परमाणु रिएक्टर लगाने के लिए भारत-रुस के बीच समझौते की उम्मीद

नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बुधवार से शुरु हो रही यूरेशियाई देश की यात्रा के दौरान परमाणु उर्जा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के एक कदम के तहत भारत और रुस कुडनकुलम की पांचवी और छठी इकाइयों पर एक समझौते पर हस्ताक्षर कर सकते हैं. सूत्रों ने बताया कि सरकार विभिन्न राज्यों में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 20, 2015 2:54 PM

नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बुधवार से शुरु हो रही यूरेशियाई देश की यात्रा के दौरान परमाणु उर्जा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के एक कदम के तहत भारत और रुस कुडनकुलम की पांचवी और छठी इकाइयों पर एक समझौते पर हस्ताक्षर कर सकते हैं. सूत्रों ने बताया कि सरकार विभिन्न राज्यों में उपलब्ध परमाणु स्थलों का अधिकतम उपयोग करने की योजना भी बना रही है ताकि देश की बढ़ती उर्जा जरुरतों को पूरा करने के लिए और परमाणु रिएक्टर लगाए जा सकें.

मोदी रुसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ मास्को में एक सालाना शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए बुधवार को रुस जाने वाले हैं. प्रधानमंत्री की यात्रा से पहले भारत के परमाणु उर्जा विभाग डीएई के रुसी समकक्ष रोसातोम के उप प्रमुख कार्यपालक अधिकारी निकोलाई स्पास्की ने 7 और 8 दिसंबर को भारत का दौरा किया था. समझा जाता है कि इस यात्रा के दौरान उन्होंने मोदी के प्रवास के समय कुडनकुलम परमाणु उर्जा संयंत्र की पांचवी और छठी इकाइयों को लेकर एक समझौते पर हस्ताक्षर की संभावना के संबंध में डीएई के सचिव शेखर बसु के साथ बातचीत की थी.

रोसातोम ने बताया कि बातचीत के दौरान दोनों पक्षों ने सहयोग आगे बढ़ाने के कदमों के तौर पर कुडनकुलम एनपीपी की यूनिट एक की अंतिम स्वीकार्यता, यूनिट दो में न्यूनतम नियंत्रित उर्जा हासिल करने, यूनिट तीन और चार का निर्माण शुरु करने तथा यूनिट पांच और छह के लिए एक रुपरेखा करार पर हस्ताक्षर करने के मुद्दे पर चर्चा की. सूत्रों ने बताया कि समझौते के ब्यौरे पर भी विचार किया गया. समझा जाता है कि वीवीईआर प्रौद्योगिकी की यूनिट पांच और छह उतनी ही मेगावाट की होंगी जितनी मेगावाट की एक से चार तक की यूनिटें हैं. लेकिन परियोजना की लागत के ब्यौरे को अंतिम रुप दिया जाना है.

एक बड़ा नीतिगत फैसला यह हो सकता है कि सरकार इस बात पर जोर देगी कि राज्यों के पास एक स्थल पर एक से अधिक रिएक्टर होने चाहिए. यह फैसला परमाणु स्थल निर्माण के लिए उपलब्ध स्थान सीमित होने के संदर्भ में किया गया है. इस कदम से परमाणु संयंत्रों के खिलाफ आम राय के मद्देनजर लोकेशन संबंधी जटिल मुद्दे के हल में मदद मिलेगी और अवसंरचना संबंधी लागत भी कम होगी. ऐसा इसलिए होगा क्योंकि डीएई को अपने कर्मचारियों के लिए कालोनी, स्कूल आदि जैसी अवसंरचना निर्माण में खर्च नहीं करना पडेगा क्योंकि वर्तमान स्थलों में यह सब है. साथ ही सुरक्षा कर्मियों की तैनाती का मुद्दा भी हल हो जाएगा.

सरकार फ्रांसीसी प्रौद्योगिकी से महाराष्ट्र में बन रही जैतापुर परियोजना, आंध्रप्रदेश में निर्माणाधीन कोवद्दा परियोजना और गुजरात में निर्माणाधीन मीठी विरधी परियोजना में छह और रिएक्टरों का निर्माण कर रही है.

Next Article

Exit mobile version