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‘‘असहिष्णुता”” पर आम सहमति बनाने की जरुरत : वेंकैया

नयी दिल्ली : राज्यसभा मेंसोमवार को विपक्षी दलों ने संविधान के मुताबिक लोकतंत्र, मानवतावादी और समतामूलक व्यवस्था के निर्माण में हुई प्रगति का आकलन करने पर बल देते हुए आरक्षण प्रावधानों को समुचित ढंग से लागू करने पर बल दिया जबकि सरकार ने देश में बढ़ती कथित असहिष्णुता के आरोपों को खारिज करते हुए कहा […]

नयी दिल्ली : राज्यसभा मेंसोमवार को विपक्षी दलों ने संविधान के मुताबिक लोकतंत्र, मानवतावादी और समतामूलक व्यवस्था के निर्माण में हुई प्रगति का आकलन करने पर बल देते हुए आरक्षण प्रावधानों को समुचित ढंग से लागू करने पर बल दिया जबकि सरकार ने देश में बढ़ती कथित असहिष्णुता के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि ऐसी घटनाएं पहले भी होती रही हैं तथा आरोपों प्रत्यारोपों को दरकिनार कर आम सहमति बनाने की जरुरत है. संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू ने कहा कि कहा जा रहा है कि असहिष्णुता बढ़ रही है. क्या ऐसी घटनाएं पहले नहीं हुई. पहले भी दलितों पर अत्याचार होते रहे हैं और लेखकों की हत्याएं भी हुई हैं. आज कुछ क्षेत्रों में असहिष्णुता स्थापित है और इससे कड़ाई से निपटना होगा.

संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर की 125 वीं जयंती के तहत ‘‘भारत के संविधान के प्रति प्रतिबद्धता” पर चल रही चर्चा को आगे बढ़ाते हुए संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू ने आज राज्यसभा में कहा ‘‘हमें पहले आत्मावलोकन कर देखना होगा कि क्या हम सचमुच संविधान निर्माताओं की अपेक्षाओं पर खरे उतरे हैं. हर बार विभिन्न मुद्दों पर चर्चा होती है लेकिन आगे बढ़ने की बात होती है तो आम सहमति नहीं बन पाती. ऐसा क्यों होता है.” उन्होंने कहा कि 68 साल पहले जब संविधान को अंगीकार किया गया था तब के हालात और आज के हालात में बहुत अंतर है. लेकिन कहीं न कहीं समस्याएं वहीं हैं. आज चुनौतियां भी कम नहीं हैं. हमें यह देखना होगा कि हमने अब तक के सफर में क्या किया है, कहां हमसे चूक हो गई और उसे दुरुस्त करते हुए हमें आगे क्या करना है. हमें आम सहमति बनाते हुए आगे की रणनीति तय करनी होगी.

चर्चा में भाग लेते हुए बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि देश में संविधान लागू किए 65 साल से अधिक समय हो गया और सरकारों को आकलन करना चाहिए कि क्या हम संविधान के मुताबिक लोकतंत्र, मानवतावादी और समतामूलक व्यवस्था के निर्माण में सफल हो पाए। हमें हमारी खामियों को दूर करना होगा अन्यथा यह चर्चा निरर्थक हो जाएगी.

इससे पहले नायडू ने कहा, संविधान निर्माता चाहते थे कि संवैधानिक संस्थाओं को मजबूत किया जाए. लेकिन साथ ही धर्म निरपेक्षता, सामाजिक सद्भाव और पारदर्शिता को भी बरकरार रखा जाए. इसके बावजूद आज भी धर्म और जाति के आधार पर राजनीति हो रही है. समान नागरिक संहिता बनाने, लिंग आधारित भेदभाव दूर करने, अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को आगे बढ़ाने के लिए, क्षेत्रीय असमानताएं दूर करने के लिए अभी भी बहुत काम किया जाना है. संसदीय कार्य मंत्री ने कहा कि आज कहा जा रहा है कि असहिष्णुता बढ़ रही है. क्या ऐसी घटनाएं पहले नहीं हुई.

पहले भी दलितों पर अत्याचार होते रहे हैं और लेखकों की हत्याएं भी हुई हैं. आज कुछ क्षेत्रों में असहिष्णुता स्थापित है और इससे कड़ाई से निपटना होगा. लेकिन इस बारे में न तो कोई धारणा तय की जानी चाहिए और न ही देश को गलत दृष्टि से पेश करने का प्रयास किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि सहिष्णुता संविधान का ही सम्मान है और इसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए. हमें दूसरों की धारणाओं और आस्थाओं का सम्मान करना चाहिए तथा आरोपों प्रत्यारोपों से बचना चाहिए.

नायडू ने कहा कि नस्ल के आधार पर अमेरिका में भी गोलीबारी हुई है. लेकिन हमारे यहां पडोसी देश से नरेंद्र मोदी को हटाने के लिए कहा गया. उन्होंने कहा कि सरकार पर कुछ न करने के आरोप लगते हैं. लेकिन सरकार काम कर रही है और जनधन योजना, बीमा योजना, अटल पेंशन योजना, मुद्रा बैंक इसके उदाहरण हैं.

