सिंगापुर के विशेषज्ञ बनवा रहे हैं भारत में चार टेक्नोलॉजी पार्क
-सिंगापुर से लौट कर हरिवंश- सिंगापुर के जुरांग टाउन कॉरपोरेशन (जेटीसी) का अंग है, जेटीसी इंटरनेशनल. हाल में इस कंपनी को दुनिया के अन्य देशों के 60 प्रोजेक्ट मिले हैं, कुल 140 मिलियन डॉलर के 1998 में इसके हाथ में अन्य देशों के 22 प्रोजेक्ट थे, जिनकी कुल लागत थी, 280 मिलियन डॉलर. इनमें से […]

-सिंगापुर से लौट कर हरिवंश-
सिंगापुर के जुरांग टाउन कॉरपोरेशन (जेटीसी) का अंग है, जेटीसी इंटरनेशनल. हाल में इस कंपनी को दुनिया के अन्य देशों के 60 प्रोजेक्ट मिले हैं, कुल 140 मिलियन डॉलर के 1998 में इसके हाथ में अन्य देशों के 22 प्रोजेक्ट थे, जिनकी कुल लागत थी, 280 मिलियन डॉलर. इनमें से छह चीन में थे, तो दो भारत में.
भारत में जेटीसी इंटरनेशल के कर्नाटक सरकार ने करार किया है. मकसद है, बेंगलूर, को विश्व के दस बड़े हाईटेक महानगरों में से एक बनाना. 20 किमी का आइटी कारीडोर भी बनना है. इलेक्ट्रानिक सिटी और इंटरनेशनल टेक्नालॉजी पार्क बेंगलूर के बीच. बेंगलूर इलेक्ट्रानिक सिटी, भारत का पहला समर्पित आइटी इनक्लेव है. 65 मिलियन डॉलर की लागत से गुड़गांव टेक्नालाजी पार्क, नयी दिल्ली में नोएडा अंसल टेक्नो पार्क और चेन्नई में महेंद्रा इंडस्ट्रियल पार्क भी सिंगापुर की कंपनी जेटीसी इंटरनेशनल बनवा रही है. राजस्थान सरकार ने भी इससे अपना ‘एक्शन प्लान’ बनवाया है. महाराष्ट्र के पुणे में भी इस कंपनी को काम मिले हैं. आंध्र में भी प्रस्ताव है.
चीन में सुझाउ, चांगिंग, झेनजियांग, शंघाई और बीजिंग में भी सिंगापुर की यह कंपनी इंडस्ट्रियल पार्क बनवा रही है. इसके अतिरिक्त ‘बीजिंग इकनॉमिक एंड टेक्नालॉजिकल इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन’ के साथ मिल कर भी यह संस्था काम कर रही है. एशिया में 19 इंडस्ट्रियल पार्क और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट, इस कंपनी के हाथ में हैं. कुल 398 मिलियन डॉलर लागत व्यय. ये काम भारत, चीन, वियतनाम, थाईलैंड, फिलीपींस, ताइवान और इंडोनेशिया में हैं. चीन के 850 इंडीनियर जेसीटीआइ में प्रशिक्षण ले रहे हैं. जेसीटी का एक बिंग ‘एसेंडा’ डेवलपर है. एशिया का बड़ा डेवलपर, जो साइंस, बिजनेस और इंडस्ट्रियल पार्को की मार्केटिंग, डेवलपिंग और प्रबंधन करता है. सिंगापुर, भारत, चीन और फिलीपींस में इसकी परिसंपत्ति है. 1.2 बिलियन डॉलर. यह कंपनी अपना मकसद बताती है. ‘क्राफ्ट’ (कारीगरी), क्रियेट (बनाना) और कनेक्ट (जोड़ना) अपने कौशल से ऐसा माहौल बनाना कि बड़ी कंपनियां आयें. एक परिवार का अंग बने. ‘आइडिया’ (विचार), इनसाइट (तत्व) और इंसप्रेशन (प्रेरणा) में साझीदार बनें. और ऐसी कंपनियों में आपसी तालमेल व संगति हो.
