सुप्रीम कोर्ट ने नौकरशाहों के खिलाफ पूर्व अनुमति के मामले पर सीबीआई की पीठ थपथपाई

नयी दिल्ली: बेहतर स्वायत्तता के लिए केंद्र के साथ खींचतान में लगी सीबीआई को आज उच्चतम न्यायालय से एक बड़ा प्रोत्साहन मिला, जब शीर्ष अदालत ने व्यवस्था दी कि जांच एजेंसी को अदालत की निगरानी वाले मामले में वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ जांच और मुकदमा चलाने के लिए सरकार से मंजूरी लेने की जरुरत नहीं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 17, 2013 11:27 PM

नयी दिल्ली: बेहतर स्वायत्तता के लिए केंद्र के साथ खींचतान में लगी सीबीआई को आज उच्चतम न्यायालय से एक बड़ा प्रोत्साहन मिला, जब शीर्ष अदालत ने व्यवस्था दी कि जांच एजेंसी को अदालत की निगरानी वाले मामले में वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ जांच और मुकदमा चलाने के लिए सरकार से मंजूरी लेने की जरुरत नहीं है.

न्यायमूर्ति आर एम लोढा ने केंद्र की इस दलील को ठुकरा दिया कि सीबीआई संयुक्त निदेशक और उससे उपर के दर्जे के अधिकारियों पर सरकार की मंजूरी के बिना आगे नहीं बढ़ सकती. उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई की उस दलील को स्वीकार कर लिया, जिसमें कहा गया था कि धारा 6 ए (मंजूरी लेने के बारे में) को इस तरह पढ़ा जाना चाहिए कि उन मामलों में पूर्व स्वीकृति की जरुरत नहीं होती, जहां जांच की निगरानी संवैधानिक अदालत द्वारा की जा रही हो.

दिल्ली विशेष पुलिस संस्थान की धारा 6 ए की व्याख्या करते हुए, जिसके तहत सीबीआई का गठन हुआ है, पीठ ने कहा कि भ्रष्टाचार निरोधक कानूनों की व्याख्या इस तरह की गई है और इन्हें इस तरह से तैयार किया गया है कि यह निजी लाभ के लिए लोक अधिकारी को कम से कम अपमानित करने में मदद करते हैं.

अदालत ने कहा, ‘’जब एक अदालत जांच पर निगरानी करती है तो अदालत तक उतनी ही सूचना पहुंचती है जितनी जांच एजेंसी द्वारा जांच की प्रगति के बारे में अदालत को दी जाती है. एक बार जब संवैधानिक अदालत जांच की निगरानी करती है, जैसा अपवादपूर्व परिस्थितियों और असाधारण स्थिति में व्यापक जनहित में किया जाता है.’’

पीठ का कहना था, ‘’सीबीआई को लोक सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत अपराध की जांच करते समय निर्बाध और बिना किसी प्रभाव के जांच करने की इजाजत दी जानी चाहिए और धारा 6 ए द्वारा परिकल्पित प्रक्रिया को उस स्तर पर नहीं लाना चाहिए जो उच्चतम न्यायालय द्वारा संविधान के अनुच्छेद 32, 136 और 142 के तहत संवैधानिक शक्तियों के प्रयोग में बाधक हो. इस संबंध में कोई अन्य विचार उच्चतम संवैधानिक अदालत को दी गई शक्तियों के अनुकूल नहीं होगा.’’

Next Article

Exit mobile version