उन्होंने कहा कि पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने हाल ही में स्वीकार किया कि लेखक सलमान रुश्दी की किताब पर प्रतिबंध लगाना गलत था. उनकी यह स्वीकारोक्ति मायने रखती है लेकिन लेखकों को भी यह ध्यान में रखना होगा कि भावनाएं उद्वेलित न हों और सामाजिक तनाव न बढ़े. हमारे देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है लेकिन यह कैसे हो, इस बारे में आम सहमति होनी चाहिए. नायडू ने कहा कि आरक्षण व्यवस्था का उद्देश्य जरुरतमंद लोगों की मदद करना था. लेकिन बाद में कुछ ऐसे हालात आए कि इसमें उच्चतम न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा.

महिलाओं को कुछ क्षेत्रों में 50 फीसदी आरक्षण दिया गया लेकिन विधायिका में 33 फीसदी आरक्षण का मुद्दा लंबा खिंचता जा रहा है. सवाल यह है कि इस बारे में कोई पहल क्यों नहीं हो रही है. संसदीय कार्य मंत्री नायडू ने कहा कि क्षेत्रीय असमानता आज भी है और इसी के चलते कई राज्य विशेष राज्य का दर्जा चाहते हैं. उनकी मांग अधिक से अधिक की है. इस बारे में दिशा निर्देश तय किए जाने चाहिए. समान नागरिक संहिता के लिए व्यापक चर्चा पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि कुछ समय के लिए हमें अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक के मुद्दे को छोड कर एक राष्ट्र के तौर पर सोचना चाहिए.

न्यायपालिका में सुधारों की वकालत करते हुए नायडू ने कहा कि दुनिया में कहीं भी न्यायाधीश अपनी नियुक्ति खुद नहीं करते लेकिन हमारे यहां कालेजियम प्रणाली है. इस ओर ध्यान देना होगा और यह भी सोचना होगा कि आम आदमी के लंबित मामलों को प्राथमिकता मिले. समय पर न्याय न मिलने पर न्याय अर्थहीन भी हो जाता है इसलिए मामलों का त्वरित निपटारा जरुरी है.

सरकार और विपक्ष के बीच बातचीत को महत्वपूर्ण बताते हुए नायडू ने कहा कि यह सिलसिला चलते रहना चाहिए. उन्होंने कहा कि संसद अगर नहीं चल पा रही है तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है यह बाद की बात है. लेकिन पहले तो इस बारे में आम सहमति बनानी होगी कि संसद चले और कामकाज हो. नायडू ने कहा कि अंबेडकर और संविधान के प्रति प्रतिबद्धता पर चर्चा करते समय यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि कई तरह के कष्टों के बावजूद अंबेडकर ने कभी भी कोई गलत बात नहीं की और यह उनकी सहिष्णुता थी. उन्होंने कहा कि चर्चा के अंत में सदन में एक संकल्प लाना चाहिए कि हम संविधान के आदर्शों की दिशा में सतत काम करने की प्रतिबद्धता जताएं. यही अंबेडकर के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

चर्चा को आगे बढ़ाते हुए बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि आम सहमति से आगे बढ़ने के साथ ही हमें समाज के हर वर्ग के हितों को भी ध्यान में रखना होगा. उन्होंने कहा कि हमारे देश में अनेकता में एकता रही है और खास तौर पर धर्म अपनाने के मामले में लोगों को पूरी आजादी है. यह हमारे संविधान की विशेषता है.

मायावती ने कहा कि देश में संविधान लागू किए 65 साल से अधिक समय हो गया और सरकारों को आकलन करना चाहिए कि क्या हम संविधान के मुताबिक लोकतंत्र, मानवतावादी और समतामूलक व्यवस्था के निर्माण में सफल हो पाए. हमें हमारी खामियों को दूर करना होगा अन्यथा यह चर्चा निरर्थक हो जाएगी. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंबेडकर जयंती मनाए जाने के बारे में कई सुझाव दिए. ज्यादा अच्छा होता कि वह इस मौके पर कमजोर वर्गों को निजी क्षेत्र में आरक्षण देने के फैसले, पदोन्नति में अनुसूूचित जाति जनजाति के लोगों को आरक्षण देने के लिए संविधान संशोधन करने के बारे में कोई फैसले का ऐलान करते.

बसपा नेता ने कहा कि विभिन्न कारणों के चलते धर्म बदलने वालों को पुन: अजा, अजजा या अन्य पिछड़ा वर्ग की सुविधाओं का लाभ मिलना चाहिए. साथ ही संविधान में संशोधन कर आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर सरकार कोई ऐलान करती भी, तो उसे लागू नहीं करती. मायावती ने कहा कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ दलितों को पूरी तरह नहीं मिल पा रहा है और उनका कोटा अधूरा रहता है. पदोन्नति में अजा, अजजा और अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण की व्यवस्था कांग्रेस ने निष्प्रभावी कर दी.

