नयी दिल्ली: भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर प्रावधानों वाले बहुचर्चित लोकपाल विधेयक को भाजपा एवं वाम सहित अधिकतर दलों के समर्थन से मंगलवार को राज्यसभा ने ध्वनिमत से पारित कर दिया. विधेयक में सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमे की मंजूरी का अधिकार लोकपाल को दिया गया है तथा यह कानून लागू होने के एक वर्ष के भीतर राज्यों को लोकायुक्त गठित करना होगा.
सपा ने हालांकि इस विधेयक को देश हित के विरुद्ध करार देते हुए इसकी चर्चा के दौरान सदन से वाकआउट किया. सदन ने विधेयक पर लाये गये सभी सरकारी संशोधनों को ध्वनिमत से स्वीकार कर लिया जबकि वाम सदस्यों द्वारा लाये गये संशोधनों को मत विभाजन में खारिज कर दिया. उच्च सदन में पारित होने के बाद यह विधेयक अब फिर से लोकसभा में जायेगा. लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी थी लेकिन नये सरकारी संशोधनों के कारण विधेयक पर अब निचले सदन की दोबारा मंजूरी ली जायेगी.
गौरतलब है कि समाजसेवक अन्ना हजारे अपने गांव रालेगण सिद्धि में लोकपाल विधेयक संसद से पारित कराने की मांग पर अनशन कर रहे हैं. लोकपाल विधेयक के राज्यसभा से पारित होने पर अन्ना ने सभी राजनीतिक दलों को धन्यवाद दिया. उन्होंने कहा कि आज देश की जनता भ्रष्टाचार से परेशान हैं, उन्हें यह कानून राहत देगा. अन्ना ने लोकसभा के सांसदों से अपील की कि वे कल लोकपाल विधेयक को पारित कर दें. अन्ना ने घोषणा कि जैसे ही लोकपाल बिल लोकसभा से पारित होकर कानून बनेगा, वे अपना अनशन समाप्त कर देंगे. उन्होंने मौजूदा सरकारी लोकपाल विधेयक का पुरजोर समर्थन किया है. हजारे यह भी घोषणा कर चुके हैं कि मौजूदा विधेयक को संसद की मंजूरी मिलने के बाद वह अपने अनशन को खत्म कर देंगे. हालांकि अन्ना टीम से अलग होकर आम आदमी पार्टी बनाने वाले अरविन्द केजरीवाल ने इस विधेयक को ‘‘जोकपाल’’ बताते हुए इसे खारिज कर दिया है. विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए सिब्बल ने कहा कि सरकार हमेशा से ही भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कदम के पक्ष में रही है. उन्होंने कहा कि इसी मकसद से सरकार व्हिसल ब्लोअर, भ्रष्टाचार निरोधक संशोधन विधेयक सहित तमाम विधेयक लायी है. ऐसे कई विधेयक लोकसभा एवं राज्यसभा में लंबित हैं.
उन्होंने उम्मीद जतायी कि जिस तरह से लोकपाल को लेकर सदन में आम सहमति बनी है उसी तरह अन्य विधेयकों के बारे में आम सहमति बनाकर उन्हें संसद की मंजूरी दिलवायी जायेगी. लोकपाल में न्यायाधीशों को ही अध्यक्ष एवं सदस्य बनाने जाने के औचित्य को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि जटिल कानूनी पक्ष जुड़े होने के कारण ऐसे मामलों में न्यायाधीशों को अधिक अनुभव रहता है. उन्होंने लोकपाल में निर्वाचित प्रतिनिधियों को सदस्य नहीं बनाये जाने को उचित ठहराते हुए कहा कि उनको सदस्य बनाने से हितों का टकराव होगा.
सिब्बल ने माना कि अकेले लोकपाल कानून बन जाने से ही देश में भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होगा. उन्होंने कहा कि इसके लिए देश में अमीर और गरीब के बीच जो खाई है उसे दूर करना होगा. आर्थिक विभेद को मिटाना होगा. उन्होंने लोकपाल विधेयक के मामले में सहमत होने पर विपक्ष, वाम एवं अन्य दलों का आभार जताया और इसे सदन की ‘‘सामूहिक बुद्धिमत्ता’’ करार दिया.
