17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

अफजल गुरु विवाद से जेएनयू को नहीं लगेगा धक्का: रोमिला थापर

नयी दिल्ली : मशहूर इतिहासकार रोमिला थापर ने कहा कि संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी के खिलाफ आयोजित कार्यक्रम से उभरे विवाद के चलते जेएनयू को कोई धक्का नहीं लगेगा क्योंकि इसके लिए ‘‘बौद्धिक समर्थन’ है. रोमिला ने कहा कि जब तक कोई सरकार पूरी तरह ‘‘लोकतंत्र विरोधी तानाशाही’ में नहीं […]

नयी दिल्ली : मशहूर इतिहासकार रोमिला थापर ने कहा कि संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी के खिलाफ आयोजित कार्यक्रम से उभरे विवाद के चलते जेएनयू को कोई धक्का नहीं लगेगा क्योंकि इसके लिए ‘‘बौद्धिक समर्थन’ है. रोमिला ने कहा कि जब तक कोई सरकार पूरी तरह ‘‘लोकतंत्र विरोधी तानाशाही’ में नहीं बदल जाती उसके लिए चिंतन प्रक्रिया को ‘‘नियंत्रित’ करना मुश्किल होने जा रहा है.

जेएनयू की प्रोफेसर एमेरिटा रोमिला ने कहा, ‘‘जएनयू को कोई धक्का नहीं पहुंचने वाला है क्योंकि देश में इसके लिए बहुत बौद्धिक समर्थन है. दूसरे विश्वविद्यालय भी हैं जो विविध मुद्दों पर चर्चा करते हैं जैसा जेएनयू में होता है.’ उन्होंने कहा, ‘‘किसी विश्वविद्यालय का वजूद इस मंशा के लिए है – हर तरह के विचारों पर चर्चा करने के लिए।’ रोमिला ने कहा, ‘‘अगर कोई सरकार पूरी तरह लोकतंत्र विरोधी तानाशाही में बदल नहीं जाए तो उसके लिए इस सोचने-विचारने पर नियंत्रण करना और नियंत्रण करने की कोशिश करना बेहद कठिन होने जा रहा है.

अगर वह ऐसा करती है तो वह शासन के दूसरे पहलुओं को नुकसान पहुंचाएगी जैसा जहां जहां तानाशाही स्थापित हुई है, दिखा है.’ वर्ष 1992 और 2005 में दो दो बार पद्म भूषण सम्मान स्वीकार करने से इनकार कर चुकी इतिहासकार ने कहा कि विश्वविद्यालयों पर हमले लोगों के सोचने की शक्ति पर नियंत्रण करने का एक प्रयास है और यह प्रयास जब जब किया गया है, नाकाम रहा है.

रोमिला ने कहा, ‘‘जहां भी इसकी कोशिश की गई, कहीं भी यह कामयाब नहीं हुआ। चूंकि प्रशासन और पुलिस सरकार के नियंत्रण में है, यह कुछ समय के लिए काम कर सकता है, लेकिन निरपवाद रुप से लोग इससे निकल आते हैं. विचारों पर मंथन शिक्षित होने की प्रक्रिया का एक हिस्सा है और किसी आधुनिक समाज एवं अर्थव्यवस्था के लिए अनिवार्य है.” उन्होंने राष्ट्रवाद की व्याख्या करते हुए कहा, ‘‘यह एक अवधारणा है जो किसी राष्ट्र के निर्माण के लिए लोगों के एक साथ आने को निरुपित करती है. इसे सभी समुदाय के लिए समावेशी और धर्मनिरपेक्ष होना चाहिए. इसे धर्म, जाति, भाषा या इसी तरह की किसी एक एकल शिनाख्त से निर्धारित नहीं किया जा सकता.”

जेएनयू की पूर्व प्रोफेसर ने कहा कि भारत में राष्ट्रवाद आजादी के उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुडा है. जहां सांप्रदायिकता धार्मिक शिनाख्त पर आधारित थी और उसका उद्देश्य किसी मुस्लिम या हिंदू राष्ट्र के सीमित विचार को बुलंद करना था, हमारा राष्ट्रवाद सांप्रदायिकता का विरोधी था. रोमिला ने कहा, ‘‘मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा-आरएसएस में संकल्पनाबद्ध दोनों सांप्रदायिकता में से किसी का प्राथमिक सरोकार उपनिवेशवाद के विरोध से था। उनका संदर्भ मुस्लिम या हिंदू समुदाय की सीमित शिनाख्त था.”

रोमिला ने कहा, ‘‘भारत में कोई हिंदू देश कभी कोई राष्ट्रीय भारतीय देश नहीं हो सकता क्योंकि इसे सभी गैर-हिंदुओं को बराबरी के अधिकार के साथ बराबरी वाले नागरिक के रुप में लेकर चलना होगा।” उल्लेखनीय है कि जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय संसद हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी के संबंध में विश्वविद्यालय परिसर में आयोजित एक कार्यक्रम को ले कर विवाद में फंस गया है. इस कार्यक्रम में कथित रुप से ‘‘राष्ट्रविरोधी” नारे लगाए गए थे. जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार नौ फरवरी के कार्यक्रम के सिलसिले में देशद्रोह के आरोप में न्यायिक हिरासत में हैं. दो अन्य छात्र उमर खालिद और अनिर्बन भट्टाचार्य इसी मामले में पुलिस हिरासत में हैं.

इन गिरफ्तारियों का विरोध करते हुए थापर और अन्य इतिहासकार एवं लेखकों ने पिछले हफ्ते एक संयुक्त बयान जारी किया था जिसमें छात्रों पर देशद्रोह का मामला लगाने का विरोध किया गया था और कहा कि किसी शैक्षिक संस्थान में पुलिस कार्रवाई ‘संवाद’ की जगह नहीं ले सकती.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें