जानें, सियाचिन में तैनात जवानों के सामने क्या रहती हैं चुनौतियां ?

नयी दिल्ली : सियाचिन में हिमस्खलन के बाद 25 फुट मोटी बर्फ की परत के नीचे दबे एक सैनिक को सोमवार को जिंदा निकाला गया जिसका इलाज दिल्ली के आर्मी अस्पताल में चल रहा है. आज जिंदा बचाए गए जवान लांस नायक हनुमानथप्पा को विशेष एयर एंबुलेंस से दिल्ली लाया गया जहां उससे मिलने खुद […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 9, 2016 6:04 PM

नयी दिल्ली : सियाचिन में हिमस्खलन के बाद 25 फुट मोटी बर्फ की परत के नीचे दबे एक सैनिक को सोमवार को जिंदा निकाला गया जिसका इलाज दिल्ली के आर्मी अस्पताल में चल रहा है. आज जिंदा बचाए गए जवान लांस नायक हनुमानथप्पा को विशेष एयर एंबुलेंस से दिल्ली लाया गया जहां उससे मिलने खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सेना प्रमुख दलबीर सिंह सुहाग पहुंचे. सर्च ऑपरेशन के दौरान हादसे के बाद गायब यह सेना का जवान सोमवार को चमत्कारिक रूप से छह दिनों बाद जिंदा मिला. रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने भी अस्पताल में भर्ती सैनिक से मुलाकात की.

सियाचिन से अकसर इस तरह की हादसे की खबर आती है, सियाचिन में ड्यूटी करना बेहद तकलीफदेह होता है. यहां ड्यूटी पर तैनात जवानों के दो दुश्मन होते हैं -एक पाकिस्तानी सैनिक और दूसरा मौसम. यह इलाका दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र है. सियाचिन में दूर-दूर तक सिर्फ बर्फ ही बर्फ दिखाई पड़ती है.
पूरा इलाका बर्फीली पहाड़ियों और फिसलन भरी ढलानों से भरा हुआ है. यहां कभी-कभी तापमान -50 डिग्री तक पहुंच जाता है. इस ऊंचे युद्धक्षेत्र में हमेशा सांस लेने में दिक्कत होती है. सैनिकों को वहां भेजने से पहले प्रशिक्षण दिया जाता है. लद्दाख में तैनात जवानों के कपड़े भी खास किस्म के होते है. ड्यूटी पर तैनात जवान बंकरों में रहते है. इन बंकरों के गर्म रखने के लिए विशेष व्यवस्था की जाती है. लेकिन इसे एक विशेष तापमान तक ही गर्म रखा जा सकता है. इससे ज्यादा गर्म होने पर बंकरों के ग्लेशियर में धंसने की संभावना बनी रहती है.
सैनिकों के अलावे वहां न तो कोई परिंदा और न ही कोई जीव दिखाई पड़ता है. सिर्फ एक लद्दाखी कौवा नजर आता है. सियाचिन पर एक खास वक्त तक ही सैनिकों को रखा जाता है. एक निश्चित सीमा अवधि के बाद उनका तबादला कर दिया जाता है. सियाचिन ग्लेशियर क्षेत्र में 3000 सैनिक तैनात हैं. इस क्षेत्र में अधिकांश चौकियां 16 हजार फुट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित है. 1984 के बाद आज से 860 भारतीय सैनिकों की जानें गयी है.

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