नयी दिल्ली : ‘असहिष्णुता’ पर छिड़ी बहस की पृष्ठभूमि में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने आज कहा कि असहमति की अभिव्यक्ति चर्चा के जरिए होनी चाहिए और भावनाओं में बहकर चर्चा करने से तर्क नष्ट हो जाता है. समाज में कुछ घटनाओं से ‘‘संवेदनशील लोगों ‘ के कई बार व्यथित हो जाने को रेखांकित करते हुए राष्ट्रपति ने इस प्रकार की घटनाओं पर चिंता का इजहार करने में ‘‘संतुलन’ बरते जाने की वकालत की.
राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर यहां प्रेस कौंसिल आफ इंडिया द्वारा आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘ समाज में कुछ घटनाओं से संवेदनशील लोग कई बार व्यथित हो जाते हैं. लेकिन इस प्रकार की घटनाओं पर चिंता का इजहार संतुलित होना चाहिए. तर्को पर भावनाएं हावी नहीं होनी चाहिए और असहमति की अभिव्यक्ति बहस और विचार विमर्श के जरिए होनी चाहिए. विचार की अभिव्यक्ति के माध्यम के तौर पर कार्टून और रेखाचित्र का प्रभाव’ विषय पर अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा, ‘‘ एक गौरवान्वित भारतीय के तौर पर , हमारा संविधान में उल्लिखित भारत के विचार, मूल्यों तथा सिद्धांतों में भरोसा होना चाहिए. जब भी ऐसी कोई जरुरत पड़ी है , भारत हमेशा खुद को सही करने में सक्षम रहा है.’
हालांकि राष्ट्रपति ने किसी खास घटना का जिक्र नहीं किया लेकिन कुछ ऐसे मामलों की पृष्ठभूमि में उनकी टिप्पणियां महत्व रखती हैं जिन्हें ‘असहिष्णुता’ के बिंब के रुप में देखा गया है. समारोह में राष्ट्रपति ने महान कार्टूनिस्ट आर. के. लक्ष्मण और राजेन्द्र पुरी को श्रद्धांजलि दी. उन्होंने जवाहर लाल नेहरु का भी जिक्र किया और कहा कि वह बार बार कार्टूनिस्ट वी. शंकर से कहते थे कि उन्हेंभी पीछे मत छोड़ देना. मुखर्जी ने कहा, ‘‘ यह खुली सोच और वास्तविक आलोचना की सराहना हमारे महान राष्ट्र की प्रिय परंपराओं में से एक हैं जिन्हें हमें हर हाल में संरक्षित और मजबूत करना चाहिए.
राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि भारत में प्रेस की आजादी अभिव्यक्ति की आजादी का हिस्सा है जिसकी गारंटी संविधान में मौलिक अधिकार के रुप में दी गयी है. उन्होंने कहा कि एक लोकतंत्र में समय समय पर विभिन्न चुनौतियां उभरती हैं और उनका समाधान सामूहिक रुप से किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘‘ हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कानून की मूल भावना एक जीवंत सचाई बनी रहे.’ इस समारोह को संबोधित करते हुए मुखर्जी ने कहा कि देश में समाचारपत्रों और एजेंसियों के विकास की जडें हमारे स्वतंत्रता संग्राम में रही हैं. समारोह में सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन राठौड़ तथा पीसीआई अध्यक्ष न्यायमूर्ति सेवानिवृत्त सी. के. प्रसाद भी मौजूद थे.
राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि भारत में प्रेस की आजादी अभिव्यक्ति की आजादी का हिस्सा है जिसकी गारंटी संविधान में मौलिक अधिकार के रुप में दी गयी है. उन्होंने कहा कि एक लोकतंत्र में समय समय पर विभिन्न चुनौतियां उभरती हैं और उनका समाधान सामूहिक रुप से किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘‘ हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कानून की मूल भावना एक जीवंत सचाई बनी रहे.’ इस समारोह को संबोधित करते हुए मुखर्जी ने कहा कि देश में समाचारपत्रों और एजेंसियों के विकास की जडें हमारे स्वतंत्रता संग्राम में रही हैं. समारोह में सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन राठौड़ तथा पीसीआई अध्यक्ष न्यायमूर्ति सेवानिवृत्त सी. के. प्रसाद भी मौजूद थे.
राठौर ने अपने भाषण में कहा कि कुछ मौकों को छोड दें तो भारत मेंप्रेस स्वतंत्र रहा है. उन्होंने जाहिर तौर पर आपातकाल के समय का परोक्ष जिक्र करते हुए कहा कि उन कुछ मौकों के बारे में आप सभी जानते ही हैं. उन्होंने कहा कि कुछ लोग ‘पेड न्यूज’ और ‘शारीरिक नुकसान’ के तरीकों का इस्तेमाल करते हैं जो या तो प्रेस का मुंह बंद करना चाहते हैं या प्रेस को अपना प्रवक्ता बनाना चाहते हैं.
राठौर ने सरकार को प्रेस की आजादी के लिए खडा हुआ बताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक भाषण का उल्लेख किया जिसमें उन्होंने कहा था कि मीडिया की वजह से सरकार इस बात का सारतत्व समझ सकती है कि जनता पांच साल के बजाय पांच मिनट में क्या चाहती है. उन्होंने कहा, ‘‘भारत सरकार अपने सभी नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करती है. पिछले एक महीने में हमारे देश में असहनशीलता की बात हुई है. इस विषय पर कोई बहस नहीं हुई. भारत हमेशा दुनिया का सबसे सहिष्णु देश रहा है और रहेगा.’ राठौर ने कहा कि जो कुछ लोग कानून अपने हाथों में लेते हैं, राज्य सरकारों को उनके साथ कड़ाई से निपटने की जरुरत है. कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्यों की है और उन्हें पत्रकारों की तथा अपनी पूरी आबादी की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया है कि उनकी सरकार सभी नागरिकों के अधिकारों के लिए खडी है. राठौर ने कहा कि पीसीआई को मजबूती प्रदान की जानी चाहिए और उसे प्रेस की आजादी सुनिश्चित करते हुए नैतिक पत्रकारिता को बढावा देना चाहिए.
राष्ट्रपति ने इस संदर्भ में जिक्र किया कि भारत में पे्रस का विकास किस तरह सरकार के तत्वावधान में नहीं बल्कि लोगों की प्रतिबद्धता की वजह से हुआ जो औपनिवेशिक सरकार की दमनकारी नीतियों से मुकाबला करते रहे.उन्होंने कहा कि भारतीय मीडिया की विश्वसनीयता और गुणवत्ता जगजाहिर है और नये मीडिया ने परंपरागत, दृश्यन्श्रव्य, डिजिटल और सोशल मीडिया का समागम किया है.