बाद में इसके लिए संवैधानिक संशोधन विधेयक लाया गया जो राज्यसभा में पारित हो गया लेकिन लोकसभा में अटक गया. उन्होंने मोदी सरकार से मांग की कि लोकसभा में उसके पास बहुमत है और उसे यह विधेयक पारित करना चाहिए. उन्होंने नाम लिए बिना कहा कि सत्तारुढ दल की नीतियां तय करने वाले संगठन के नेता ने आरक्षण व्यवस्था की समीक्षा की जरुरत बताते हुए कह दिया कि यह समीक्षा गैर राजनीतिक संगठन द्वारा की जानी चाहिए. उनकी इस बात का गहरा विरोध हुआ और बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे भी सत्तारुढ़ दल के खिलाफ गये.

मायावती ने चेतावनी दी कि अगर आरक्षण व्यवस्था को खत्म करने का प्रयास किया गया तो सड़कों पर उतर कर आंदोलन किया जाएगा. उन्होंने कहा कि सीबीआई का दुरुपयोग किया जाता है और ताज कारीडोर मामले में उन्हें इसका अनुभव हो चुका है. उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि इतने दिनों से एनएचआरएम घोटाले में उनका नाम उसे याद नहीं आया लेकिन उप्र में विधानसभा चुनाव करीब आते ही एनएचआरएम घोटाले में उनका नाम जोडा जाने लगा. उन्होंने सरकार पर दलितों के प्रति असंवेदनशील रुख रखने का आरोप लगाते हुए कहा कि पिछले दिनों फरीदाबाद में एक दलित परिवार के बच्चों को कथित तौर पर जिंदा जलाए जाने की घटना के बाद केंद्र सरकार के मंत्री वी के सिंह ने जो कुछ कहा था वह अक्षम्य है.

मायावती ने सिंह को बर्खास्त करने की मांग करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री को चाहिए कि उन्हें तत्काल बर्खास्त कर जेल भेजें. बसपा प्रमुख ने यह भी कहा कि हरियाणा में एक मंत्री द्वारा एक दलित महिला आईपीएस अधिकारी का उत्पीड़न किया गया है और इस मामले में सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए. उन्होंने कहा कि असम के राज्यपाल ने हाल ही में कथित तौर पर कहा कि हिंदुस्तान हिंदुओं का है और मुसलमाान पाकिस्तान जाने के लिए स्वतंत्र हैं. मायावती ने कहा, क्या यह बयान संविधान की गरिमा के अनुकूल है. सार्वजनिक पद पर बैठे लोग ही सांप्रदायिक सौहार्द्र के माहौल को बिगाड़ रहे हैं. लेकिन सरकार चुप्पी साधे हुए है.

उन्होंने कहा कि दादरी में गौमांस के सेवन की अफवाह के चलते एक व्यक्ति को कथित तौर पर पीट पीट कर मार डाला गया. इस घटना की जितनी निंदा की जाए, कम है. क्या यही संविधान के लिए प्रतिबद्धता है. सरकारें आती हैं और जाती हैं लेकिन दलितों की स्थिति में सुधार के लिए कोई ठोस काम नहीं किया जाता.

मायावती ने कहा कि हाल ही में मोदी सरकार के एक मंत्री ने कहा था कि इसी सरकार के कार्यकाल में अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण होगा. मायावती ने कहा कि यह मामला अदालत में लंबित है. फिर भी इस तरह का बयान दिया गया. एक ओर देश में आतंकवाद है, असहिष्णुता का माहौल है, महंगाई बढ़ रही है, हमारी सीमाएं असुरक्षित हैं. ऐसे में इन समस्याओं का हल जरुरी है या मंदिर निर्माण जरुरी है. सरकार को गंभीरता से इस बारे में सोचना होगा.

तेदेपा के वाई एस चौधरी ने संविधान के प्रावधानाें की प्रशंसा करते हुए कहा कि इसके कारण ही गैर राजनीतिक लोग भी सांसद बन सकते हैं. उन्होेंने कहा कि कमजोर संविधान होने का असर हम अपने पड़ोस में देख सकते हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि पिछली सरकार के कार्यकाल में आंध्र प्रदेश पुनर्गठन विधेयक को पारित कराने का तरीका ‘‘अलोकतांत्रिक” था. कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि तत्कालीन सरकार ने राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए इस विधेयक को पारित कराया.

उन्होंने कहा कि जिस प्रकार आंध्र प्रदेश विधानसभा ने प्रस्ताव पारित कर भेजा था, वैसा प्र्रस्ताव ही उत्तर प्रदेश विधानसभा ने भी भेजा था. लेकिन उस पर गौर नहीं किया गया. कांग्रेस के एक सदस्य की टोकाटोकी के बीच चौधरी ने कहा कि आंध्र प्रदेश के लोगाें को भी न्याय मिलना चाहिए और संसद के पटल पर सरकार ने लोगों से जो वायदे किए थे, उन्हें पूरा किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि वहां के लोग निराश हैं और उनकी समस्याओं पर गौर किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि आंध्र प्रदेश को उचित समर्थन मिलना चाहिए. चौधरी ने कहा कि जरुरतमंद लोगों को मदद मिलनी चाहिए.

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