राष्ट्रपति ने गुजरात आतंकवाद रोधी विधेयक लौटाया

नयी दिल्ली : गुजरात विधानसभा ने जो विवादास्पद आतंकवाद रोधी विधेयक पारित किया था लेकिन जिसे पिछली संप्रग सरकार ने दो बार खारिज कर दिया था, उसे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अतिरिक्त सूचना मांगते हुए आज लौटा दिया. गुजरात आतंकवाद एवं संगठित अपराध विधेयक 2015 को राष्ट्रपति ने गृह मंत्रालय को लौटाते हुए विधेयक के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 28, 2016 8:49 PM

नयी दिल्ली : गुजरात विधानसभा ने जो विवादास्पद आतंकवाद रोधी विधेयक पारित किया था लेकिन जिसे पिछली संप्रग सरकार ने दो बार खारिज कर दिया था, उसे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अतिरिक्त सूचना मांगते हुए आज लौटा दिया.

गुजरात आतंकवाद एवं संगठित अपराध विधेयक 2015 को राष्ट्रपति ने गृह मंत्रालय को लौटाते हुए विधेयक के कुछ प्रावधानों के बारे में और अधिक जानकारी मांगी है. गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर नरेन्द्र मोदी ने इसे साल 2003 में पेश किया था जिसके बाद से यह लटकता आ रहा है. गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया , ‘‘गृह मंत्रालय गुजरात सरकार से अतिरिक्त जानकारी पाने के बाद उसे राष्ट्रपति को मुहैया करेगा.’

गृहमंत्रालय ने राष्ट्रपति को यह सूचना दी. इसके पहले इसने कहा कि वह विधेयक को वापस ले रहा है और उनकी मंजूरी के लिए अतिरिक्त जानकारी के साथ विधेयक सौंपेगा. यह विधेयक आरोपी के मोबाइल फोन की टैपिंग के जरिए जुटाए गए साक्ष्य की स्वीकार्यता या एक जांच अधिकारी के समक्ष दिए गए इकबालिया बयान को अदालत में मुहैया करने का मार्ग प्रशस्त करेगा.

पिछले साल जुलाई में केंद्र की मोदी सरकार ने राज्य सरकार को विधेयक वापस भेजते हुए उससे सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा उठाए गए कुछ खास मुद्दों को स्पष्ट करने को कहा था. आईटी मंत्रालय ने टेलीफोन बातचीत की टैपिंग को अधिकृत किए जाने और अदालत में साक्ष्य के तौर पर उन्हें स्वीकार किए जाने के विधेयक में मौजूद प्रावधानों पर ऐतराज जताया था.

गुजरात सरकार ने आईटी मंत्रालय के उठाए गए ऐतराजों का पुरजोर खंडन कर दिया था. अपने जवाब में गुजरात सरकार ने ‘समवर्ती सूची’ में जिक्र किए गए विषयों का उल्लेख किया था, जिन पर केंद्र और राज्य दोनों ही कानून बनाने का अधिकार रखते हैं. केंद्र सरकार ने अन्य केंद्रीय मंत्रालयों के साथ मशविरा करने के बाद आरोपपत्र दाखिल करने की समय सीमा को 90 से बढा कर 180 दिन किए जाने के प्रावधान को अपनी मंजूरी दे दी थी.

गुजरात विधानसभा ने मार्च 2015 में यह सख्त विधेयक पारित करते हुए उन विवादास्पद प्रावधानों को बनाए रखा था जिसके चलते दो बार पहले भी इस विधेयक को राष्ट्रपति ने खारिज कर दिया था. इस विधेयक को सबसे पहले तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने 2004 में खारिज किया था. दोनों ही मौकों पर तत्कालीन संप्रग सरकार ने राष्ट्रपति से विधेयक को खारिज करने की सिफारिश करते हुए कहा था कि विधेयक के कई प्रावधान कंेद्रीय कानून, गैर कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के अनुरुप नहीं हैं.

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