कांग्रेस मुखपत्र विवाद : निरुपम पर कार्रवाई की मांग

मुंबई : मुंबई कांग्रेस के मुखपत्र में पार्टी के आयकोन पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और वर्तमान अध्‍यक्ष सोनिया गांधी की आलोचन वाले लेख के प्रकाशन का विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. तत्‍काल कार्रवाई करते हुए मुंबई से छपने वाले कांग्रेस के मुखपत्र ‘कांग्रेस दर्शन’ में छपे एक लेख पर विवाद के चलते […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 29, 2015 8:05 AM

मुंबई : मुंबई कांग्रेस के मुखपत्र में पार्टी के आयकोन पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और वर्तमान अध्‍यक्ष सोनिया गांधी की आलोचन वाले लेख के प्रकाशन का विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. तत्‍काल कार्रवाई करते हुए मुंबई से छपने वाले कांग्रेस के मुखपत्र ‘कांग्रेस दर्शन’ में छपे एक लेख पर विवाद के चलते इसके कंटेन्ट एडिटर सुधीर जोशी को बर्खास्त कर दिया गया है. इसके बावजूद भी पार्टी के बड़े नेता चीफ एडिटर संजय निरुपम पर कार्रवाई करने की मांग कर रहे हैं. कांग्रेस के लिए सोमवार को उस वक्त शर्मिंदगी और असहज स्थिति पैदा हो गई जब उसी के मुखपत्र ने जवाहरलाल नेहरु की चीन नीति पर सवाल खडे किए और सोनिया गांधी के पिता को ‘फासीवादी सैनिक’ करार दिया.

इस मामले को लेकर पार्टी की मुंबई इकाई के अध्यक्ष संजय निरुपम ने माफी मांगी और संपादकीय प्रभारी को बर्खास्त कर दिया गया. पार्टी की मुंबई इकाई के मुखपत्र ‘कांग्रेस दर्शन’ में छपे दो लेखों में से एक में ‘कश्मीर, चीन और तिब्बत संबंधी मसलों’ के लिए नेहरु को जिम्मेदार ठहराया गया है तो दूसरे लेख में पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी के माता-पिता को लेकर विवादास्पद टिप्पणियां की गयी हैं. अजीबोगरीब बात यह है कि इस बार के अंक का मुख्य केंद्रबिंदु सोनिया द्वारा पार्टी को दी गयी सेवाओं तथा कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद से उनकी उपलब्धियों को लेकर था. पत्रिका के कवर पर सोनिया गांधी की तस्वीर भी है.

इन दोनों लेख के छपने के बाद कांग्रेस के लिए असहज स्थिति पैदा हो गयी. मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष निरुपम ने माफी मांगी और कहा कि मैं केवल नाम मात्र का संपादक हूं. पत्रिका का एक लेख देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के मकसद से छपा है जिसमें नेहरु और पटेल के बीच के ‘तनावपूर्ण’ संबंधों का हवाला दिया गया है. लेख में 1950 में कथित तौर पर पटेल के लिखे एक पत्र का हवाला दिया गया है, जिसमें उन्होंने तिब्बत को लेकर चीन की नीति के खिलाफ नेहरु को आगाह करते हुए चीन को ‘एक विश्वासघाती और भविष्य में भारत का दुश्मन बताया था.’

इसके अनुसार, ‘अगर वह (नेहरू) पटेल की बात सुनते तो आज कश्मीर, चीन, तिब्बत और नेपाल की समस्याएं नहीं होतीं. पटेल ने कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में उठाने के नेहरू के कदम का भी विरोध किया था और नेहरू नेपाल पर पटेल के विचारों से सहमत नहीं थे.’ कांग्रेस अध्यक्ष पर केंद्रित एक अन्य लेख में सोनिया के शुरुआती जीवन के बारे में विस्तार से बताया गया है. इसमें सोनिया की ‘एयरहोस्टेस बनने की महत्वाकांक्षा’ के बारे में बात की गयी है और साथ ही दावा किया गया है कि उनके पिता विश्व युद्ध में रूस से हारने वाले इतालवी बलों के सदस्य थे.

इसमें कहा गया है, ‘सोनिया गांधी के पिता स्टेफनो मायनो एक पूर्व फासीवादी सैनिक थे.’ लेख में कहा गया है, ‘सोनिया गांधी ने 1997 में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्य के तौर पर पंजीकरण कराया और वह 62 दिनों में पार्टी की अध्यक्ष बन गयीं.’ उन्होंने सरकार गठित करने की भी असफल कोशिश की.’ मुंबई क्षेत्रीय कांग्रेस समिति (एमआरसीसी) के प्रमुख और मुखपत्र के संपादक निरुपम ने शुरू में इन लेखों से खुद को अलग कर लिया था, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी ‘गलती’ स्वीकारी.

कांग्रेस के सियासी जख्मों को कुदेरते हुए केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा नेता प्रकाश जावडेकर ने निरुपम को ‘बधाई’ दी और कहा कि निरुपम इस तरह के लेखों के लिए जाने जाते थे, जब वह शिवसेना के मुखपत्र के हिंदी संस्करण ‘दोपहर का सामना’ के संपादक हुआ करते थे. जावडेकर ने कहा, ‘कांग्रेस के जिस मुखपत्र का नाम ‘कांग्रेस दर्शन’ है उसे ‘सत्यार्थ दर्शन’ कहा जाना चाहिए. यह महत्वपूर्ण है कि यह सब पार्टी के 131वें स्थापना दिवस पर आया है. प्रधानमंत्री बनने को लेकर सरदार पटेल को कांग्रेस में अधिकतम समर्थन हासिल था, लेकिन गांधी जी ने नेहरु का नाम प्रस्तावित किया और पटेल को पीछे छोड दिया.’

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