नयी दिल्ली : वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में उठापटक और अस्थिरता के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन को ‘काफी संतोषजनक’ बताया है. उन्होंने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था में गतिविधियां नहीं बढ़ने की जो आवाजें उठ रही हैं वह यहां की जीवनशैली का हिस्सा बन चुके – निराशावाद’ की वजह से है. वित्त मंत्री ने वर्ष 2015 पर गौर करते हुये कहा कि वैश्विक मंदी और प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद 7 से 7.5 प्रतिशत वृद्धि की संभावनाओं के साथ भारत दुनियाभर में चमकता हुआ आकर्षक स्थान बना रहा. उन्होंने उम्मीद जताई कि आर्थिक वृद्धि अच्छी है और आने वाले महीनों में इसमें और सुधार होगा.
जेटली ने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में छाई मंदी से उत्पन्न चुनौती में भारत की प्रतिक्रिया अच्छी रही है. हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि कि कुछ क्षेत्र हैं जहां हमें तेजी से काम करना होगा. वित्त मंत्री पीटीआई-भाषा को दिये साक्षात्कार में कहा कि वर्ष की समाप्ति पर जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं तो मुझे काफी संतोष होता है.उन्होंने कहा कि देश की वित्तीय बुनियाद काफी मजबूत है.
नयी प्राथमिकताएं
वित्त मंत्री ने नये साल की अपनी प्राथमिकताओं को गिनाते हुये कहा कि वह ढांचागत सुधारों को जारी रखेंगे और वस्तु एवं सेवा कर जीएसटी:, प्रत्यक्ष करों को तर्कसंगत बनाना तथा कारोबार सुगमता उनकी प्राथमिकताओं में शामिल रहेगा. उन्होंने कहा कि यह काम करने के बाद, मैं मुख्यतौर पर तीन बातों पर ध्यान दूंगा-भौतिक बुनियादी ढांचा, सामाजिक अवसंरचना के लिये अधिक धन और अंत में सिंचाई के लिये अधिक धन, इस क्षेत्र को काफी नजरंदाज किया गया. वित्त मंत्री से जब यह पूछा गया कि अर्थव्यवस्था में वास्तविक सुधार नहीं आ रहा है इस तरह की आवाजें उठ रहीं हैं, जेटली ने ऐसी बातों को तवज्जो नहीं देते हुये इन्हें खारिज कर दिया और कहा कि अर्थव्यवस्था में गतिविधियां बढ़े बिना राजस्व प्राप्ति नहीं बढ़ती है. उन्होंने कहा कि भारत में निराशावाद जीवनशैली का हिस्सा है. आप किसी अन्य आंकडे को लेकर सवाल खड़ा कर सकते हैं लेकिन राजस्व में हुई वास्तविक वृद्धि को लेकर सवाल नहीं उठा सकते हैं. राजस्व में हुई वास्तविक वृद्धि यह दर्शाती है कि अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन बेहतर है. यह पूछे जाने पर कि क्या भारतीय उद्योग भी इस तरह के निराशावाद का शिकार है, जवाब में वित्त मंत्री ने कहा कि मेरा मानना है कि भारतीय उद्योग के एक वर्ग ने जरुरत से ज्यादा फैलाव किया है और जिन्होंने ऐसा किया, यह एक समस्या पूरी दुनिया में है.
चुनौतियों का सामना
चीन में सुस्ती के अलावा विश्व बाजार में उपभोक्ता जिंसों के दाम घटने से उत्पन्न चुनौती के साथ साथ भारत को लगातार दो बार कमजोर मानसून और निजी क्षेत्र के कमजोर निवेश जैसी घरेलू चुनौतियों का भी सामना करना पडा है. इन सब बातों की वजह से हमारे लिये घरेलू अर्थव्यवस्था का प्रबंधन एक बड़ी चुनौती बन गया. उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र का निवेश लगातार कम बना हुआ है क्योंकि निजी क्षेत्र ने जरुरत से ज्यादा विस्तार किया है. उनके पास जरूरत से ज्यादा उत्पादन क्षमता है जबकि मांग धीमी है. जेटली ने कहा कि सरकार ने सार्वजनिक निवेश बढाकर इन चुनौतियों का बेहतर जवाब देने का प्रयास किया. इसके साथ ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 40 प्रतिशत वृद्धि हासिल की गयी और खपत में नई स्फूर्ति आयी है. उन्होंने कहा कि सरकार को विश्व बाजार में कच्चे तेल की कम कीमतों से जो बचत हुई उसका इस्तेमाल ढांचागत सुविधाओं में किया गया.
निवेश में सकारात्मकता
इसके परिणामस्वरुप राष्ट्रीय राजमार्गों , ग्रामीण सड़कों और रेलवे क्षेत्र में निवेश में उल्लेखनीय सुधार आया है. बंदरगाह क्षेत्र में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा दिया गया है. जेटली ने कहा कि इसके परिणामस्वरूप, वैश्विक सुस्ती और प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद 7 से 7.5 प्रतिशत वृद्धि संभावनाओं के साथ भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक चमकता आकर्षक स्थान है. यह वृद्धि संभावना हमारे 8 प्रतिशत के लक्ष्य से कम है. मुझे इसमें कोई शक नहीं है कि यदि मानसून सामान्य रहता तो हम अपने वृद्धि लक्ष्य के आसपास होते.
सेवा क्षेत्र हुआ है मजबूत
जेटली ने कहा कि सेवा क्षेत्र लगातार मजबूत बना हुआ है, जबकि ‘‘विनिर्माण और आईआईपी औद्योगिक उत्पादन सूचकांक: में सुधार इस साल के गौर करने वाले आंकड़े हैं. अप्रत्यक्ष कर संग्रह में हुई रिकार्ड वृद्धि में भी इसका असर दिख रहा है. वित्त मंत्री ने वर्ष 2015 के वृहद आर्थिक रझानों के बारे में संक्षिप्त ब्योरा देते हुये कहा कि मुद्रास्फीति नियंत्रण में बनी हुई है, रेपो दर में इस साल 1.25 प्रतिशत कमी हुई है. विदेशी मुद्रा भंडार जैसा हमेशा रहता आया है उतना ही बेहतर है. डालर के समक्ष दुनिया की दूसरी अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले हमारी स्थिति काफी स्थिर रही है. उन्होंने कहा कि वर्ष 2015 अर्थव्यवस्था के लिहाज से काफी चुनौतीपूर्ण साल रहा, क्योंकि इस दौरान विश्व अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट का रख रहा.