रसायन विज्ञान के साथ भारत की गजब की ‘केमिस्टरी”

नयी दिल्ली :भारत और रसायन विज्ञान का आपसी रिश्ता बेहद मजबूत है और भारतीय विज्ञान क्षेत्र इस दिशा में गहरे लाभ ले रहा है. यह बात भले ही ज्यादा चर्चा में न आ पाई हो लेकिन भारत का नाम उस समय गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज हो गया, जब नई दिल्ली में 2000 […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 20, 2015 11:09 AM

नयी दिल्ली :भारत और रसायन विज्ञान का आपसी रिश्ता बेहद मजबूत है और भारतीय विज्ञान क्षेत्र इस दिशा में गहरे लाभ ले रहा है. यह बात भले ही ज्यादा चर्चा में न आ पाई हो लेकिन भारत का नाम उस समय गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज हो गया, जब नई दिल्ली में 2000 छात्रों ने एक ही छत के नीचे ‘विश्व का सबसे बडा प्रायोगिक विज्ञान पाठ’ सफलतापूर्वक पूरा कर लिया. इन लोगों ने रसायन विज्ञान से जुडे दो प्रयोग किए और इसके साथ ही इन लोगों का नाम इतिहास में दर्ज हो गया. युवा विज्ञानियों द्वारा इस उपलब्धि को हासिल किया जाना कई लोगों को हैरत में डाल सकता है लेकिन शोध क्षेत्र में शीर्ष स्थान पर बैठे भारतीय रसायनविद विज्ञान से जुडे अन्य क्षेत्रों के लोगों को पीछे छोड चुके हैं.

दुनिया के जाने माने जर्नल नेचर इंडेक्स ने हाल ही में इस तथ्य के पक्ष में लिखा, ‘‘रसायन विज्ञान के क्षेत्र में, भारत के शीर्ष संस्थान यूरोप , अमेरिका और एशिया के संस्थानों से स्पर्धा योग्य हैं और वे विश्व के शीर्ष संस्थानों में गिने जाने के लायक हैं.’ हाल ही में देश ने प्रोफेसर सीएनआर राव को भारत-रत्न से सम्मानित किया था. इस बात से कोई हैरत नहीं होनी चाहिए कि राव भी विश्व के प्रमुख रसायनविदों में से एक हैं. सोमवार को कुहरे से ढकी एक ठंडी सुबह के समय आईआईटी दिल्ली के 2000 छात्र संस्थान के लॉन में सफेद लैब कोट पहनकर एक बडे से टैंट के नीचे एकत्र हुए. यहां उनका एक ही उद्देश्य था। यह उद्देश्य था गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपने लिए और देश के लिए स्थान बनाना.

हर किशोर रसायनविद जब यहां मेगा-लैब में दाखिल हुआ तो उन्हें एक कलाई का बैंड दिया गया, जिसपर एक क्रमबद्ध संख्या छपी थी और फिर हर एक की वीडियोग्राफी की गई थी ताकि संख्या का रिकॉर्ड रखा जा सके. इस दौरान लगभग 200 मेज बिछाई गई थीं और छात्रों ने अपनी-अपनी जगहें ले ली थीं। इनमंे से अधिकतर छात्र बेहद उत्साहित थे जबकि कुछ को नींद भी आ रही थी. इस अस्थायी प्रयोगशाला में तीन स्वतंत्र जजों ने कामकाज होते देखा. इनमें दिल्ली के विशेष पुलिस आयुक्त धर्मेंद्र कुमार शामिल थे, जिन्होंने संख्या पर नजर बनाए रखी. आईआईटी के निदेशक और मैकेनिकल इंजीनियर प्रोफेसर क्षितिज गुप्ता जहां थोडे नर्वस होकर घूम रहे थे, वहीं छात्रों में विश्वास साफ दिखाई दे रहा था.

मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी और विज्ञान मंत्री हर्षवर्धन द्वारा प्रोत्साहन से भरे शब्दों के बाद कोच्चि से आने वाले रसायन विज्ञान के एक अध्यापक ने छात्रों को ‘उत्प्रेरण’ पर पाठ पढाया. इसके बाद छात्र पांच-पांच के समूह में विभाजित होकर एक-एक मेज पर पहुंच गए. दस्ताने और लैबकोट पहनकर इन छात्रों ने कांच के बर्तनों का इस्तेमाल करते हुए पहले प्रयोग को अंजाम दिया। इसमें मिथाइलीन ब्लू नामक रसायन का रंग हाइड्रोजन परऑक्साइड की मदद से बदलवाना था. सभी 200 मेजों पर इस प्रयोग को पूरा किया गया और फिर दूसरे प्रयोग की ओर बढा गया, जिसमें ‘हाथियों का टूथ पेस्ट’ बनाया जाना था। हालांकि इससे पहले ही इस पूरे माहौल में थोडा राष्ट्रीयता का रंग देखने को मिला.

