कन्हैया कुमार ने कहा, मेरा एजेंडा नेता बनना नहीं बल्कि शिक्षक बनना

नयी दिल्ली : जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय छात्र संघ (जेएनयूएसयू) अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने कहा कि उनका देश की न्यायपालिका में पूरा भरोसा है और उन्होंने आशा जताई कि न्यायपालिका आरएसएस द्वारा प्रभावित नहीं होगी. कन्हैया ने एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘जो पहले झंडे जला रहे थे वे अब उन्हीं झंडों के साथ खडे होकर लोगों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 5, 2016 8:48 AM

नयी दिल्ली : जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय छात्र संघ (जेएनयूएसयू) अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने कहा कि उनका देश की न्यायपालिका में पूरा भरोसा है और उन्होंने आशा जताई कि न्यायपालिका आरएसएस द्वारा प्रभावित नहीं होगी. कन्हैया ने एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘जो पहले झंडे जला रहे थे वे अब उन्हीं झंडों के साथ खडे होकर लोगों से राष्ट्रवाद के प्रमाणपत्र दिखाने के लिए कह रहे हैं. मेरा न्यायपालिका और संविधान में पूरा भरोसा है लेकिन उन्हें क्या करना चाहिए यह नागपुर में आरएसएस मुख्यालय में तय नहीं होना चाहिए.’ कन्हैया (29) ने कहा कि उनका एजेंडा नेता बनना नहीं बल्कि शिक्षक बनना है.

यह शोधार्थी देशद्रोह के एक मामले में 18 दिन तिहाड जेल में काटने के बाद अंतरिम जमानत पर गुरुवार को रिहा हुआ. उन्होंने कहा, ‘‘मैं छात्र के रुप में एक कार्यकर्ता हूं और पांच साल में एक प्रोफेसर के रुप में कार्यकर्ता रहूंगा. मेरा मुख्य धारा की राजनीति में शामिल होने का कोई इरादा नहीं है. ना ही मैं तुच्छ राजनीतिक लाभ के लिए जनता से जो समर्थन मिला उसका प्रयोग करना चाहता हूं.’ कन्हैया के अनुसार, विश्वविद्यालय को कथित रुप से राष्ट्रविरोधी के रुप में पेश करने के पूरे विवाद ने विश्वविद्यालय की खास छवि बना दी है जिससे छात्र प्रभावित हो रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘‘मैं अंदर था, जेल से बाहर क्या हो रहा था, मुझे केवल खबरों से ही पता चल रहा था. केवल वाम समर्थक मेरे साथ खडे नहीं थे बल्कि वे भी थे जो यह फैसला नहीं कर पाए कि उन्हें वाम झंडा पकडना चाहिए या दक्षिणपंथी, ऐसे लोग भी जेएनयू के समर्थन में आ रहे हैं.’ यह पूछे जाने पर कि क्या इस विवाद से उनके एबीवीपी से जुडे छात्रों से संबंध प्रभावित होंगे, कन्हैया ने कहा, ‘‘छात्रावास में मेरा कमरा जेएनयू की एबीवीपी इकाई के प्रमुख के बगल में है. यही जेएनयू की खूबसूरती है. यह दो विचारधाराओं की लडाई है, लोगों के बीच नहीं.’

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