उत्तराखंड संकट : पढ़िये वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय का विश्लेषण

।।प्रभात खबर डॉट कॉम के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय।। उत्तराखंड का स्थिति आज पहले से भिन्न है. हरीश रावत जब प्रदेश में भेजे गये थे, तो उनकी एक ईमानदार मुख्यमंत्री की छवि थी. हालांकि इस बात का प्रमाण नहींथा कि वे कुशल व योग्य भी होंगे. वे मुख्यत: लोकसभा में ही रहे हैं. उत्तराखंड […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 26, 2016 7:28 PM

।।प्रभात खबर डॉट कॉम के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय।।


उत्तराखंड का स्थिति आज पहले से भिन्न है. हरीश रावत जब प्रदेश में भेजे गये थे, तो उनकी एक ईमानदार मुख्यमंत्री की छवि थी. हालांकि इस बात का प्रमाण नहींथा कि वे कुशल व योग्य भी होंगे. वे मुख्यत: लोकसभा में ही रहे हैं. उत्तराखंड बनने के बाद से कांग्रेस के सत्ता में आने पर हरीश रावत मुख्यमंत्री पद की दावेदारी करते रहे हैं.कांग्रेस हाइकमान ने उन्हें अवसर भी दिया.


पर, जैसे-जैसे समय गुजरता गया लोग महसूस करने लगे कि वे भूमाफियाओं के गिरोह में फंस गये हैं. और, उनका नेतृत्व हरीश रावत के बेटे कर रहे हैं.सरकारकी मदद से वहां भूमि पर कब्जा करना, उसे बेचना यह परंपरा बन गयी है.इससे कांग्रेस में असंतोष पैदा हुआ है. दूसरे लोग देख रहे हैं कि सरकार में रहने का निजी लाभ हरीश रावत व उनके पुत्र उठा रहे हैं. विजय बहुगुणा के बेटे वंचित हैं. उनकी पार्टी सत्ता में है, लेकिन लाभ से वे वंचित हैं.


उत्तराखंड में कांग्रेस के बागी विधायक हरक सिंह रावत अच्छे मास लीडर हैं. उन्हें भी दरकिनार कर दिया गया है. ऐसे मेें जो असंतोष पनप रहा था, वह फट गया है. उन्हें लगा कि अगर इनको हटाया जा सके तो इससे हमलोगों को अवसर मिलेगा. अब कांग्रेस का तरीका संतुलन बनाने व सत्ता के सुख का समान रूप से बंटावारा का नहीं है. हरीश रावत ने एकाधिकार कायम कर लिया है.पुलिस-प्रशासन के ईमानदार लोग त्रस्त हैं. उत्तराखंडमेंआज किसी की जमीन-मकानपर कब्जा हो रहा है तो किसी की औद्योगिकइकाई पर कब्जा हो रहा है.वहां विपक्ष हाशिये पर नहीं है. बामुश्किल सात-आठ सीटों का अंतर है. ऐसे में अगर एक तिहाईविधायक भी बगावत करते हैं तो मिलीजुली सरकार बनने का रास्ता साफ हो जाता है.


अपमानित महसूस कर रहे विजय बहुगुणा


विजय बहुगुणा खुद को अपमानित महसूस कर रहे हैं. उन्हें हटाकर हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया है. राजनीति से पहले विजय न्यायपालिका में थे, लेकिन उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था. उन्होंनेप्रतिकूलपरिस्थिति में राजनीति का रास्ता चुना. मैं विजय बहुगुणा के पिता हेमवती नंदन बहुगुणा से मिलता-जुलता रहा हूं. 1983-84 से 1989 में उनके निधन तक मैं अकसर उनसे मिलता था. पंडित पंत मार्ग पर उनका दफ्तर था और पास में ही मैं खड़ग सिंह मार्ग पर रहता था. दस कदम दूरी पर होने के कारण अक्सर आते-जाते उनसे मुलाकात हो जाती थी.

उस समय विजय की रुचि राजनीति में नहीं थी. न्यायपालिका से इस्तीफा देने पर राजनीति में उन्होंने रुचि ली. पर, विजय की राजनीति में वैसी रुचि नहीं है, जैसी उनकी बहन रीता बहुगुणा जोशी की है. विजय के हाथ-पैर लंबे हैं.उत्तराखंड में जो बगावत हुई है, उसमें विजय के बेटे का बड़ा रोल है. कांग्रेस को इस बारे में पता चला तो रीता बहुगुणा को समझाने के लिए लगाया. पर, वे विफल रहीं. अब, विजय बहुगुणा जिस सीमा तक चले गये हैं, वहां से लौटना मुश्किल है.

