राष्ट्रविरोधियों का नहीं, बुद्धिजीवियों का केंद्र है जेएनयू : कुलपति

नयी दिल्ली: जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) में ‘‘राष्ट्रविरोधी तत्व होने” संबंधी आरएसएस की टिप्पणी की निंदा करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति ने आज कहा कि यह उस संस्थान की छवि को खराब करने का प्रयास है जिसने राष्ट्र निर्माण में खासा योगदान दिया है. कुलपति एस के सोपोरी ने कहा कि आरएसएस द्वारा खराब तरीके […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 4, 2015 9:36 PM
नयी दिल्ली: जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) में ‘‘राष्ट्रविरोधी तत्व होने” संबंधी आरएसएस की टिप्पणी की निंदा करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति ने आज कहा कि यह उस संस्थान की छवि को खराब करने का प्रयास है जिसने राष्ट्र निर्माण में खासा योगदान दिया है.
कुलपति एस के सोपोरी ने कहा कि आरएसएस द्वारा खराब तरीके से टिप्पणी की गयी है. हमने राष्ट्र निर्माण में खासा योगदान दिया है. सांसदों से लेकर कैबिनेट सचिवों से लेकर राजदूतों तक जेएनयू बुद्धिजीवियों का केंद्र रहा है न कि राष्ट्रविरोधियों का.
उन्होंने जोर देते हुए कहा, ‘‘यहां के छात्र और शोधार्थी सत्ता विरोधी हो सकते हैं और इसमें कोई गलती भी नहीं है लेकिन निश्चित रुप से यहां राष्ट्रविरोधी गतिविधि को बढावा नहीं दिया जाता। आरएसएस की टिप्पणी छवि खराब करने का प्रयास है.” आरएसएस के मुखपत्र पांचजन्य में आरोप लगाया गया था कि जेएनयू राष्ट्रविरोधी तत्वों का एक केंद्र है. विभिन्न दलों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। कांग्रेस ने कहा कि विश्वविद्यालय को पत्रिका के खिलाफ मुकदमा करना चाहिए. माकपा ने संस्थान के खिलाफ ‘‘आपत्तिजनक भाषा” के इस्तेमाल की निंदा करते हुए कहा कि जेएनयू की न सिर्फ भारत बल्कि विदेशों में भी अच्छी प्रतिष्ठा है.
पांचजन्य में प्रकाशित एक आलेख में आरोप लगाया गया है कि ‘‘जेएनयू नियमित रुप से राष्ट्रविरोधी गतिविधियों की मेजबानी करता है.” इसमें यह दावा किया गया है कि 2010 में दंतेवाडा में हमले में सीआरपीएफ के 75 जवानों की मौत पर जेएनयू के नक्सल समर्थक छात्र संघ ने खुलेआम जश्न मनाया था.
आरएसएस पर हमला बोलते हुए जेएनयू स्टूडेंट्स यूनियन ने कहा कि हम जेएनयू के छात्रों के खिलाफ आरएसएस की इस अत्यंत प्रतिगामी टिप्पणी की निंदा करते हैं जेएनयू का संयोजन हमारे समाज के चरित्र को परिलक्षित करता है और यहां समाज के पिछडे और हाशिये पर रहने वाले वर्गोे की महिलाओंं और छात्रों को समुचित प्रतिनिधित्व मिलाता है. यह आरएसएस की भारतीय समाज की परिकल्पना अर्थात् ‘हिन्दू राष्ट्र’ की परिकल्पना के खिलाफ है.

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