प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बजट सत्र में क्या चुनौतियों से पार पायेंगे?
विष्णु कुमार नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार अपने युवावस्था की दहलीज को पार कर अब अपने मध्य वय में पहुंच रही है. एक आदमी की ही तरह मोदीसरकार के लिए यह सबसे चुनौतीभरा दौरा है. तभी उन्होंने रविवार को ओड़िशा में यह पीड़ा साझा की कि उन्हें कुछ लोग बदनाम करने की […]
विष्णु कुमार
नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार अपने युवावस्था की दहलीज को पार कर अब अपने मध्य वय में पहुंच रही है. एक आदमी की ही तरह मोदीसरकार के लिए यह सबसे चुनौतीभरा दौरा है. तभी उन्होंने रविवार को ओड़िशा में यह पीड़ा साझा की कि उन्हें कुछ लोग बदनाम करने की साजिश में लगे हैं और लोग यह पचा नहीं पा रहेहैं कि चाय वाला प्रधानमंत्री कैसे बन गया? मोदी सरकार की भविष्य की दशा दिशा बहुत हद तक संसद के इस सबसे अहम और लंबे सत्र यानी बजट सत्र में तय होगी. बजट सत्र की उपलब्धियों तीसरे साल में प्रवेश करने के मुहाने पर खड़ी मोदी सरकार के लिए अहम संबल साबित हो सकती है. और, अनुपलब्धियों परेशानी का सबब.
विपक्ष का तेवर
नरेंद्र मोदी व उनकी टीम इस बात को लेकर संशकित हैं कि क्या विपक्ष बजट सत्र को कारगर होने देगा? महज 44 लोकसभा सदस्यों वाली कांग्रेस ने राहुल गांधी की आक्रामक अगुवाई में संसद के दो सत्रों मानसून व शीतकालीन सत्र में मोदी के सुधारों की गाड़ी रोक दी और मोदी पर हमले उन्हीं हथियारों से किये, जिससे मोदी सोनिया गांधी व राहुल गांधी पर हमले करते रहे. मसलन, भ्रष्टाचार, आंतरिक सुरक्षा, पाकिस्तान के साथ रिश्ते और दलित हित.
चुनौतियों से वाकिफ मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज संसद के बजट सत्र की शुरुआत से पहले मीडिया से कहा कि सरकार की तीखी आलोचना होने दीजिए अौर उसकी कमियां रेखांकित होने दीजिए, इससे लाेकतंत्र मजबूत होगा. उन्होंने उम्मीद जतायी कि संसद के बजट सत्र में व्यापक चर्चा होगी. उन्होंने सार्थक बजट सत्र और रचनात्मक बहस की उम्मीद प्रकट की है. ध्यान रहे कि जिस उदरता से प्रधानमंत्री ने आज तीखी आलोचना होने देने की बात कही है, उससे उलट उन्होंने कुछ31दिसंबर,2015को नोएडा में दिल्ली मेरठ एक्सप्रेस वे शिलान्यास के वक्त कहा था कि विपक्ष संसद का सत्र नहीं चलने दे रहा है, काम करने से रोका जा रहा है और लोकसभा में उन्हें अपनी बात कहने का मौका नहीं मिलता, इसलिए वे जनसभा में अपनी बात कह रहे हैं.
मोदी के सुधारवादी एजेंडे पर विवादों की छाया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने व्यापक सुधारवादी एजेंडे व भ्रष्टाचार विरोधी कड़े तेवर के जरिये में सरकार में आये थे. उनके घोषित चुनावी एजेंडे में न गाय, न राम मंदिर, न घर वापसी और न ही भगवाकरण का उल्लेख था. पर, उनके तमाम सुधारवादी एजेंडों पर हमेशा इन्हीं मुद्दों का साया रहा. रुपये की कीमत उंचा करना, विकास दर को गति देना, आधारभूत संरचना मेंद्रूत सुधार,किसानहित, भ्रष्टाचारव वित्तीय समावेशनयेमीडिया की सेकेंडहेडलाइनबन गयींऔरफर्स्टहेडलाइनदादरी कांड,गायविवाद, ललित मोदी विवाद, हैदाबादसेंट्रल यूनिवर्सिटी, पटियाला हाउस कोर्ट में मारपीट पहली हेडलाइन बनती रही.
जीएसटी सहित 32 विधयकों का एजेंडा
जीएसटी व रियल इस्टेट सहित 32 विधयकों को सरकार बजट सत्र में सदन में पेश करेगी. यह एक आम धारणा बन गयी है कि जीएसटी या समान वस्तु कर विधयेक मोदी सरकार का सबसे बड़ा मौजूदा सुधारवादी एजेंडा है, जिसमें पिछले दो सत्रों से कांग्रेस रोड़े अटकाते रही है.अपनेको आरोपमुक्त साबित करने के लिए कांग्रेस यह संकेत देने की कोशिश करती रहती है कि यही काम अरुण जेटली व सुषमा स्वराज ने मनमोहन सरकार के समय किया था. कांग्रेस इसमें कुछ अहम संशोधनों की दलील देती है. अर्थजगत के कुछ प्रमुख विशेषज्ञ अब जीएसटी को पारित होना मुश्किल मान रहे हैं, लेकिन हर किसी की आशाएं उससे जुड़ी हैं. संसद सत्र के पहले दिन जिस तरह लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने जेएनयू, हैदाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी, एफटीआइआइ, जाधवपुर यूनिवर्सिटी का नाम लियाहैऔर कहा है कि यह हमारीचिंताका अहम विषय है, वहदरअसलएक लिफाफा है, जिसकेअंदरके मजमून को मोदी व उनके सिपहसलारतो समझ ही गये होंगेकिकांग्रेस पूर्व के दो सत्रों के ही ढर्रे परआक्रमकता का ऐसा चोला ओढ़ कर सामने आयेगी,जिससे निबटनाअद्वितीयराजनीतिक कौशल का काम होगा.