देश का 12 प्रतिशत भू-भाग भूकंप की अत्यंत गंभीर आशंका वाला क्षेत्र

नयी दिल्ली : देश के 12 प्रतिशत इलाके भूकंप की दृष्टि से अत्यंत गंभीर आशंका वाले क्षेत्र श्रेणी 5 में आते हैं जबकि 18 प्रतिशत क्षेत्र गंभीर आशंका वाले श्रेणी 4 में हैं. सूचना के अधिकार : आरटीआई : के तहत पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत काम कर रहे भारतीय मौसत विभाग की जानकारी के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 17, 2016 1:27 PM

नयी दिल्ली : देश के 12 प्रतिशत इलाके भूकंप की दृष्टि से अत्यंत गंभीर आशंका वाले क्षेत्र श्रेणी 5 में आते हैं जबकि 18 प्रतिशत क्षेत्र गंभीर आशंका वाले श्रेणी 4 में हैं. सूचना के अधिकार : आरटीआई : के तहत पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत काम कर रहे भारतीय मौसत विभाग की जानकारी के अनुसार, देश के 27 प्रतिशत क्षेत्रों को भूकंप की दृष्टि से मध्यम प्रभाव की आशंका वाले क्षेत्र श्रेणी 3 के रुप में चिन्हित किया गया है जबकि 43 प्रतिशत क्षेत्र कम प्रभाव वाले क्षेत्र श्रेणी 2 के रुप में चिन्हित किये गए हैं.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, भयंकर भूकंप आने की आशंका की दृष्टि से श्रेणी 5 में गुवाहाटी, श्रीनगर जैसे शहर आते हैं जबकि दिल्ली श्रेणी 4 में आता है. मुम्बई और चेन्नई जैसे शहर श्रेणी 3 में आते हैं. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान से प्राप्त जानकारी के अनुसार, हिमालयी क्षेत्र को यूरोप के आल्पस पवर्तीय क्षेत्र की तुलना में अधिक भूस्खलन का सामना करना पडता है क्योंकि हिमालय तुलनात्मक दृष्टि से अपरिपक्व, युवा तथा भू परिस्थितिकी एवं जलवायु की दृष्टि से संवेदनशील प्रकृति का पर्वत है. भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण :जीएसआई: भूस्खलन का अध्ययन करने वाली शीर्ष संस्था है और यह भूस्खलन के संबंध में आपदा से पूर्व और इसके बाद दोनों तरह का अध्ययन करती है.

आपदा से पूर्व अध्ययन के तहत जीएसआई भूस्खलन की आशंका का नक्शा तैयार करता है ताकि उन क्षेत्रोंं की पहचान की जा सकें जहां ढलान टूटने की आशंका हो. आरटीआई के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार, जीएसआई आपदा पूर्व योजना तैयार करने के लिए मंदाकिनी घाटी, दार्जिलिंग और निलगिरि जिलों में भूस्खलन के खतरों का विश्लेषण करने और डीआरडीओ के साथ सहयोग करते हुए नरेन्द्रनगर में पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित करने पर काम कर रहा है. दिल्ली स्थिति आरटीआई कार्यकर्ता गोपाल प्रसाद ने सूचना के अधिकार के तहत विभिन्न विभागों से भूकंप, भूस्खलन की आशंका, प्रभावों तथा सरकार की तैयारियों के बारे में जानकारी मांगी थी.

भूकंप के विनाशकारी प्रभावों को देखते हुए देश विदेश में भूकंप का पूर्वानुमान व्यक्त करने की प्रणाली विकसित करने की दिशा में पहल की जा रही है. हाल ही संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में सरकार ने बताया था कि उत्तराखंड में ताइवान ने आईआईटी रुडकी के साथ भूकंप का पूर्वानुमान लगाने के क्षेत्र में सहयोग की पहल की है. इस विषय पर जाने माने वैज्ञानिक प्रो. यशपाल ने कहा कि महाराष्ट्र का कोयना ऐसा क्षेत्र है जहां ऐसे प्रयोगों से इस दिशा में जरुर कुछ सफलता मिल सकती है. पृथ्वी की परतों की बनावट एवं हलचलों की जानकारी प्राप्त करने की कोशिशों के सार्थक परिणाम आ सकते हैं. क्योंकि हमें अभी तक इस बात की जानकारी नहीं है कि भूकंप के केंद्र वाले क्षेत्र में वास्तव में क्या हुआ. गहरे बोरवेल की परियोजना के तहत कोएना में अभी दो बोरवेल तैयार किये गए हैं जहां भूकंप का अध्ययन किया जायेगा.

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के दृष्टि पत्र के अनुसार, कोयना में गहरे बोरवेल के प्रयोग से पृथ्वी की फाल्टी भू संरचना और चट्टानों की भौतिक प्रकृति, तरल पदार्थो की संरचना और प्रवाह आदि के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकेगी. इसके साथ ही पृथ्वी के अंदर होने वाली रासायनिक प्रतिक्रिया तथा दबाव वाले क्षेत्र के बारे में आंकडा जुटाया जा सकेगा.

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