिक स्थिति पर उनके साथ चर्चा की. मैंने उन्हें बताया कि वर्तमान हालात में केवल कांग्रेस पार्टी ही समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चल सकती है और एक मजबूत तथा स्थिर सरकार दे सकती है.’
आगे उन्होंने लिखा है ‘मैंने उनसे आग्रह किया कि वह अगली सरकार का नेतृत्व करने के लिए राजीव को आमंत्रित करें क्योंकि राजीव लोकसभा में अकेले सबसे बडे दल के नेता थे. इस पर राष्ट्रपति ने मुझे जोर देते हुए कहा कि मुझे राजीव गांधी को यह बताना चाहिए कि अगर वह प्रधानमंत्री पद के लिए प्रणब मुखर्जी का समर्थन करते हैं तो वह (राष्ट्रपति) उसी शाम उन्हें पद की शपथ दिलाएंगे.’ हार्पर कॉलिन्स द्वारा प्रकाशित यह किताब शीघ्र ही बाजार में आने वाली है. किताब में बताया गया है कि जब तक राजीव गांधी को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाने का विचार इंदिरा गांधी के दिमाग में नहीं आया था तब तक वह सोचती थीं कि मुखर्जी, पी वी नरसिंह राव और वेंकटरमन उनके बाद कांग्रेस पार्टी की बागडोर संभाल सकते हैं.
फोतेदार इन दिनों कांग्रेस कार्यकारिणी समिति के सदस्य हैं. उन्होंने किताब में लिखा है कि तत्कालीन राष्ट्रपति वेंकटरमन की प्रधानमंत्री पद के लिए निजी पसंद ने उन्हें हैरत में डाल दिया. आश्चर्य से उबरते हुए फोतेदार ने राष्ट्रपति से पूछा ‘महोदय, यह कैसे किया जा सकता है.’ यह सुन कर राष्ट्रपति ने एक बार फिर पूरे अधिकार के साथ कहा कि उन्हें राजीव को उनकी पसंद के बारे में सूचित करना चाहिए. किताब में फोतदार ने लिखा है ‘उन्होंने (राष्ट्रपति वेंकटरमन) एक बार फिर पूरा जोर देते हुए कहा कि मुझे यह पता होना चाहिए कि राष्ट्रपति के पास प्रधानमंत्री को नियुक्त करने का अधिकार होता है. उन्होंने मुझे राजीव को यह बताने के लिए कहा कि जब वह दिन में राष्ट्रपति से मुलाकात करें तो उन्हें सीधे अपनी प्रतिक्रिया दें.
उन्होंने चंद्रशेखर का चयन करने के खिलाफ सावधान किया और उनके खिलाफ कुछ प्रतिकूल टिप्पणियां कीं.’ उन्होंने लिखा है ‘मैं वापस आया और राजीव जी को घटनाक्रम से अवगत कराया. वह भी वेंकटरमन के रुख से हैरत में थे. कांग्रेस पार्टी के पास बहुत अधिक विकल्प नहीं बचे थे और आखिरकार राजीव ने बाहर से चंद्रशेखर को समर्थन देने का विवादास्पद फैसला कर ही लिया.’ फोतेदार के अनुसार, करीब एक दशक से देश का प्रधानमंत्री बनने का इंतजार कर रहे पूर्व ‘युवा तुर्क’ चंद्रशेखर ने ‘इस मौके को लपक लिया और सत्ता की कमान अपने हाथों में ले ली.’ किताब में यह भी कहा गया है कि कांग्रेस ने राष्ट्रपति पद के लिए ममता बनर्जी द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नाम सुझाये जाने के बीच उलझन और शर्मिन्दगी की स्थिति से बचने के लिए किस तरह आम सहमति से मुखर्जी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया.
इंदिरा गांधी के पूर्व सहायक फोतेदार ने किताब में बताया है कि प्रधानमंत्री पद की महत्वाकांक्षा पालने वाले माधवराव सिंधिया ने वर्ष 1999 में एक वोट से वाजपेयी सरकार के गिरने के बाद कांग्रेस नीत गठबंधन सरकार को समर्थन देने के बारे में मुलायम सिंह यादव की राय बदलने के लिए किस तरह अमर सिंह का उपयोग किया था. वाजपेयी सरकार के गिरने के बाद प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर सोनिया द्वारा मनमोहन सिंह का नाम लिए जाने के बारे में फोतेदार ने किताब में लिखा है ‘पार्टी में कई लोगों को जब पता चला कि सोनिया जी की पहली पसंद डॉ सिंह हैं तो कुछ लोगों की त्यौरियां तन गईं और प्रधानमंत्री पद की महत्वाकांक्षा रखने वाले माधव राव सिंधिया ने कांग्रेस नीत गठबंधन सरकार को समर्थन देने के बारे में मुलायम सिंह यादव की सोच बदलने के लिए अपने मित्र अमर सिंह का उपयोग किया.’
उन्होंने लिखा है ‘सोनिया जी तब चुनावी राजनीति में नहीं थीं. उन्होंने राष्ट्रपति से मुलाकात कर दावा किया कि उनकी पार्टी के पास 272 लोकसभा सदस्यों का समर्थन है. राष्ट्रपति से उनकी मुलाकात के ठीक पहले एक दिलचस्प वाकया हुआ.’ आगे फोतेदार ने लिखा है ‘सोनिया जी जो मूल पत्र राष्ट्रपति को सौंपना चाहती थीं उसमें संकेत दिया गया था कि डॉ मनमोहन सिंह पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे. हालांकि मैंने उन्हें सिंह का नाम हटाने की सलाह दी और गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने के वास्ते पार्टी को बुलाए जाने पर जोर देने को कहा. इस तर्क को सोनिया जी ने सराहा और वह किया जिसकी जरुरत थी.’
प्रधानमंत्री पद के लिए चुने गये सिख कांग्रेसी मनमोहन सिंह के बारे में फोतेदार ने कहा कि इस पसंद से सोनिया गांधी की ‘चतुर राजनतिक सोच’ का पता चला क्योंकि सिंह का कोई राजनीतिक आधार नहीं था और वह उनके नेतृत्व के लिए कभी खतरा नहीं बन सकते थे. साथ ही वह सिख समुदाय से संबद्ध थे जो ऑपरेशन ब्लूस्टार और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए दंगों के कारण गांधी परिवार से अत्यधिक रुष्ट था. उन्होंने कहा ‘यह अपने बच्चों की सुरक्षा की खातिर शांति बनाने के लिए सोनिया जी का तरीका था.’ इंदिरा गांधी के पूर्व राजनीतिक सचिव फोतेदार केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं. वह कांग्रेस कार्यकारिणी समिति के वरिष्ठ सदस्य हैं.