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पूजा और नमाज पर तनाव, जाने क्यों है भोजशाला का यह हाल

भोपाल : मध्य प्रदेश के धार जिले की भोजशाला में इन दिनों तनाव का माहौल व्याप्त है कारण है 12 फरवरी को बसंत पंचमी का त्योहार और इस दिन है शुक्रवार. यहां मंदिर-मस्जिद को लेकर विवाद है. 12 फरवरी को पंचमी का त्योहार है और इसी दिन जुम्मे की नमाज भी अदा की जानी है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 11, 2016 11:27 AM
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भोपाल : मध्य प्रदेश के धार जिले की भोजशाला में इन दिनों तनाव का माहौल व्याप्त है कारण है 12 फरवरी को बसंत पंचमी का त्योहार और इस दिन है शुक्रवार. यहां मंदिर-मस्जिद को लेकर विवाद है. 12 फरवरी को पंचमी का त्योहार है और इसी दिन जुम्मे की नमाज भी अदा की जानी है. भोजशाला में जहां हिंदू सरस्वती का मंदिर होने का दावा करते हैं वहीं मुस्लिम समाज इसे मस्जिद बताता है. भोजशाला को लेकर हिंदू और मुस्लिम समाज में कई वर्षो से विवाद रहा है यहीं कारण है कि भोजशाला को पुलिस सुरक्षा में छावनी में तब्दील कर दिया गया है.

क्या है व्यवस्था

विवाद के बाद मंगलवार और वसंत पंचमी को हिंदुओं के लिए इसे खोला जाता है वहीं यहां शुक्रवार को नमाज की व्यवस्था की गयी. वर्तमान में भोजशाला पुरातत्व विभाग के अधीन है. वर्षो से चले आ रहे विवाद के बीच 2003, 2006 और 2013 को वसंत पंचमी शुक्रवार को होने के कारण पहले विवाद हो चुका है. 2003 में तो यहां हिंसा भी हुई थी. अब एक बार फिर 12 फरवरी शुक्रवार को वसंत पंचमी का त्योहार है इसको देखते हुए पुरातत्व विभाग ने वसंत पंचमी को सूर्योदय से दोपहर 12 बजे तक पूजा और दोपहर एक से तीन बजे तक नमाज की व्यवस्था की है. इसे उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने भी सही ठहराया है.

सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम

वसंत पंचमी की तिथि के लगभग एक पखवाड़े पहले से ही धार में तनाव का माहौल देखा जा रहा है. इसलिए यहां सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं. बड़ी संख्या में रैपिड एक्शन फोर्स, केंद्रीय सुरक्षा बल के अलावा स्थानीय पुलिस बल को तैनात किया गया है.

ऐतिहासिक नगरी धार

धार नगरी का अपना ही इतिहास रहा है. यहां परमार वंश के राजा भोज ने 1010 से 1055 ईवी तक शासन किया. 1034 में धार नगर में सरस्वती सदन की स्थापना की गयी. तब यह एक महाविद्यालय हुआ करता था जो बाद में भोजशाला के नाम से विख्यात हुआ. यहां बाद में मां सरस्वती (वाग्देवी) की प्रतिमा स्थापित कर दी गयी. जानकारों की माने तो इस प्रतिमा को 1880 में एक अंग्रेज व्यक्ति अपने साथ लंदन ले गया. वर्तमान में यह प्रतिमा लंदन में ही है. भोजशाला को 1909 में संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया गया और इसे पुरातत्व विभाग के अधीन कर दिया गया.

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