कुछ तो अलग है ”सियाचिन” के ”सिंघम” में
नयी दिल्ली : सियाचिन ग्लेशियर पर टनों बर्फ में छह दिन तक दबे रहने के बाद जीवित निकाले गए सैन्यकर्मी हनमंथप्पा कोप्पाड आम सैनिक से अलग है. यहां 1984 से अब तक 900 जवान शहीद हो चुके हैं, अधिकतर मौत खराब मौसम की वजह से हुई. दुनिया के सबसे ऊंचे लड़ाई के मैदान सियाचिन में […]
नयी दिल्ली : सियाचिन ग्लेशियर पर टनों बर्फ में छह दिन तक दबे रहने के बाद जीवित निकाले गए सैन्यकर्मी हनमंथप्पा कोप्पाड आम सैनिक से अलग है. यहां 1984 से अब तक 900 जवान शहीद हो चुके हैं, अधिकतर मौत खराब मौसम की वजह से हुई. दुनिया के सबसे ऊंचे लड़ाई के मैदान सियाचिन में सचमुच चमत्कार हुआ. चमत्कार ऐसा कि जिसने भी सुना, उसे अंचभा भी हुआ और दिल में खुशी भी हुई.
तीन फरवरी को पाक से सटी नियंत्रण रेखा से पास सियाचिन के उत्तरी ग्लेशियर में 19,600 फुट बर्फ की तूफान में जो 10 जवान दब गये थे, उनमें से एक लांस नायक हनमनथप्पा कोप्पड छह दिन बाद सोमवार की रात 25 फुट गहरे बर्फ में दबे जिंदा मिले. सेना समेत पूरे देश ने सभी 10 जवानों को शहीद मान लिया था. लेकिन, हनमनथप्पा कोप्पड ने मौत से युद्ध लड़ा और उसे हरा दिया. इस बहादुर सिपाही को दिल्ली में स्थित सेना के रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल में भरती कराया गया है.
हनमंथप्पा एक उच्च प्रेरित सैनिक हैं और सेना में अपने 13 साल के अब तक के कार्यकाल में उन्होंने ज्यादातर सेवा कठिन और चुनौती भरे क्षेत्रों में की है. उन्हें ‘‘उच्च प्रेरित और शारीरिक रुप से फिट’ 33 वर्षीय सैनिक करार देते हुए एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कोप्पाड ने एक महत्वपूर्ण जिजीविषा दिखाई है. वह 25 अक्तूबर 2002 को मद्रास रेजीमेंट की 19वीं बटालियन में भर्ती हुए थे. अधिकारी ने लांस नायक कोप्पाड के बारे में कहा, ‘‘उन्होंने अब तक के अपने 13 साल के कार्यकाल में से 10 साल तक कठिन और चुनौती भरे क्षेत्रों में सेवा की है.’
कोप्पाड को सोमवार को 150 से अधिक सैनिकों और दो खोजी कुत्तों की टीम ने 2,500 फुट की उंचाई से बचाया था. बर्फ में छह दिन तक दबे रहने के बाद वह जीवित निकले.