इससे पूर्व विधेयक पर चर्चा के दौरान भाजपा, वाम, तृणमूल बसपा, द्रमुक, अन्नाद्रमुक सहित अधिकतर दलों ने इसका भरपूर समर्थन किया. उन्होंने कहा कि यह कानून लागू होने के बाद देश में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में काफी मदद मिलेगी. राजनीतिक व्यवस्था की विश्वसनीयता के लिए लोकपाल कानून को जरुरी बताते हुए विपक्ष नेता अरुण जेटली ने कहा कि इससे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में बडी मदद मिलेगी. उन्होंने कहा कि इस विधेयक में सुधार की काफी गुंजाइश है और कभी भी आदर्श कानून नहीं बनता, हम अनुभवों से सीखते हैं और सुधार होता है. बसपा नेता सतीश चन्द्र मिश्र ने कहा कि उनकी पार्टी शुरु से ही लोकपाल विधेयक का समर्थन कर रही है क्योंकि वह शीर्ष स्तर पर भ्रष्टाचार दूर करना चाहती है. उसने सरकार से सिफारिश की है कि उसे लोकपाल में अनुसूचित जाति एवं जनजाति एवं अल्पसंख्यकों के आरक्षण को सुनिश्चित करना चाहिए.
माकपा नेता सीताराम येचुरी ने भी विधेयक का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि इस विधेयक के दायरे में राजनीतिज्ञों, नौकरशाहों को लाया गया लेकिन निजी क्षेत्र एवं गैर सरकारी संगठनों को नहीं रखा गया है. उन्होंने कहा कि सरकारी कार्य और पीपीपी के तहत काम करने वाली निजी क्षेत्र की कंपनियों एवं एनजीओ को भी इसके दायरे में रखा जाना चाहिए. विधेयक पर चर्चा शुरु होने से पहले सपा के नेता रामगोपाल यादव ने कहा कि इससे नौकरशाही में अनिर्णय को बढावा मिलेगा. सपा सदस्यों ने इस विधेयक का विरोध करते हुए सदन से वाकआउट किया.
इस वर्ष 31 जनवरी को सरकार ने विवादास्पद लोकपाल विधेयक में संशोधनों को मंजूरी दी थी. इस विधेयक को राज्यों में लोकायुक्त गठित करने के प्रावधान से अलग कर दिया गया है तथा लोकपाल को सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ अभियोजन की मंजूरी देने का अधिकार दिया गया है. लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक को वर्ष 2011 में लोकसभा की मंजूरी मिल गयी थी. लेकिन राज्यसभा द्वारा इसे पिछले साल मई में प्रवर समिति के पास भेज दिया गया था. कांग्रेस नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी की अध्यक्षता में प्रवर समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी.
सरकार ने प्रवर समिति की इस सिफारिश को भी पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया है कि किसी मामले की जांच कर रहे सीबीआई के अधिकारियों का तबादला लोकपाल की अनुमति के बिना नहीं किया जा सकता है. सिब्बल ने कहा कि इस बारे में लोकपाल से राय ली जायेगी.
सरकार ने जिन सिफारिशों को स्वीकार किया है उनमें राज्यों में लोकपाल के गठन को लोकायुक्त विधेयक से अलग करना है. यह प्रावधान काफी विवादास्पद था क्योंकि कई पार्टियों का मानना था कि इसके जरिये केंद्र सरकार राज्यों के अधिकारों का अतिक्रमण कर रही है. प्रवर समिति ने सिफारिश की है कि राज्य सरकारों को लोकपाल कानून लागू होने के एक साल के भीतर लोकायुक्त गठित करने होंगे.
विधेयक में प्रावधान है कि सीबीआई निदेशक की नियुक्ति तीन सदस्यीय नियुक्ति मंडल करेगा. इसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष एवं भारत के प्रधान न्यायाधीश शामिल होंगे. सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमे की मंजूरी देने के अधिकार को सरकार की बजाय लोकपाल को देने की सिफारिशों को भी मान लिया है. ये सहमति भी बनी है कि लोकपाल इस प्रकार का निर्णय करने से पहले समुचित प्राधिकार एवं सरकारी कर्मचारी की प्रतिक्रिया लेगा.