नयी दिल्ली : आने वाले समय में भारत और अमेरिका मंगल से जुडी खोजों के लिए संयुक्त रुप से काम कर सकते हैं और इस संयुक्त अभियान पर एक भारतीय अंतरिक्षयात्री को लाल ग्रह की ओर रवाना भी किया जा सकता है. मंगल ग्रह पर भेजे गए भारत के पहले अभियान मंगलयान ने बेहद कम लागत में उच्च स्तरीय अंतरग्रही अभियान को अंजाम देने की इसरो की क्षमताओं को दुनिया के सामने ला दिया था.
क्यूरोसिटी जैसे रोवरों के जरिए अमेरिका के अधिकतर ग्रह संबंधी अन्वेषणों में नेतृत्व करने वाली नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी (जेपीएल) के निदेशक चार्ल्स इलाची का कहना है कि भारत और अमेरिका एकसाथ मिलकर मंगल का अन्वेषण कर सकते हैं और उन्होंने लाल ग्रह पर अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने के लिए भारत को आमंत्रित भी किया.
उनके साथ साक्षात्कार के अंश कुछ इस प्रकार हैं:
प्र. अमेरिका और भारत दोनों ही एक बार फिर मंगल पर जाने में दिलचस्पी ले रहे हैं. क्या भारत और अमेरिका मंगल के अन्वेषण के लिए एक संयुक्त रोबोटिक अभियान पर विचार करेंगे?
उ. उम्मीद करते हैं कि भविष्य में ऐसा हो। नासा में हम अगले दशक यानी 2020-2030 में मंगल पर भेजने के अगले अभियान की तैयारी शुरु कर रहे हैं. जल्दी ही वाशिंगटन में एक बैठक होने वाली है, जिसमें मंगल से जुडे अगले पांच-छह अभियानों में संभावित सहयोगों पर चर्चा हो सकती है. इस बैठक के लिए इसरो को आमंत्रित किया गया है. ऐसा मंगल पर मानवीय अंतरिक्ष विमान भेजने की तैयारी के तहत हो रहा है. हमें निश्चित तौर पर उम्मीद है कि भारत की दिलचस्पी इसमें होगी। उम्मीद है कि भारत अमेरिका, यूरोप, फ्रांस, इटली और अन्य देशों के संघ का हिस्सा होगा, जहां सभी सौरमंडल के अन्वेषण में हमारी क्षमताओं का लाभ ले सकते हैं.
प्र. क्या आप एक सहयोगात्मक अन्वेषण अभियान पर विचार कर रहे हैं?
उ. हां, यह सही है. मार्स ऑर्बिटर मिशन में सफलता हासिल करने के साथ ही भारत अब एक बडा सहयोगी है. मंगल के अन्वेषण के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयास के तहत भारत एक बडा साझेदार हो सकता है.
प्र. राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि दीर्घकाल में अमेरिका को मंगल पर इंसानों को भेजना चाहिए. अब चूंकि भारत का भी मानव अंतरिक्ष उडान कार्यक्रम है, तो क्या आप इस अभियान में भारत के साथ साझेदारी पर विचार कर रहे हैं?
उ. नासा मंगल पर मानव अभियान भेजने की योजना शुरू कर रहा है और नासा इसे एक अंतरराष्ट्रीय प्रयास के तौर पर देख रहा है. इंसानों को मंगल और उसके पार भेजने के तरीकों पर एकसाथ मिलकर सोचना शुरू करने के लिए नासा ने अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों को आमंत्रित किया है. तो निश्चित तौर पर यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें भारत की क्षमताओं को देखते हुए, भारत और अमेरिका के बीच सहयोग किया जाएगा. यह अंतरराष्ट्रीय प्रयासों में अर्थपूर्ण योगदान दे सकता है.
प्र. भारत के मंगल अभियान में नासा की क्या भूमिका थी?
उ. पहले ही प्रयास में मंगल पर पहुंच जाने वाले शानदार अभियान के लिए मैंने भारत को बधाई दी थी. जेपीएल ने हमारे पास मौजूद एंटीना के चलते इसरो को दिशासूचक कार्यों एवं संचार में इसरो की मदद की. पहले ही प्रयास में मंगल की कक्षा में पहुंच जाना एक शानदार उपलब्धि थी और वह भी बेहद कम लागत में कर लिया गया. अब अमेरिकी वैज्ञानिक अपने मेवेन अभियान के जरिए और भारत अपने मार्स ऑर्बिटर मिशन के जरिए डाटा साझा कर रहे हैं.
