नयी दिल्ली : नरेन्द्र मोदी सरकार की गंगा की अविरल एवं निर्मल धारा सुनिश्चित करने की पहल के तहत सरकार अगले वर्ष जनवरी से मार्च के बीच गंगा घाटों की मरम्मत, आधुनिकीकरण, एवं घाटों से लगे नदी की सतहों की सफाई, तटों से लगे गांवों एवं आबादी द्वारा बहाये गए जलमल का शोधन करने और शमशान घाटों की मरम्मत एवं बेहतर प्रबंधन जैसे कदम शामिल है. जल संशोधन एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि सरकार नमामि गंगा कार्यक्रम के तहत जनवारी-मार्च 2016 के बीच ऐसे कार्यक्रमों को प्राथमिकता से आगे बढायेगी ताकि तत्काल जमीनी स्तर पर इस दिशा में लोगों को कार्य होता दिखे.
उन्होंने कहा कि मंत्रालय इस दिशा में लगातार काम कर रही है. इस दिशा में हमारा जोर ग्रामीण क्षेत्रों से नदी में प्रदूषण एवं गंदगी फैलाने वाले तत्वों पर लगाम लगाना है. इस दिशा में विभिन्न पहलों में गंगा नदी के किनारे स्थित शमशान घाटों पर लकडी निर्मित प्लेटफार्म को उन्नत बनाना. नदी से ठोस अवशिष्ट निकालना और नदी किनारे ग्रामीण क्षेत्र में जैव शौचालय का निर्माण कार्य शामिल है. सरकार गंगा नदी के किनारे स्थित 118 शहरों एवं जिलों में जलमल शोधन संयंत्र एवं संबंधित आधारभूत संरचना स्थापित करना चाहती है.
इस मकसद से पहले वर्तमाल आधारभूत संरचना का अध्ययन किया जाना है. इसके बाद सार्वजनिक निजी साझेदारी के आधार पर परियोजना को आगे बढाया जायेगा. मंत्रालय इस दिशा में इंजीनियरिंग इंडिया लिमिटेड, नेशनल बिल्डिंग कंसोर्टियम कारपोरेशन, नेशनल प्रोजेक्ट कंस्ट्रक्शन कारपोरेशन लिमिटेड, इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट इंडिया लिमिटेड आदि को जोडेगी। इस कार्य की निगरानी के लिए ठोस निगरानी व्यवस्था होगी जिसमें सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के साथ राज्यों की एजेंसियों, स्थानी शहरी निकायांे एवं पंचायती राज व्यवस्था को भी जोडा जायेगा. गंगा नदी के तट पर अवस्थित 764 उद्योग और इससे निकलने वाले हानिकारक अवशिष्ट बहुत बडी चुनौती हैं जिनमें 444 चमडा उद्योग, 27 रासायनिक उद्योग, 67 चीनी मिले, 33 शराब उद्योग शामिल हैं.
जल संसाधन एवं नदी विकास मंत्रालय के राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण से प्राप्त जानकारी के अनुसार, गंगा नदी पर कुल 764 उद्योग अवस्थित हैं जिनमें 444 चमडा उद्योग, 27 रासायनिक उद्योग, 67 चीनी मिलंे, 33 शराब उद्योग, 22 खाद्य एवं डेयरी, 63 कपडा एवं रंग उद्योग, 67 कागज एवं पल्प उद्योग एवं 41 अन्य उद्योग शामिल हैं. विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में गंगा तट पर स्थित इन उद्योगों द्वारा प्रतिदिन 112.3 करोड लीटर जल का उपयोग किया जाता है. इनमें रसायन उद्योग 21 करोड लीटर, शराब उद्योग 7.8 करोड लीटर, कागज एवं पल्प उद्योग 30.6 करोड लीटर, चीनी उद्योग 30.4 करोड लीटर, चमडा उद्योग 2.87 करोड लीटर, कपडा एवं रंग उद्योग 1.4 करोड लीटर एवं अन्य उद्योग 16.8 करोड लीटर गंगा जल का उपयोग प्रतिदिन कर रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि गंगा नदी के तट पर स्थित प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग और गंगा जल के अंधाधुंध दोहन से नदी के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो रहा है.
गंगा की सफाई हिमालय क्षेत्र से इसके उद्गम से शुरु करके मंदाकिनी, अलकनंदा, भागीरथी एवं अन्य सहायक नदियों में होनी चाहिए. सरकार ने गंगा की सफाई के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तहत कार्य योजना तैयार की है. इसके तहत ‘अल्पकालिक योजना’, पांच वर्ष की अवधि के लिए ‘मध्यावधि योजना’ तथा 10 वर्ष या इससे अधिक अवधि के लिए ‘दीर्घावधि योजना’ शामिल है. त्योहारों के मौसम और सामान्य दिनों में गंगा में फूल, पत्ते, नारियल, प्लास्टिक एवं ऐसे ही अन्य अवशिष्टों को बहाये जाने को नियंत्रित करने की पहल की जा रही है. मंत्रालय जिन प्रमुख शहरों एवं धार्मिक स्थलों पर विचार कर रही है, उनमें केदारनाथ, बद्रीनाथ, रिषीकेश, हरिद्वार, गंगोत्री, यमुनोत्री, मथुरा, वृंदावन, गढमुक्तेश्वर, इलाहाबाद, वाराणसी, वैद्यनाथ धाम और गंगासागर शामिल हैं.