छात्र कतारों में बंट गए थे और हर मेज पर मापन सिलेंडर में झाग पैदा करने के लिए रसायनों को आपस में मिश्रित किया गय. कुछ समूहों ने हरे और नारंगी खाने वाले रंग डाले. जैसे ही पोटैशियम आयोडाइड और हाइड्रोजन परऑक्साइड की आपसी अभिक्रिया हुई तो भारी मात्रा में टूथपेस्ट जैसी रंगीन झाग बन गई. चूंकि छात्र मिनटों में कतारों में बंट गए थे तो ऐसे में पूरी लैब में भारतीय तिरंगे के रंग लहराने लगे. इसके बाद छात्रों ने अपनी लॉगशीटों पर नतीजे लिखे. दुनिया का सबसे बडा प्रायोगिक रसायन का पाठ अब पूरा हो चुका था और मौका था आपस में ‘सेल्फी’ लेकर जश्न बनाने का. इस बडे आयोजन को सहयोग देने वाले विज्ञान एवं तकनीकी मंत्रालय ने इस पाठ के आयोजन के साथ आयरलैंड का रिकॉर्ड तोड दिया है. इस साल की शुरुआत में आयरलैंड में 1339 छात्रों ने नया वैश्विक मापदंड स्थापित किया था.

इस सप्ताह यह आधिकारिक तौर पर घोषणा की गई थी कि भारत ने इस रिकॉर्ड की धारक रह चुकी रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्टरी को पीछे छोड दिया है. कुछ का कहना है कि यह आयोजन सिर्फ संख्याबल या उससे कुछ अधिक साबित करने के लिए था लेकिन जिन 2000 प्रतिभागियों ने इसमें भागीदारी की है, उनके दिलो दिमाग पर इसकी छवि हमेशा के लिए अंकित हो गई है क्योंकि कुछ ही लोग होते हैं जो गिनीज रिकॉर्ड बना पाते हैं. विज्ञान मंत्री हर्षवर्धन का मानना है कि यह बडा प्रयोग छात्रों को विज्ञान में करियर बनाने के लिए प्रेरित करेगा. इस माह की शुरुआत में ब्रितानी जर्नल नेचर इंडेक्स एक विशेष रिपोर्ट ‘इंडियन साइंस असेंडिंग’ (बढ रहा है भारतीय विज्ञान) लेकर आया था, जिसमें पिछले एक साल में प्रकाशित गुणवत्तापूर्ण शोधपत्रों के आधार पर देश को 13वें स्थान पर रखा गया था. भारत विज्ञान पर सिर्फ छह अरब डॉलर खर्च करता है जो कि सकल घरेलू उत्पाद का महज एक प्रतिशत है.

हाल ही में सीएनआर राव की ‘ए लाइफ इन केमिस्टरी’ भी विज्ञान के इस क्षेत्र में दक्षता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है. इनसे पहले दुनिया के सबसे जाने माने नोबेल विजेताओं में से एक प्रोफेसर हर गोविंद खुराना भी एक रसायन विद थे। उन्होंने जेनेटिक कोड का पता लगाया था। यहां तक कि दुनिया का संभवत: इकलौता और सबसे बडा असैन्य अनुसंधान एवं विकास तंत्र विज्ञान एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद स्थापित करने वाले शांति स्वरुप भटनागर भी एक रसायनशास्त्री ही थे.

आजादी के बाद के शुरुआती वर्षों में भारतीय रसायनविदों ने पर्याप्त योगदान करते हुए सस्ती जेनेरिक दवाआंे के निर्माण के लिए बाजार को निपुण बनाया. तभी आज भारत ‘विश्व की फार्मेसी’ कहलाता है. एड्स के इलाज के लिए सस्ती दवाओं से इस भयावह बीमारी पर लगभग काबू पाने में मदद मिली है. निश्चित तौर पर, भारतीय रसायनविद अपने समकक्षों से बेहतर प्रदर्शन करते आए हैं. ऐसे में नेचर इंडेक्स द्वारा रसायन विज्ञान के साथ भारत के ऐतिहासिक प्रेम को रेखांकित किया जाना हैरान नहीं करता.
(पीटीआई)

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