-हरिवंश-
पर्यटकों के लिए स्वर्ग है, सिंगापुर, यह नाम देश देखने के बाद महज विज्ञापन नहीं लगता, इसमें तथ्य और यथार्थ है. पर्यटन, उद्योग सिंगापुर की आय का स्रोत भी है. पर्यटकों का सिंगापुर स्टे अधिकाधिक सुविधापूर्ण, व्यवस्थित और थ्रिल (विज्ञान तकनीक के संदर्भ में) भरा हो, यह सरकार सुनिश्चित करती है. चांगी हवाई अड्डे पर विनम्रतापूर्वक पूछा जाता है कि हवाई जहाज से उतरने के बाद बाहर आने में पांच मिनट से अधिक का समय तो नहीं लगा? यानी सरकारी औपचारिकताएं पांच मिनट में खत्म हुई या नहीं. बैंकाक का देह व्यापार यहां नहीं है. हांगकांग की नाइट लाइफ नहीं है. यह कठोर नैतिक, प्रतिबद्ध और अनुशासित समाज है. पर मनोरंजन, इतिहास बोध और विजन से संपन्न.
‘सेंटोजा नहीं देखा, तो आपने सिंगापुर नहीं देखा’, यह हमें मुंबई में बताया गया. इसलिए सिंगापुर यात्रा का पहला दिन सेंटोजा भ्रमण का रहा. सेंटोजा केबुल कार स्टेशन से यह यात्रा शुरू हुई. आसमान में बहुत ऊंचाई से केबुल कार जाती है. ये केबुल कारें, छोटी तीन या चार या पांच के बैठने भर हैं. बिजली संचालित टिकट लेकर जब आप काफी ऊपर केबुल कार में बैठते हैं, तो रोमांच होता है. नीचे देखने से डर लगता है. ये कारें सेंटोजा आइसलैंड ले जाती हैं. नीचे समुद्र, बंदरगाह, पुराना शहर, बड़े व भव्य पानी जहाज और अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य. ऊंचाई से यात्रा करते हुए डर भी लगता है, पर सिंगापुर के बड़े भू-भाग की झलक मिलती है. इस यात्रा में हाईटेक थ्रिल है.
सेंटोजा पूरे दिन देखने लायक है. सूरज, समुद्र और रेत, संगीतमय फव्वारे. ऐतिहासिक गुफाएं. सुंदर समुद्र का तट (बीच), म्यूजियम, किला, वाटर एडवेंचर (पानी में दौड़). प्रवेशद्वार पर ही किंवदंतियों से आयी 12 मंजिली मूर्ति है. दूर से शेर की तरह, पर ध्यान से देखने पर बिल्कुल भिन्न. उसके मुंह से फव्वारे में पानी आ रहा है. युवती गाइड बताती है कि अंदर से बाहर पानी बहने का संकेत है, समृद्धि. वर्चुअल रियलिटी सिनेमा, यह देखने से एहसास होता है कि आप दर्शक नहीं पात्र हैं, मजबूत दिल के लोग यह देखते हैं.
‘एशियन विलेज’ में तरह-तरह के एडवेंचर (साहसिक कारनामे) ‘डाल्फिन लगून’ में डालफिनों के स्तब्ध करनेवाले दृश्य. बच्चों को चुंबन लेते, दौड़ते, गले मिलते डाल्फिन. ‘सेंटोजा आर्किड गार्डेंस’ में सुंदर, मन और नजर बांध लेनेवाले आर्किड फूल ‘फोर्ट सिल्वासो’ में म्यूजियम है. सिंगापुर का इतिहास जीवंत रूप में सामने है. हमारी गाइड ‘बून ही’ कहती हैं. हम अपना इतिहास सुरक्षित रखते हैं, ताकि हमारी नयी (वर्तमान) पीढ़ी और भविष्य की पीढ़ियां जान सकें कि हमारे पुरखे कैसे रहते थे.
