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100 मुसलिम लड़कों की माइंस में बहाली चाहते थे फुरकान

– कमलेश कुमार सिंह – नयी दिल्ली : झारखंड के कुछ सांसद सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के सीनियर अधिकारियों पर निजी हित में भ्रष्टाचार के गलत आरोप लगाते हैं. प्रधानमंत्री कार्यालय में शिकायत करते हैं.प्रधानमंत्री कार्यालय जब सांसदों के आरोपों की जांच कराता है, तो न सिर्फ गलत निकलता है, बल्कि कई चौंकानेवाले तथ्य सामने […]

– कमलेश कुमार सिंह –

नयी दिल्ली : झारखंड के कुछ सांसद सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के सीनियर अधिकारियों पर निजी हित में भ्रष्टाचार के गलत आरोप लगाते हैं. प्रधानमंत्री कार्यालय में शिकायत करते हैं.प्रधानमंत्री कार्यालय जब सांसदों के आरोपों की जांच कराता है, तो सिर्फ गलत निकलता है, बल्कि कई चौंकानेवाले तथ्य सामने आते हैं. पीएमओ भ्रष्टाचाररोधी सचिवालय के निदेशक वी विदयावथी द्वारा दो अगस्त 2005 को तत्कालीन कोयला सचिव पीसी पारेख को लिखे पत्र में इस संबंध में कई जानकारियां दी गयी हैं.

झारखंड के तत्कालीन सांसद फुरकान अंसारी ने प्रधानमंत्री कार्यालय को इसीएल के तत्कालीन सीएमडी आरपी रिटोलिया के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाये थे. तत्कालीन सांसद चंद्रशेखर दुबे और गिरधारी यादव ने कोयला सचिव पीसी पारेख पर भी कोल इंडिया के चेयरमैन की नियुक्ति में गड़बड़ी करने का आरोप लगाया था.

इन आरोपों की प्रधानमंत्री कार्यालय ने जांच करायी. जांच के बाद सांसदों द्वारा लगाये गये आरोपों को गलत पाया गया था. पीएमओ भ्रष्टाचाररोधी सचिवालय के निदेशक द्वारा कोयला सचिव पीसी पारेख को जो पत्र भेजा गया था, उसकी कॉपी प्रभात खबर के पास है. इसमें उल्लेख है कि सांसद फुरकान अंसारी (तत्कालीन सांसद) ने इसीएल के सीएमडी आरपी रिटोलिया के खिलाफ जो आरोप लगाये थे, वे सब गलत निकले. रिटोलिया की छवि स्वच्छ है.

उन्होंने शशि कुमार को भी क्लीन चिट दी. इसी पत्र में इस बात का जिक्र है कि फुरकान अंसारी जामताड़ा इलाके के 100 मुसलिम लड़कों को देवघर जिला के एसपी माइंस (चितरा) में नौकरी दिलाना चाहते थे. श्री रिटोलिया ने ऐसा करने से इनकार कर दिया था. इस पत्र में मुगमा खनन क्षेत्र में कोयला चोरी की बात को भी आधारहीन करार दिया गया.

फुरकान अंसारी और चंद्रशेखर दुबे ने पीएमओ को पत्र लिख कर आरोप लगाया था कि बंद हो चुकी ओपन कास्ट माइंस को भरने की आड़ में कोयला चोरी हो रही है.

इससे पहले जब सांसदों ने कोयला सचिव पीसी पारेख पर आरोप लगाया था कि वे कोल इंडिया के चेयरमैन और अनुषंगी कंपनियों के निदेशकों की नियुक्ति में अनियमितता बरतते हैं, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव को गलतफहमी में रख कर पीएमओ का गलत इस्तेमाल करते हैं, सीआइएल के सीएमडी के साथ मिल कर उद्योगों को लाभ पहुंचाते हैं, प्रधानमंत्री की छवि को प्रभावित करते हैं, तो पारेख दुखित हुए थे.

पारेख ने पांच जनवरी 2005 को तत्कालीन कैबिनेट सचिव बीके चतुर्वेदी को पत्र लिख कर कहा था कि सांसदों के ये आरोप आधारहीन है. ऐसे आरोपों के बाद वे कोयला सचिव के पद पर काम नहीं करना चाहते. पारेख ने लिखा था कि या तो दोनों सांसदों के खिलाफ कार्रवाई करें या फिर नौकरी से ही उनका इस्तीफा स्वीकार करें, ताकि वे स्वयं सांसदों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकें.

उन्होंने पत्र में लिखा था कि सांसदों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने के लिए उन्हें सिविल सर्विस से हटना होगा. इसके बाद केंद्रीय सतर्कता आयुक्त पी शंकर ने आठ जुलाई 2005 को श्री पारेख को पत्र लिख कर कहा था कि उनके खिलाफ सांसदों ने जो भी आरोप लगाये हैं, उनकी जांच करायी गयी. वे सब गलत निकले. ज्ञातव्य है कि श्री पारेख की गिनती देश के ईमानदार आइएएस अफसरों में होती रही है.

प्रधानमंत्री कार्यालय की जांच में हुआ खुलासा

निशिकांत दुबे का आरोप : वर्तमान सांसद निशिकांत दुबे ने आरोप लगाया कि जिन दिनों शिबू सोरेन कोयला मंत्री थे, उस समय फुरकान अंसारी, गिरधारी यादव और चंद्रशेखर दुबे उनके कुनबे के रूप में काम करते थे. ये नेता अनुचित लाभ के लिए कोल कंपनियों के सीनियर अधिकारियों पर दबाव बनाते थे. दबाव नहीं मानने पर उनके खिलाफ पीएमओ में शिकायत की जाती थी.

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