कॉलेजियम सिस्टम : केंद्र ने मसौदा तैयार करने से किया इंकार
नयी दिल्ली : केंद्र ने उस प्रक्रिया का मसौदा ज्ञापन पत्र बनाने से इनकार कर दिया जिसका पालन उच्चतम न्यायालय का कॉलेजियम उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए करेगा. बुधवार को उच्चतम न्यायालय ने कॉलेजियम व्यवस्था में सुधार के मुद्दे पर सभी सुझावों पर विचार करने के बाद उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की […]
नयी दिल्ली : केंद्र ने उस प्रक्रिया का मसौदा ज्ञापन पत्र बनाने से इनकार कर दिया जिसका पालन उच्चतम न्यायालय का कॉलेजियम उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए करेगा. बुधवार को उच्चतम न्यायालय ने कॉलेजियम व्यवस्था में सुधार के मुद्दे पर सभी सुझावों पर विचार करने के बाद उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की भावी नियुक्तियों के लिए सरकार को एक मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (एमओपी) का मसौदा तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी. गौरतलब है कि उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम व्यवस्था को समाप्त करने का सरकार का प्रयास हाल में विफल हो गया था. शीर्ष अदालत के निर्देश का हालांकि वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रह्मण्यम ने जोरदार विरोध किया.
उन्होंने कहा कि सुझाव का स्वागत है लेकिन कार्यपालिका को यहां तक कि मसौदा मेमोरेंडम भी तैयार करने की अनुमति नहीं दी जा सकती. उच्चतम न्यायालय ने मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर का मसौदा तैयार करने की बडी जिम्मेदारी सरकार को सौंपी है. उन्होंने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम और 99 वें संविधान संशोधन को निरस्त करने वाले फैसले का हवाला दिया और कहा कि उनकी आपत्ति का मुख्य कारण न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा करने का प्रयास है और इसलिए कार्यपालिका को अब भूमिका नहीं दी जा सकती.
न्यायमूर्ति जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा, ‘आप (सुब्रह्मण्यम) जल्दबाजी कर रहे हैं. वे एमओपी जारी करने नहीं जा रहे हैं. हर कोई पारदर्शिता की मांग कर रहा है और कोई पक्ष नहीं है. सरकार भी इसे पारदर्शी और व्यापक बनाना चाहती है. हम सिर्फ उनकी राय ले रहे हैं क्योंकि वे अहम हिस्सेदार हैं.’ पीठ ने कहा, ‘हम उनके सुझाव स्वीकार कर सकते हैं या उसे अस्वीकार कर सकते हैं. हमने उनके एनजेएसी को निरस्त कर दिया है. आप सोचते हैं कि हम उनके मसौदा एमओपी में महज प्रावधान को हटा नहीं सकते. कोई भी प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं कर सकता. आप सिर्फ मान रहे हैं कि यह निष्पन्न कार्य है.’
सुब्रह्मण्यम हालांकि अपनी दलीलों पर जोर देते रहे और दूसरे और तीसरे न्यायाधीश मामले का उल्लेख किया ताकि इस बात पर जोर दे सकेंकि सरकार को एमओपी का मसौदा तैयार करने में भूमिका नहीं दी जानी चाहिए. वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा, ‘जहां तक दूसरे और तीसरे न्यायाधीश मामले का सवाल है तो पीछे जाने का सवाल नहीं है. न्यायपालिका की स्वतंत्रता बेहद महत्वपूर्ण और जरुरी है. एमओपी सिर्फ एक कार्यपालिका मेमोरेंडम है जो न्यायिक आदेश को लागू करेगा. इसे (एमओपी) कार्यपालिका पर नहीं छोडा जा सकता. यह न्यायिक कवायद है. एमओपी एक प्रस्ताव होना चाहिए जो इस अदालत के अंतिम रुख अपनाने के बाद आना चाहिए.’
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा, ‘सुझाव पर प्राथमिक विचार उच्चतम न्यायालय के पास रहना चाहिए. सुझाव आते रह सकते हैं. मैं इसके खिलाफ नहीं हूं लेकिन अंतिम फैसला इस अदालत को करना चाहिए.’ शुरुआत में अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने उच्च न्यायालयों में रिक्ति का मुद्दा उठाया और पीठ से कहा कि वह न्यायाधीशों की नियुक्ति की अनुमति दे. रोहतगी ने कहा कि विभिन्न उच्च न्यायालयों में तकरीबन 40 फीसदी पद खाली हैं और यह मामलों के निस्तारण को प्रभावित कर रहा है. रोहतगी की दलीलों का जवाब देते हुए पीठ ने कहा कि उसने कॉलेजियम पर कोई रोक नहीं लगायी है.