नयी दिल्ली : सातवें वेतन अायोग की सिफारिशों के लागू होने के एक हफ्ते के भीतर ही सरकार को सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की सैलरी बढ़ानी पड़ सकती है.जजों के रैंक के मद्देनजर वेतन में समानता सुनिश्चित करने के मकसद से ऐसा करना जरूरी होगा. गौर हो कि जस्टिस एके माथुर की अध्यक्षता वाले सातवें वेतन आयोग ने केंद्र सरकार को अपनी सिफारिशें सौंप दी हैं और सरकार ने इसपर अमल करना भी शुरू कर दिया है. आयोग ने सिफारिश की है किएक जनवरी 2016 से सरकारी कर्मचारियों को आयोग की सिफारिशों के अनुसार बढ़ा हुआ वेतन दिया जाए.
हिंदीदैनिक समाचार पत्रमेंछपे रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के एक अधिकारीकेअनुसारसातवेंवेतनअायोग की तरफ से प्रस्तावित नये स्केल से जजों की सैलरीअधिकारियों से कम हो जाएगी. इस अंतर को आमतौर पर वेतनअायोग की सिफारिशों के अमल के एक सप्ताह के भीतर ठीक किया जाता है. अधिकारी के मुताबिक छठेवेतनअायोग को लागू करने पर सरकार कोन्यायिक अधिकारियों के एरियर पर चालिस करोड़ रुपये खर्च करने पड़े थे. वेतन में बराबरी सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की सैलरी में बढ़ोतरी करनी होगी और इसके लिए सैलरी से जुड़े कानून में संशोधन करना होगा. संसद के बजट सत्र के दौरान इस कानून में संशोधन किया जाएगा.
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के जज को तमाम कटौतियों के बाद सैलरी और भत्ते के रूप मेंडेढ़ लाख रुपये महीना मिलता है. वहीं, परंपरा के मुताबिक चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को कैबिनेट सेक्रेटरी के बराबर सैलरी मिलती है. जबकि बाकी जजों की सैलरीवरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के बराबर होती हैं. राज्यों में हाई कोर्ट के जजों की सैलरी प्रिंसिपल सेक्रेटरी के बराबर है.