इशरत मामले पर राजनाथ का जवाब : पिछली सरकार ने मोदी को फंसाने के लिए छुपाए तथ्य
नयी दिल्ली : गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इशरत जहां मामले में लोकसभा में सरकार की ओर से जवाब देते हुए कहा कि आतंकवाद का कोई रंग नहीं होता. पिछली सरकार ने तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी को फंसाने के लिए तथ्यों को छुपाया था और हलफनामे बदलवाये थे. राजनाथ ने कहा कि 24 सितंबर 2009 को […]
नयी दिल्ली : गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इशरत जहां मामले में लोकसभा में सरकार की ओर से जवाब देते हुए कहा कि आतंकवाद का कोई रंग नहीं होता. पिछली सरकार ने तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी को फंसाने के लिए तथ्यों को छुपाया था और हलफनामे बदलवाये थे. राजनाथ ने कहा कि 24 सितंबर 2009 को तत्कालीन गृह मंत्री ने हलफनामे बदलवाए थे, लेकिन उसका कोई भी कागज उपलब्ध नहीं है. उस समय जब हेडली ने बयान में इशरत को आतंकी बताया था,तब सरकार की ओर से सीबीआई से यह जानकारी छुपायी गयी.
सीबीआई ने जब दस्तावेज उपलब्ध कराने की बात की तो सीबीआई को दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराये गये. राजनाथ ने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा कि पिछली सरकार ने आतंकवाद को रंग देने का प्रयास किया. आतंकवाद पर भी पिछली सरकार ने राजनीति की और एस समय गुजरात के सीएम रहे नरेंद्र मोदी को फंसाने का प्रयास किया.
राजनाथ ने कहा कि हमारी सरकार आतंकवाद जैसे गंभीर मुद्दे पर राजनीति नहीं करेगी. आतंकवाद का किसी रंग या समुदाय से कोई संबंध नहीं होता, आतंकवाद केवल आतंकवाद होता है. गौरतलब है कि इशरत जहां के एनकाउंटर मामले में उस समय नरेंद्र मोदी की गुजरात सरकार पर जमकर निशाना साधा गया था
हेडली के बयान से खुलासा
26/11 मुंबई हमले का दोषी अमेरिकी जेल में कैद डेविड हेडली ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरीए दिये अपनी गवाही में इशरत जहां को लश्कर का आतंकी बताया था. हेडली ने अपनी गवाही के चौथे दिन कहा, लश्कर-ए-तैयबा का एक ऑपरेशन था, जिसमें किसी नाके पर पुलिस को शूट करने की साजिश थी. इसमें लश्कर-ए-तैयबा की इशरत जहां शामिल थी.’ गवाही के दौरान पहले तो हेडली ने इनकार किया, लेकिन बाद में इशरत जहां का नाम लिया. उसने यह भी बताया कि अबु आयमान मजहर लश्कर की महिला विंग का इन्चार्ज था.
दूसरे हलफनामें में फर्जीवाड़े का आरोप
पूर्व में पी चिदंबरम पर तीखा हमला बोलते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि इशरत जहां मामले में यूपीए सरकार द्वारा उच्चतम न्यायालय में दाखिल किया गया दूसरा हलफनामा फर्जीवाड़ा का मामला है. जेटली ने इशरत जहां और लश्कर ए तैयबा के उसके अन्य कथित साथियों के गुजरात में मुठभेड़ में मारे जाने को सही बताते हुए पूछा कि क्या कांग्रेस को लगता है कि यह फर्जी थी? अगर ऐसा है तो उसने आरोपपत्र दाखिल नहीं कर और वास्तविक मुठभेड़ में शामिल उन अधिकारियों को गवाह नहीं बनाकर उन्हें 90 वें दिन जमानत क्यों हासिल करने दी.
एक निजी चैनल को दिये गये साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि यूपीए सरकार के प्रथम हलफनामे में इशरत के आतंकी संपर्कों का जिक्र था जो अस्पष्ट नहीं था. यह बिल्कुल साफ था. दूसरे हलफनामे में फर्जीवाड़ा किया गया. यह पूछे जाने पर कि क्या यूपीए सरकार ने खुफिया रूपरेखा से खिलवाड़ किया, मंत्री ने कहा कि बिलकुल. चिदंबरम ने दूसरे हलफनामे को दाखिल किए जाने को सोमवार को उचित ठहराया था और मंत्री के रूप में इस फैसले की जिम्मेदारी ली थी.
कौन थी इशरत, कब हुआ एनकाउंटर
15 जून 2004 को अहमदाबाद में एक मुठभेड़ में इशरत जहां और उसके तीन साथी जावेद शेख, अमजद अली और जीशान जौहर मारे गए. गुजरात पुलिस ने इशरत को लश्कर का आतंकी बताया था और कहा था कि उसके निशाने पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी थे. मुठभेड़ के बाद गुजरात हाईकोर्ट ने इसकी जांच के आदेश दिए तो एसआईटी ने मुठभेड़ को फर्जी बताया.
इसके बाद अदालत के आदेश पर सीबीआई ने मामले की जांच शुरू की. सीबीआई ने एक पुलिस अफसर को सरकारी गवाह बनाया, जिसने नौ साल के बाद 2013 में पहली चार्जशीट दाखिल की थी. सीबीआई ने भी इशरत मुठभेड़ को फर्जी बताया. चार्जशीट में एडीजीपी पीपी पांडे और डीआईजी वंजारा का नाम था.