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JNU विवाद : उमर और अनिर्बान को जमानत नहीं, याचिका पर फैसला 18 मार्च को

नयी दिल्ली : जेएनयू में देशविरोधी नारों के आरोप में गिरफ्तार उमर खालिद और अनिर्बान की जमानत याचिका पर पटियाला हाउस कोर्ट में आज सुनवाई हुई. दोनों की ज़मानत याचिका पर निचली अदालत में सुनवाई आज पूरी हो गई है और फैसला 18 मार्च तक सुरक्षित रख लिया गया है. आपको बता दें कि उमर […]

नयी दिल्ली : जेएनयू में देशविरोधी नारों के आरोप में गिरफ्तार उमर खालिद और अनिर्बान की जमानत याचिका पर पटियाला हाउस कोर्ट में आज सुनवाई हुई. दोनों की ज़मानत याचिका पर निचली अदालत में सुनवाई आज पूरी हो गई है और फैसला 18 मार्च तक सुरक्षित रख लिया गया है. आपको बता दें कि उमर और अनिर्बान की ओर से पटियाला हाउस कोर्ट में मंगलवार को जमानत की याचिका दी गई थी. अपनी अर्जी में इन्होंने दलील दी थी कि कन्हैया को इसी मामले में जमानत दी जा चुकी है लिहाजा उन्हें भी जमानत दी जाए. इससे पहले कल ही उमर और अनिर्बान की न्यायिक हिरासत को अदालत ने एक बार फिर 14 दिन के लिए बढ़ा दिया था.

उमर और अनिर्बान के वकीलकीदलील
जेएनयू विवाद मामले में सुनवाई के दौरान उमर और अनिर्बान के वकील ने दलील देते हुए कहा कि 9 फरवरी की घटना देशद्रोह की श्रेणी में नहीं आती है, यह अपनी-अपनी राय की बात है, कानून की नहीं. वकील ने दलील देते हुए कहा कि 124-ए तब लगती है जब लोगों को भड़काने का इरादा हो और उसकी वजह से हिंसा हो, लेकिन इस मामले में ऐसा कुछ नहीं हुआ. इस मामले में देशद्रोह की धारा नहीं बनती है जबकि पुलिस ने देशद्रोह की धारा 124 ए के तहत मामला दर्ज़ किया है.उमर के वकील ने दलील देते हुए कहा कि इससे पहले एक जज ने भी कहा था कि अफज़ल की फांसी को लेकर जो पोस्टर था उसमे जुडिशल किलिंग की बात थी उसमे कुछ भी गलत नहीं था. अगर उमर के अलावा 7 और लोग शामिल थे जिनका नाम पुलिस ने लिया वो कहां हैं? सहआरोपी कन्हैया कुमार को ज़मानत मिल गयी तो इसको जमानत क्यों नहीं मिल सकती है.

दिल्ली पुलिसकीदलील
वहीं दिल्ली पुलिस ने मामले में दलील देते हुए कहा कि 4 लोगों ने कार्यक्रम की अनुमति मांगी थी. पोस्टर पर अस्वथि,कोमल,अनिर्बान और उमर का नाम भी था. 9 फ़रवरी को जेएनयू में हुए प्रोग्राम का आयोजक कन्हैया कुमार नहीं था. आरोपियों की ईमेल आईडी से वो पोस्टर भी मिले. अनिर्बान ने पोस्टर डिज़ाइन किया और उमर ने उसको मंजूरी दी. दिल्ली पुलिस ने कहा कि 124ए में हिंसा होना ज़रूरी नहीं है अगर वे ऐसी गतिविधि में शामिल है जहां इसकी कोशिश हो सकती है तब भी ये धारा बनती है. उमर खालिद ने वहां पर स्पीकर भी बुक किया था और पूरा आयोजन किया था. इन दोनों ने भीड़ की अगुवाई की. ये ही मुख्य आयोजक थे.

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