राहुल ने कहा, समलैं‍गिकता को लोगों पर छोड़ देना चाहिए, ये व्‍यक्तिगत पसंद है

नयी दिल्ली : कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने आज उच्चतम न्यायलय के उस फैसले पर विरोध जताया जिसमें समलैंगिकता को अवैध बताया गया है. उन्होंने कहा कि वह दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसले से सहमत है जिसने समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था.वहीं,दिल्ली में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 12, 2013 5:46 PM

नयी दिल्ली : कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने आज उच्चतम न्यायलय के उस फैसले पर विरोध जताया जिसमें समलैंगिकता को अवैध बताया गया है. उन्होंने कहा कि वह दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसले से सहमत है जिसने समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था.वहीं,दिल्ली में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस के आप पार्टी को समर्थन दिए जाने के बारे में पूछे गए एक सवाल पर राहुल गांधी ने कहा कि इस पर विचार किया जा रहा है.

राहुल गांधी ने यहां मीडिया को दी अपनी संक्षिप्त टिप्पणी में कहा, ‘‘मैं व्यक्तिगत रुप से मानता हूं कि ये व्यक्तिगत आजादी के मामले हैं. मैं सोचता हूं, मैं उच्च न्यायालय के फैसले से ज्यादा सहमत हूं.’’ हालांकि राहुल ने संवाददाताओं के किसी सवाल का जवाब नहीं दिया.दिल्ली उच्च न्यायालय ने समलैंगिकता को वैध बताया था लेकिन उच्चतम न्यायालय ने इस फैसले को पलट दिया.राहुल ने कहा,‘‘मैं समझता हूं इन मामलों को लोगों पर छोड़ दिया जाना चाहिए. ये व्यक्तिगत पसंद हैं.

यह देश अपनी स्वतंत्रता, बोलने की आजादी के लिए जाना जाता है. इसलिए इसे वैसे ही रहने दिया जाये.’’ समलैंगिकता पर राहुल गांधी की टिप्पणी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की प्रतिक्रिया के कुछ घंटे बाद आयी है. सोनिया ने आज कहा कि उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय द्वारा पलटे जाने से निराशा हुई है. उन्होंने साथ ही उम्मीद जतायी कि संसद इस मामले को सुलझाएगी.

संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा, ‘‘ मुझे उम्मीद है कि संसद इस मुद्दे का समाधान निकालेगी और भारत के सभी नागरिकों को संविधान द्वारा प्रदत्त जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करेगी जिसमें वे नागरिक भी शामिल हैं जो इस फैसले से सीधे प्रभावित हुए हैं.’’ गौरतलब है कि समलैंगिक समुदाय को एक तगड़ा झटका देते हुए उच्चतम न्यायालय ने कल उच्च न्यायालय के फैसले को पलट कर इसे आपराधिक दंड संहिता के तहत एक गैरकानूनी कृत्य करार दिया और कानून में संशोधन के लिए गेंद संसद के पाले में डाल दी.

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