मैं हूं सिंगापुर में, पर मेरा मन भटक कर भारत पहुंच जाता है, जिसका कोई समृद्ध अतीत नहीं, जिसकी यात्रा 100-200 वर्षों की है.
वह अपने इतिहास दृश्यों को इतना प्रेरक बना सकता है, ताकि पीढ़ियां सीखें, जानें, एक हम हैं, जिनको गुमान है कि देवताओं ने इस धरती पर खेला, महापुरुषों ने जन्म लिया, इतिहास रचा, पुराण वेद की रचनाएं गूंजी. यहां एक भी म्यूजियम ऐसा समृद्ध नहीं. गांधी जिस स्कूल में पढ़े, वह हाल में बंद हो गया. राहुल जी तिब्बत से लुप्त प्रात पांडुलिपियां लाये, अद्भुत पुराने ग्रंथों की, ज्ञान के भंडार, वे चुपचाप चोरी होकर पटना से विदेश चली गयीं. रोज म्यूजियमों से चोरी, मूर्तियों की तस्करी, ऐतिहासिक चीजों की बिक्री, कहां है हमारा आत्मगौरव? लगता है, अतीत में जीते हम अभिशप्त लोग हैं, जिनका कोई भविष्य नहीं, न सपने हैं, न संकल्प.
‘अंडरवाटर वर्ल्ड सिंगापुर’ ऐसा दृश्य नहीं देखा. दूजो न कोई. टेक्नॉलाजी, कल्पना और कला से बना. यह अद्भुत पानी म्यूजियम शीशों की दीवार. ऊपर हरहराता समुद्र डाल्फिन से लेकर भयानक हिंस्र शार्क. लगता है आप सबको छूने निकल रहे हैं. तरह-तरह मछलियां, सांप भयानक और हिंसक आपके ऊपर से गुजरती हुई. स्पर्श करने का बोध कराती. आप नीचे-नीचे समुद्र में सबको छूते हुए निकल जाते हैं. ऐसा रोमांच ट्रेन से इंग्लिश चैनल पार करते (इंग्लैंड से फ्रांस जाते हुए) भी नहीं हुआ था. पर्यटन उद्योग को किस मुकाम तक पहुंचा दिया है. इस छोटे देश में यह टेक्नोलॉजी और विज्ञान का कमाल है.
इस तिलस्म भरी सुरंग से निकलने के बाद भी सिंगापुर म्यूजियम के दृश्य मन पर छाये रहते हैं. 60-70 वर्षों पहले सिंगापुर में कैसे चीन, भारत, मलयेशिया से आकर लोग रहते थे. जीवन कितना कठिन था. खाने-पहनने का अभाव, पीने का पानी नहीं. अंधेरे सीलन भरे घरों में कई-कई लोग. 1965 तक कलकत्ता की तरह ही गंदा था सिंगापुर. आज सिंगापुर कहा है और कलकत्ता कहां? क्या भारत को नये सिरे से गढ़ने का कोई आंदोलन चलेगा?
‘जुरांग बर्ड पार्क’ (पक्षी पार्क) देखना अनुभव है. अद्भुत और तरह-तरह की चिड़ियाएं. रंग-बिरंगे वैज्ञानिक रूप से उनको प्राकृतिक परिवेश में रखा गया है. हिमालय के पक्षी भी हैं. चिड़ियों की चहचहाहट से लगता है, वे इसी परिवेश में हैं. यह विज्ञान का कमाल है. हाईटेक चिड़ियाघर है. उत्तरी ध्रुव का सफेद भालू यहां है. विज्ञान के चमत्कार से पर्यटन उद्योग में सिंगापुर बहुत आगे निकल गया.
1998 में सिर्फ एशियाई देशों के जो पर्यटक यहां आये, उन्होंने 375 करोड़ की खरीदारी की. जापानी पर्यटकों ने 117 करोड़ की, तो भारतियों ने 104 करोड़ की. सिंगापुर पर्यटन बोर्ड का कामकाज और विजन स्पष्ट है. दुनिया का सबसे प्रिय पर्यटन स्थल सिंगापुर बने.