आप की कामयाबी के छिपे रुस्तम, सोशल मीडिया को बनाया हथियार

अरविंद केजरीवाल की पार्टी आप ने परंपरागत राजनीति के ढर्रे को बदलने की शुरुआत की है. नये मुहावरे गढ़े हैं. इसने दिल्ली में एक नये राजनीतिक प्रयोग की नींव रखी. पके-पकाये राजनेताओं और राजनीति के तमाम घाघ खिलाड़ियों के हर छल-बल को उसने अपनी मामूली-सी हस्ती के बावजूद बेअसर कर दिया. हम आज से एक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 13, 2013 8:18 AM

अरविंद केजरीवाल की पार्टी आप ने परंपरागत राजनीति के ढर्रे को बदलने की शुरुआत की है. नये मुहावरे गढ़े हैं. इसने दिल्ली में एक नये राजनीतिक प्रयोग की नींव रखी. पके-पकाये राजनेताओं और राजनीति के तमाम घाघ खिलाड़ियों के हर छल-बल को उसने अपनी मामूली-सी हस्ती के बावजूद बेअसर कर दिया. हम आज से एक नयी श्रृंखला शुरू कर रहे हैं. जानिए, आप पार्टी के उन रणनीतिकारों को, जिन्होंने परदे के पीछे रह कर आप को निर्णायक जीत दिलायी.

नयी दिल्ली : कहते हैं पिता से मिली सीख बेटे के जीवन की दिशा तय करती है. आम आदमी पार्टी की सोशल मीडिया टीम से जुड़े 29 वर्षीय अंकित लाल के बारे में जान कर यह सच लगता है.

अंकित बेबाकी से कहते, मेरे दादा 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़े थे, पिता जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से. ऐसे में जब अन्ना हजारे के नेतृत्व में जनलोकपाल की मांग उठी, लोग जंतर-मंतर पर एकत्रित होने लगे, तो मैं भी खुद को इस आंदोलन से जुड़ने से रोक नहीं पाया. उस समय मैं नोएडा की एक आइटी कंपनी से जुड़ा हुआ था. अप्रैल, 2011 में एक वालंटियर के रूप में इस आंदोलन से जुड़ा. फिर आगे मैंने नौकरी छोड़ दीऔर पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गया.

यह पूछे जाने पर कि आंदोलन से जुड़ने और नौकरी छोड़ने को लेकर घर के लोगों की, खास कर पिता की क्या राय रही, अंकित कहते हैं कि कई सवाल उठे, पिता ने अपना वाकया सुनाते हुए भविष्य को लेकर आशंकाएं जाहिर कीं. वे भी जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के दौरान दो वर्ष तक अपना कॉलेज छोड़ कर आंदोलन से जुड़े रहे थे. उन्होंने मुझे रोका नहीं, लेकिन यह जरूर पूछा कि आगे क्या करोगे?

शिवेंद्र सिंह की टीम में शामिल होकर सोशल मीडिया का कामकाज संभालनेवाले अंकित ने आंदोलन और पार्टी के नाम पर अन्ना टीम में हुए बिखराव के बाद केजरीवाल के साथ जुड़े रहना मुनासिब समझा, जबकि शिवेंद्र अन्ना हजारे के साथ जुड़े. जनवरी, 2012 से वे लगातार अपनी नौकरी छोड़ कर आप की सोशल मीडिया टीम से जुड़े हैं.

अंकित कहते हैं, शुरुआती दौर में आंदोलन में उमड़ती भीड़ को देखते हुए बार-बार यह सवाल उठा कि यह जमावड़ा सोशल मीडिया का है. कुछ हद तक इस बात में सच्चई भी हो सकती है, लेकिन आम लोगों ने इस पार्टी से जुड़ कर इसको सफल बनाया है. अगर ऐसा नहीं होता, तो इतनी बड़ी सफलता हमें नहीं मिलती. यह पूछे जाने पर कि क्या आप के फिर से चुनाव में जाने के फैसले को लेकर उन्हें कुछ आशंका है, उन्होंने कहा कि बिल्कुल नहीं. हम आगामी चुनाव में और मजबूती से उभरेंगे. आप द्वारा लोकसभा चुनाव में उतरने के फैसले के बाद अपनी भूमिका को नये सिरे से गढ़ने और बढ़ी हुई जिम्मेवारी को सहर्ष स्वीकार करने को तैयार अंकित और उनकी टीम की निगाह वर्ष 2014 के आम चुनाव पर है.

अंकित कहते हैं, इतने बड़े पैमाने पर पैसा और संसाधन खर्च करने के बावजूद बड़े दल हमारी टीम के मुकाबले लोगों को अपने साथ जोड़ने में विफल रहे हैं. इसका प्रमुख कारण इन पार्टियों में पारदर्शिता का अभाव है. हम जिस पारदर्शी तरीके से फेसबुक, ट्वीटर एवं अन्य माध्यमों पर जनता द्वारा उठाये गये सवालों पर अपनी राय रखते हैं, उनकी हर आशंकाओं को दूर करने का प्रयास करते हैं, इससे हमारी टीम के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ा है. और इसी विश्वास के सहारे हम लोकसभा चुनाव में देश भर के शहरी-ग्रामीण सभी मतदाताओं से रू-ब-रू होने का भरपूर प्रयास करेंगे. यही बात सही है कि ग्रामीण क्षेत्रों में सोशल मीडिया का इस्तेमाल करनेवालों की संख्या अपेक्षाकृत कम है. लेकिन मोबाइल क्रांति के प्रसार से ग्रामीण क्षेत्रों में भी इंटरनेट के इस्तेमाल करनेवालों की संख्या बढ़ी है. महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में बड़ी संख्या में लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं.

इन मतदाताओं को हमारी टीम अपनी पार्टी की नीतियों, सिद्धांतों, भ्रष्टाचार मुक्त भारत के सपने के साथ जोड़ने का भरपूर प्रयास करेगी. वैसे भी आप सिर्फ सोशल मीडिया के जरिये जनता से नहीं जुड़ी है, बल्कि घर-घर जाकर संवाद की प्रक्रिया को भी अपनी सफलता की रीढ़ मानती है. सोशल मीडिया प्रचार के परंपरागत तरीकों के इस्तेमाल के जरिये हम बड़ी संख्या में मतदाताओं को जोड़ने में कामयाब होंगे और हमें देशव्यापी सफलता मिलेगी.

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