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कांग्रेस के पास नैतिक सत्ता नहीं


इस पूरे प्रसंग का दूसरा पहलू भी है. कांग्रेस के पास आज नैतिक सत्ता या बल नहीं है. अगर यह नहीं है तो राज्य का संचालन नहीं कर सकते हैं. राहुल गांधी की मैं इसे विफलता मानता हूं. उत्तराखंड की घटना इससे अलग-थलग नहीं है. इससे पहले अरुणाचल प्रदेश में और उसके बाद मणिपुर में कांग्रेस में बगावत हुई.


अगर हरीश रावत सरकार के बहुमत साबित करने के दौरान राज्यपाल या स्पीकर ने कोई पेंच नहीं फंसाया तो उनके लिए सरकार बचाना मुश्किल है. हरीश रावत सरकार का अल्पमत में आना राहुल गांधी की विफलता है. हरीश अपनी करतूतों का परिणाम भुगत रहे हैं.


विजय की हेमवती नंदन बहुगुणा से तुलना नहीं


विजय बहुगुणा की तुलना उनके पिता हेमवती नंदन बहुगुण से नहीं की जा सकती है. बस विजय स्वयं को अपमानित महसूस कर रहे हैं और अवसर से वंचित कर दिये गये हैं. राष्ट्रीय नेतृत्व को इन्हें अपने मन की भड़ास निकालने का अवसर देना चाहिए.पर, राहुल गांधी केंद्रीकरण कर रहे हैं. सबकुछ अपने हाथ में ले रहे हैं. इससे राज्यों में असंतोष फैल रहा है. आपको पता ही नहीं है कि आपकी पार्टी में क्या चल रहा है?


पहले के राजनीतिक नेता अधिक से अधिक लोगों के संपर्क में रहते थे. सार्वजनिक जीवन में 24 घंटे दूसरों के लिए उपलब्ध रहते थे. राहुल गांधी के लिए कुछ निजी वक्त है, कुछ पब्लिक के लिए समय है. उन्हें पता नहीं कि राजनीति कैसे होती है.कांग्रेसने प्रशांत किशोर को रणनीतिकाकाम सौंपा है. कांग्रेस अपना काम इवेंट मैनेजमेंट वालों काे सौंप रही है. ऐसे में वह पार्टी नहीं, कंपनी हो सकती है. राजनीतिक कार्यकर्ता की पीड़ा नहीं समझी जा रही है.


मुख्यमंत्री की हाइकमान को जरूरत


पार्टियों को चलाने के लिए हाइकमान को मुख्यमंत्रियों की जरूरत पड़ती है. जब 1999-2004 के बीच कांग्रेस सत्ता में नहीं थी, तो आंध्रप्रदेश के वाइएसआर रेड्डी पार्टी चलाने के लिए फंड जुटाने का प्रबंध करते थे. यह काम हरीश रावत आज कर रहे हैं. इसलिए राहुल गांधी के पास विजय बहुगुणा के लिए समय नहीं है.


कांग्रेस का नुकसान नहीं कर सकेंगे विजय


यह मानना उचित नहीं होगा कि विजय बहुगुणा उत्तराखंड में कांग्रेस को ध्वस्त कर देंगे. उनकी जनता पर पकड़ नहीं है. राहुल गांधी की ही तरह उनका विकास हुआ है. राहुल की पूंजी नेहरू-गांधी परिवार में उनका जन्म है और विजय बहुगुणा की भी पूंजी बहुगुणा परिवार में जन्म है. हेमवती नंदन बहुगुणा का उत्तराखंड में बहुत सम्मान है. जहां तक गांधी व बहुगुणा परिवार के रिश्तों का सवाल है तो यह पारिवारिक नहीं राजनीतिक रिश्ता है. रीता इलहाबाद में हैं और विजय बहुगुणा देहरादून में. अगर पारिवारिक संबंध का असर होता तो रीता अपने भाई को मना लेतीं. कांग्रेस में ऐसे भी पारिवारिक संबंध की परंपरा नहीं है.


मेरा मानना है कि भाजपा राज्य में सरकार गठन से ज्यादा राष्ट्रपति शासन व फिर चुनाव के लिए प्रयास करेगी.


(राहुल सिंह से बातचीत पर आधारित.)

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