बेंगलूर इंटरनेशनल टेक्नोलॉजी पार्क देखने से पता चलता है, सिंगापुर की इस कंपनी के काम, विजन और वैज्ञानिक दृष्टि का. बेंगलूर के इस टेक्नोलॉजी पार्क में पांव रखते ही एहसास होता है कि हिंदी इलाकें कितने पीछे छूट गये हैं. दुनिया किस रफ्तार से बढ़ रही है. बेंगलूर यात्रा में देखा गया टेक्नोलॉजी पार्क याद आता है. झारखंड की तस्वीर सामने है. क्यों नहीं झारखंड को स्वर्ग बनाने की बात करनेवाली ऐसी संस्थाओं को अपने यहां न्योतते? रोज झारखंड में नारे लग रहे हैं कि यह सिलिकॉन रैली बनेगा. देश का सबसे समृद्ध राज्य होगा, पर कैसे होगा? कौन करेगा? यह नहीं मालूम. यह छलने का काम कब तब होगा?
दूसरी ओर, सिंगापुर की यह कंपनी स्तब्ध करती है. एक अत्यंत छोटे से देश में ऐसी विलक्षण कंपनियां हैं, जो भारत-चीन वगैरह को मदद कर रही हैं. अपने ‘टेक्नीकल मैनपावर’ पर हमें गर्व है, लेकिन हम ऐसी संस्थाएं नहीं बना सके, जो दुनिया में अपने काम से शोहरत पाये और भारत के लिए कमा कर पैसे लाये? लोगों को रोजगार मिले और देश समृद्ध हो.
पहले सिंगापुर की स्थिति भारत-श्रीलंका से खराब थी. 1965 तक नौ फीसदी की बेरोजगारी थी. ब्रिटेन की फौज वहां रहती थी. 60,000 सिंगापुरी थल, जल और वायु सेना में थे. काफी कमाई थी. 65 में ब्रिटेन ने वहां से हटने की घोषणा की. सारे सिंगापुरी बेरोजगार हो गये. उसी वक्त मलयेशिया ने संबंध तोड़ लिया. ‘जीरो इंडस्ट्री’ (उद्योग विहीनता) की स्थिति थी. सिंगापुर की कुल राष्ट्रीय आय का 10 फीसदी ब्रिटिश सैन्य सेवा से आता था. सिर्फ पानी का जहाज बनाने का कारखाना था. कपड़े बनाने के कारखाने थे. इस धक्के, स्वाभिमान पर चोट और राष्ट्रीय अभिमान से सिंगापुरी जागे, तो इतिहास पलट दिया. आज स्थिति यह है कि किराये पर वहां फैक्ट्रियां उपलब्ध हैं.
बिल्कुल आधुनिक बहुराष्ट्रीय कंपनिया चाहें, तुरंत अपना उत्पादन शुरू कर दें, फिर कुछ समय में अपना अलग कारखाना बनवा लें. 180 एकड़ में ‘रिसर्च-डेवलमेंट’ पार्क है. बायो साइंस, बायो टेक्नोलॉजी, जेनेटिक, क्लोनिंग, लाइफ इंडस्ट्री के केंद्र हैं. 20 वर्षों बाद अनुमान है कि जनसंख्या बढ़ कर 55 लाख होगी, तो 15 लाख अतिरिक्त रोजगार चाहिए. 15 लाख रोजगार की व्यवस्था, बढ़ती हुई आबादी के रहने की व्यवस्था और इसके अनुरूप नागरिक सुविधाओं का बंदोबस्त आज से, कितनी दूरदर्शिता है. यह सरकारी विजन है. एक हमारा मुल्क है.
जुरांग टाउन कारपोरेशन के भव्य भवन से उतरता हूं. यह बोध लिये कि इतिहास किस संकल्प से बनता है? बदलाव, परिवर्तन और सृजन के मानस क्या हैं? सिंगापुरी धीर, गंभीर और रिजर्व होते हैं. भारत से परिचित एक सिंगापुरी से भारत के बारे में बातें हुई, तो उसने कहा कि इस महान देश को राजनीति ने खत्म कर दिया है. ‘पालिटिक्स इन इंडिया इज विसियस, यू डाइ आइ लिव’ (भारत की राजनीति जहरीली है. आप मरें, हम कायम रहें, यह है भारतीय राजनीति). क्या इस जहरीली राजनीति से भारत को मुक्त करने की कोशिश होगी? कौन करेगा? हमारी पीढ़ी इसकी साक्षी होगी? मन भारत में उलझ जाता है, तन सिंगापुर में है.