प्र. नासा एक क्षुद्रग्रह को प्राप्त करने पर विचार कर रहा है. क्या भारत इस अभियान में भागीदारी कर सकता है?
उ. हम एक ऐसे अभियान पर विचार कर रहे हैं, जिसमें विद्युत प्रणोदन के इस्तेमाल से एक क्षुद्रग्रह को पकडा जाए और फिर उसे वापस चंद्र कक्षा में लाया जाए ताकि अंतरिक्ष यात्री जाकर गहरा अन्वेषण कर सकें। नासा ने इस दिशा में दिलचस्पी रखने वालों के लिए द्वार खोल दिए हैं, फिर चाहे वह दिलचस्पी रखने वाला भारत हो या यूरोप.
प्र. अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत और अमेरिका के संबंध किस दिशा में बढ रहे हैं?
उ. मुझे लगता है कि वे एक बेहद सकारात्मक भविष्य की ओर बढ रहे हैं. पिछले पांच साल की तुलना में यह दिलचस्पी व्यापक तौर पर बढी है. राजनीतिक एवं वैज्ञानिक दोनों ही तौर पर सदभावना है. मैं भविष्य में अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग को लेकर आशांवित हूं. अंतरिक्ष हर किसी के लिए है. दो देशों के बीच की सदभावना अंतरिक्ष को एकसाथ मिलकर काम करने का एक स्वाभाविक स्थान बना सकती है. दोनों देश अंतरिक्ष विज्ञान में भी सहयोग कर सकते हैं. भारत का इस क्षेत्र में एक लंबा इतिहास है. मैं भारतीयों द्वारा निर्मित प्राचीन वेधशाला :जंतर मंतर: गया था. यह सैंकडो साल पुराना है और इससे ज्ञान आगे बढा. अब हम एकसाथ मिलकर इसे कर सकते हैं. भारत में अध्ययन की एक महान परंपरा है.
प्र. नासा और इसरो के लिए भविष्य की और क्या योजनाएं हैं?
उ. हमारे पास एक अभियान है नासा-इसरो सिंथेटिक एपेर्चर रडार :एनआईएसएआर: अभियान. यह एक बडा अभियान है, जो वर्ष 2020 में प्रक्षेपित होगा. भारत और अमेरिका की यह साझेदारी वाकई समान क्षमता वालों के रुप में हो रही है. यह अभियान हमें दुनियाभर के प्राकृतिक संसाधनों, प्राकृतिक आपदाओं, जलवायु प्रभाव और जलवायु परिवर्तन पर गौर करने का अवसर देगा. यह अमेरिका और भारत दोनों में ही दिन-प्रतिदिन के जीवन के लिए लाभकारी होगा. यह वैज्ञानिकों के बीच सहयोग के रुप में आया थ लेकिन अब यह दोनों देशों के बीच एक संपूर्ण रुप से मंजूर संयुक्त अभियान है.
प्र. आपदा आने के बाद आप चीजों की व्याख्या अंतरिक्ष से कैसे कर सकते हैं?
उ. यह एक रडार अभियान हे, जिसके पास जमीन की तस्वीर लेने की क्षमता है. फिर आप कुछ दिन बाद आते हैं और एक और तस्वीर ले लेते हैं. इसी बीच, यदि कुछ सेंटीमीटर का भी बदलाव आता है तो हम अंतरिक्ष से उसका पता लगा सकते हैं. इससे आपको उस गति की एक तस्वीर मिल जाती है, जो किसी भूकंप या जमीन सरकने के कारण हुई. इससे हमें किसी भूकंप के पीछे की भौतिकी को बेहतर ढंग से समझने का अवसर मिलेगा. यह हमें उन क्षेत्रों के पूर्वानुमान का अवसर देगा, जिनपर प्राकृतिक आपदा का खतरा ज्यादा होगा. भारत हो या टेक्टोनिक गतिविधियों वाला कैलिफोर्निया, दोनों को ही इससे सीधा लाभ होगा. नासा और इसरो दो प्रमुख रडार यंत्र विकसित कर रहे हैं. सेटेलाइट बस भारतीय होगी और इसका निर्माण भारत में ही किया जाएगा. इसके बाद इसे भारतीय रॉकेट जीएसएलवी के जरिए प्रक्षेपित किया जाएगा. इस बार हम वाकई बराबर सहयोगियों की तरह सहयोग कर रहे हैं.