नयी दिल्ली : सांसदों के वेतन और भत्तों के मुद्दों की पडताल करने वाली संसदीय समिति ने संबंधित अधिनियम के दायरे से बाहर जाकर बहुत सी सिफारिशें कर डालीं लेकिन संसदीय मामलों के मंत्रालय को तुरंत बीच में आकर इस मामले को सही करना पडा. संपर्क करने पर समिति के एक सदस्य ने इसे नजरअंदाज करते हुए कहा कि ‘‘बदलते समय और बदलती परिस्थितियों ” के साथ कई सारे प्रावधानों की समीक्षा किए जाने की जरुरत है और ‘‘समिति पिछले कुछ समय से अधिनियम के दायरे से बाहर जाकर सुझाव दे रही थी जिनमें से कई को सरकार ने स्वीकार कर लिया और कई को नामंजूर कर दिया.”
भाजपा सदस्य योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता वाली सांसदों के वेतन और भत्तों से संबंधित संयुक्त समिति की अधिकतर सिफारिशों को सरकार द्वारा पहले ही अस्वीकार किया जा चुका है. इस बार समिति की ऐसी ही एक सिफारिश इच्छा के अनुसार जनता के लिए धन का दान (जनता के लिए स्वेच्छानुदान) थी जिस पर समिति ने पिछले वर्ष 15 दिसंबर को हुई बैठक में चर्चा की थी. समिति ने इस बात पर गौर किया था कि चूंकि मुद्दा समिति के दायरे से बाहर का है तो इसे उचित कार्रवाई के लिए संसदीय मामलों के मंत्रालय को भेजा जा सकता है.
मंत्रालय ने इससे पूर्व ही इस सिफारिश को ‘‘सहमति नहीं ” की श्रेणी में डाल दिया था और बाद में कारण जानने पर उसने बताया था कि ‘‘यह सिफारिश सांसदों के वेतन , भत्ते और पेंशन अधिनियम 1954 के तहत नहीं आती है अैर इस मंत्रालय का इस विषय से संबंध नहीं है.”