न्यायलय ने गुजरात पुलिस को हार्दिक के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करने की इजाजत दी
नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने पटेल समुदाय के लिये आरक्षण आंदोलन का नेतृत्व करने वाले हार्दिक पटेल के खिलाफ दर्ज एक आपराधिक मामले में अदालत में आठ जनवरी या उससे पहले आरोप पत्र दाखिल करने की गुजरात पुलिस को आज अनुमति दे दी. यह मामला पटेल समुदाय को कथित रुप से पुलिसकर्मियों की हत्या […]
नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने पटेल समुदाय के लिये आरक्षण आंदोलन का नेतृत्व करने वाले हार्दिक पटेल के खिलाफ दर्ज एक आपराधिक मामले में अदालत में आठ जनवरी या उससे पहले आरोप पत्र दाखिल करने की गुजरात पुलिस को आज अनुमति दे दी. यह मामला पटेल समुदाय को कथित रुप से पुलिसकर्मियों की हत्या के लिये उकसाने और गुजरात सरकार के खिलाफ युद्ध छेडने के लिये हिंसक तरीके अपनाने के आरोप में दर्ज किया गया है. शीर्ष अदालत में गुजरात की ओर से अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने आरोप पत्र दाखिल करने की अनुमति देने का अनुरोध करते हुये कहा कि यदि यह दाखिल नहीं की गयी तो आरोपी जमानत पाने का हकदार हो जायेगा.
हालांकि, न्यायमूर्ति जे एस खेहड और न्यायमूर्ति सी नागप्पन की पीठ ने पुलिस के आरोप पत्र के मसौदे पर गौर करने से इंकार कर दिया.पीठ ने कहा, ‘‘इस पर गौर करना अनुचित होगा. निचली अदालत में आठ जनवरी, 2016 को या इससे पहले आरोप पत्र दाखिल किया जाये. आरोप पत्र की एक प्रति निचली अदालत में आरोपी के वकील को मुहैया करायी जायेगी.” शीर्ष अदालत ने इस मामले पर अब 14 जनवरी को आगे सुनवाई करने का निश्चय किया है.
न्यायालय उसी दिन हार्दिक पटेल की एक अन्य याचिका की भी सुनवाई करेगा जिसमें उसके तथा अन्य के खिलाफ राज्य में थानों जैसे स्थानों पर कथित रुप से हमला करने की घटना के सिलसिले में दर्ज राजद्रोह का आरोप निरस्त करने से इंकार करने के उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती दी गयी है.
राज्य पुलिस ने 22 वर्षीय हार्दिक पटेल और उसके पांच साथियों के खिलाफ पिछले साल अक्तूबर में यह मामला दर्ज किया था. इस मामले में सभी के खिलाफ राजद्रोह और सरकार के खिलाफ युद्ध छेडने के आरोप हैं.बाद में, हार्दिक, चिराग पटेल, दिनेश बंभनिया और केतन पटेल को गिरफ्तार किया गया था. ये सभी इस समय जेल में हैं. हार्दिक के दो अन्य सहयोगियों अमरीश पटेल और अल्पेश कथीरिया को गिरफ्तार नहीं किया गया था क्योंकि उन्हें उच्च न्यायालय ने अंतरिम संरक्षण प्रदेान कर दिया था.
हार्दिक पटेल और पांच अन्य के खिलाफ राजद्रोह के आरोप में दर्ज प्राथमिकी में कहा गया था कि इस युवा नेता ने पुलिसकर्मियों की हत्या करने और राज्य सरकार के खिलाफ युद्ध छेडने के लिये हिंसक तरीके अपनाने के लिये कथित रुप से अपने समुदाय को उकसाया था.
उच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की तीन धाराओं धारा 121 (सरकार के खिलाफ युद्ध छेडना) धारा 153-ए (विभिन्न समुदायों के बीच कटुता पैदा करना) और धारा 153-बी (राष्ट्र की अखंडता को नुकसान पहुंचाने वाले कथन) को हार्दिक और उसके पांच साथियों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी से हटा दिया था.
लेकिन उच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124 (राजद्रोह)और धारा 121-ए (सरकार के खिलाफ युद्ध छेडने की साजिश) को हटाने से इंकार कर दिया था . इन दोनों धाराओं के तहत अपराध सिद्ध होने पर उम्र कैद या दस साल तक की कैद हो सकती है.
एक अन्य याचिका में हार्दिक ने राजद्रोह का आरोप निरस्त करने से इंकार करने संबंधी उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी है. हार्दिक ने याचिका में कहा है कि ये आरोप उनके खिलाफ गलत तरीके से लगाये गये हैं क्योंकि सरकार के खिलाफ युद्ध छेडने की कोई साजिश नहीं थी और अधिक से अधिक यह ‘असंयमित भाषा’ के इस्तेमाल का मामला हो सकता है जिसके लिये अन्य प्रावधानों के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है.