नयी दिल्ली : राज्यसभा में मंगलवार को किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) विधेयक 2015 ध्वनिमत से पारित हो गया. इस बिल में जघन्य अपराधों के लिए नाबालिग की उम्र सीमा 18 से घटाकर 16 कर दिया गया है. वोटिंग से पहले सीपीएम ने वॉक आउट किया. निर्भया के माता-पिता भी इस बिल पर बहस के दौरान राज्यसभा में मौजूद थे. इससे पहले सभी दलों के सदस्यों ने ऐसी घटनाओं पर रोक लगाने के लिए कठोर कदम उठाने की बात कही. साथ ही किशोर अपराधों की बढ़ती घटनाओं पर भी चिंता जतायी. लोकसभा इस बिलको पहले ही पारित कर चुकी है. विधेयक को मंजूरी के लिए अब राष्ट्रपति के पास भेजा जायेगा.
निर्भया केस पर असर नहीं
इससे पहले महिला व बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) विधेयक 2015 सदन में चर्चा के लिए रखते हुए कहा कि इसके प्रावधानों से निर्भया मामले में भले ही असर नहीं होता हो, लेकिन आगे के मामलों में नाबालिगों को रोका जा सकता है. कांग्रेस से कहा कि यह विधेयक आपका ही है. आपने इसकी शुरुआत की थी.
क्या कहा बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने
चर्चा का जवाब देते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि इस कानून के तहत जघन्य अपराधों में वे ही अपराध शामिल किये गये हैं जिन्हें भारतीय दंड विधान संगीन अपराध मानता है. इनमें हत्या, बलात्कार, फिरौती के लिए अपहरण, तेजाब हमला आदि अपराध शामिल हैं. उन्होंने संगीन अपराध के लिए किशोर माने जाने की उम्र 18 से 16 वर्ष करने पर कुछ सदस्यों की आपत्ति पर कहा कि अमेरिका के कई राज्यों, चीन, फ्रांस सहित कई देशों में इन अपराधों के लिए किशोर की आयु नौ से लेकर 14 साल तक की है. उन्होंने कहा कि यदि पुलिस के आकडों पर भरोसा किया जाए तो भारत में 16 से 18 वर्ष की आयु वाले बच्चों में अपराध का चलन तेजी से बढ़ा है. मेनका ने किशोर न्याय बोर्ड में किशोर आरोपी की मानसिक स्थिति तय करने की लंबी प्रक्रिया के संदर्भ में कहा कि ऐसा प्रावधान इसीलिए रखा गया है ताकि किसी निर्दोष को सजा न मिले.
नये बिल में क्या
रेप और हत्या जैसे जघन्य अपराधों में 16-18 साल के अपराधियों को वयस्क माना जायेगा और उनपर वयस्कों की तरह ही केस चलेगा.
रेप और हत्या जैसे जघन्य अपराध करने वाले 16-18 साल के किसी भी अपराधी पर केस तभी चलाया जायेगा जब वो 21 साल का हो जायेगा.
विधेयक में जघन्य अपराधों की श्रेणी में बलात्कार, तेजाब फेंकने, हत्या के साथ पांच आैर मामलाें काे शामिल किया गया है.
बिल में देश के हर जिले में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (जेजेबी) और चाइल्ड वेलफेयर कमिटी (सीडबल्यूसी) बनाये जाने का प्रावधान है.
जेजेबी के पास इस बात का फैसला करने का अधिकार होगा कि नाबालिग अपराधी को बाल सुधार गृह भेजा जाये या उस पर वयस्कों की तरह केस चले.
बच्चों के साथ दरिंदगी करने, बच्चों को ड्रग्स देने या बच्चों को अगवा करने/बेचने के अपराध में सजा वही रहेगी, जो पुराने बिल में है.