दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक एसएआर गिलानी को राजद्रोह के मामले में जमानत

नयी दिल्ली : दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक एसएआर गिलानी को दिल्ली की एक अदालत ने कथित राजद्रोह के मामले में आज जमानत दे दी. यह मामला पिछले माह प्रेस क्लब में हुए एक कार्यक्रम से संबंधित है. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश दीपक गर्ग ने गिलानी को 50,000 रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 19, 2016 2:43 PM

नयी दिल्ली : दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक एसएआर गिलानी को दिल्ली की एक अदालत ने कथित राजद्रोह के मामले में आज जमानत दे दी. यह मामला पिछले माह प्रेस क्लब में हुए एक कार्यक्रम से संबंधित है.

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश दीपक गर्ग ने गिलानी को 50,000 रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि की जमानत पर राहत दी.

गिलानी के वकील सतीश टमटा ने उनके लिए जमानत की मांग करते हुए दावा किया कि रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है कि गिलानी ने भारत विरोधी नारे लगाये या दूसरों को ऐसा करने के लिए कहा.

उन्होंने कहा कि यह कश्मीर के मुद्दे पर चर्चा करने के लिए बुद्धिजीवियों की बैठक थी. टमटा ने कहा ‘‘आयोजन में ऐसा कुछ भी नहीं था जिसके कारण हिंसा हो क्योंकि उकसावे वाली कोई बात ही नहीं थी. ” उन्होंने यह भी कहा कि उच्चतम न्यायालय के आदेशानुसार, केवल नारे लगाने भर से ही भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (राजद्रोह) के तहत अपराध नहीं हो जाता.

बहरहाल, दिल्ली पुलिस ने जमानत की अपील का विरोध करते हुए कहा कि कार्यक्रम ‘‘भारत की आत्मा पर एक हमला था” और यह ‘‘अदालत की अवमानना” थी. अभियोजन पक्ष ने यह भी कहा ‘‘यह घटना एक दिन पहले जेएनयू में हुए घटनाक्रम का जारी रूप थी. भारतीय प्रेस क्लब के पदाधिकारियों के बयानों के अनुसार, भारत विरोधी नारे लगाए गए और गिलानी भी इसमें शामिल थे. गिलानी ने देश के कानून का उल्लंघन किया है और अपराध गंभीर है.”

इससे पहले 19 जनवरी को एक मजिस्ट्रेटी अदालत ने गिलानी की जमानत याचिका खारिज कर दी थी. गिलानी को 16 फरवरी को गिरफ्तार किया गया था। पुलिस ने उन पर सरकार के खिलाफ नफरत फैलाए जाने का आरोप लगाया था.

पुलिस ने अदालत को बताया कि 10 फरवरी को एक आयोजन हुआ था जिसमें संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु और मकबूल भट्ट को शहीद बताने वाले बैनर लगाए गए थे। पुलिस ने यह भी कहा कि प्रेस क्लब में गिलानी ने अपने सहयोगी अली जावेद के माध्यम से उसके क्रेडिट कार्ड का उपयोग करते हुए एक हाल बुक करवाया था. एक अन्य व्यक्ति मुदस्सर भी इसमें शामिल था.

प्रेस क्लब में हुए कार्यक्रम में एक समूह ने अफजल गुरु के पक्ष में कथित तौर पर नारे लगाए थे जिसके बाद पुलिस ने गिलानी तथा अन्य अनाम व्यक्तियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (देशद्रोह), 120बी (आपराधिक षड्यंत्र) और 149 (गैरकानूनी तरीके से एकत्र होना) के तहत मामला दर्ज किया था.

पुलिस ने घटना के बारे में मीडिया में आई खबरों पर स्वत: संज्ञान लेते हुए प्राथमिकी दर्ज करने का दावा किया था.

प्राथमिकी दर्ज करने के बाद पुलिस ने डीयू के प्राध्यपाक और प्रेस क्लब के सदस्य जावेद से पूछताछ की। जावेद ने कार्यक्रम की खातिर दो दिन के लिए हाल बुक किया था.

गिलानी को वर्ष 2001 में संसद पर हुए हमले के संबंध में गिरफ्तार किया गया था लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय ने अक्तूबर 2003 में ‘‘सबूतों के अभाव” में उन्हें बरी कर दिया था. उच्चतम न्यायालय ने अगस्त 2005 में इस फैसले को बरकरार रखा था.

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