PM मोदी की ”मन की बात” – भारत के गांव-गांव तक फुटबॉल को पहुंचाना है

पढ़े प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘मन की बात’ ‘मेरे प्यारे देशवासियो, आप सब को बहुत-बहुत नमस्कार. आज दुनिया भर में ईसाई समुदाय के लोग इस्टर मना रहे हैं. मैं सभी लोगों को इस्टर की ढेरों शुभकामनायें देता हूं. मेरे युवा दोस्तो, आप सब एक तरफ एग्जाम में बिजी होंगे. कुछ लोगों की एग्जाम पूरी हो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 27, 2016 9:25 AM

पढ़े प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘मन की बात’

‘मेरे प्यारे देशवासियो, आप सब को बहुत-बहुत नमस्कार. आज दुनिया भर में ईसाई समुदाय के लोग इस्टर मना रहे हैं. मैं सभी लोगों को इस्टर की ढेरों शुभकामनायें देता हूं. मेरे युवा दोस्तो, आप सब एक तरफ एग्जाम में बिजी होंगे. कुछ लोगों की एग्जाम पूरी हो गयी होगी. और कुछ लोगों के लिए इसलिए भी कसौटी होगी कि एक तरफ़ एग्जाम और दूसरी तरफ T-20 क्रिकेट वर्ल्ड कप. आज भी शायद आप भारत और ऑस्ट्रेलिया के मैच का इंतजार करते होंगे. पिछले दिनों भारत ने पाकिस्तान और बांग्लादेश के खिलाफ दो बेहतरीन मैच जीते हैं. एक बढ़िया सा मोमेंटम नजर आ रहा है. आज जब ऑस्ट्रेलिया और भारत खेलने वाले हैं, मैं दोनों टीमों के खिलाडि़यों को अपनी शुभकामनायें देता हूं.

एक साल को फुटबॉलमय बनाना है

65 प्रतिशत जनसंख्या नौजवान हो और खेलों की दुनिया में हम खो गए हों. ये तो बात कुछ बनती नहीं है. समय है, खेलों में एक नयी क्रांति का दौर का. और हम देख रहे हैं कि भारत में क्रिकेट की तरह अब फुटबॉल, हॉकी, टेनिस और कब्बडी एक मूड बनता जा रहा है. मैं आज नौजवानों को एक और खुशखबरी के साथ, कुछ अपेक्षायें भी बताना चाहता हू. आपको शायद इस बात का तो पता चल गया होगा कि अगले वर्ष 2017 में भारत फीफा अंडर – 17 विश्वकप की मेजबानी करने जा रहा है. विश्व की 24 टीमें भारत में खेलने के लिए आ रही हैं. 1951, 1962 एशियन गेम्स में भारत ने गोल्ड मेडल जीता था और 1956 ओलंपिक गेम्स में भारत चौथे स्थान पर रहा था. लेकिन दुर्भाग्य से पिछले कुछ दशकों में हम निचली पायरी पर ही चलते गए, पीछे ही हटते गए, गिरते ही गए, गिरते ही गए.

आज तो फीफा में हमारा रैंकिंग इतना नीचे है कि मेरी बोलने की हिम्मत भी नहीं हो रही है. और दूसरी तरफ मैं देख रहा हूँ कि इन दिनों भारत में युवाओं की फुटबॉल में रूचि बढ़ रही है. ईपीएल हो, स्पैनिश लीग हो या इंडियन सुपर लीग के मैच हों. भारत का युवा उसके विषय में जानकारी पाने के लिए, TV पर देखने के लिए समय निकालता है. कहने का तात्पर्य यह है कि रूचि तो बढ़ रही है. लेकिन इतना बड़ा अवसर जब भारत में आ रहा है, तो हम सिर्फ मेजबान बन कर के अपनी जिम्मेवारी पूरी करेंगे? इस पूरा वर्ष एक फुटबॉल, फुटबॉल, फुटबॉल का माहौल बना दें. स्कूलों में, कॉलेजों में, हिन्दुस्तान के हर कोने पर हमारे नौजवान, हमारे स्कूलों के बालक पसीने से तर-ब-तर हों. चारो तरफ फुटबॉल खेला जाता हो. ये अगर करेंगे तो फिर तो मेजबानी का मजा आएगा और इसीलिए हम सब की कोशिश होनी चाहिये कि हम फुटबॉल को गांव-गांव, गली-गली कैसे पहुँचाएं.

2017 फीफा अंडर – 17 विश्वकप एक ऐसा अवसर है इस एक साल के भीतर-भीतर हम चारों तरफ़ नौजवानों के अन्दर फुटबॉल के लिए एक नया जोम भर दे, एक नया उत्साह भर दे. इस मेजबानी का एक फायदा तो है ही है कि हमारे यहां इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार होगा. खेल के लिए जो आवश्यक सुविधाएं हैं उस पर ध्यान जाएगा. मुझे तो इसका आनंद तब मिलेगा जब हम हर नौजवान को फुटबॉल के साथ जोड़ेंगे. दोस्तो, मैं आप से एक अपेक्षा करता हूं. 2017 की ये मेजबानी, ये अवसर कैसा हो, साल भर का हमारा फुटबॉल में मोमेन्टम लाने के लिए कैसे-कैसे कार्यक्रम हो, प्रचार कैसे हो, व्यवस्थाओं में सुधार कैसे हो, फीफा अंडर – 17 विश्वकप के माध्यम से भारत के नौजवानों में खेल के प्रति रूचि कैसे बढ़े, सरकारों में, शैक्षिक संस्थाओं में, अन्य सामाजिक संगठनों में, खेल के साथ जुड़ने की स्पर्धा कैसे खड़ी हो?

क्रिकेट में हम सभी देख पा रहे हैं, लेकिन यही चीज़ और खेलों में भी लानी है. फुटबॉल एक अवसर है. क्या आप मुझे अपने सुझाव दे सकते हैं? वैश्विक स्तर पर भारत का ब्रांडिंग करने के लिए एक बहुत बड़ा अवसर मैं मानता हूं. भारत की युवा शक्ति की पहचान कराने का अवसर मानता हूं. मैच के दरमियां क्या पाया, क्या खोया उस अर्थ में नहीं. इस मेज़बानी की तैयारी के द्वारा भी, हम अपनी शक्ति को सजो सकते हैं, शक्ति को प्रकट भी कर सकते हैं और हम भारत का ब्रांडिंग भी कर सकते हैं. क्या आप मुझे NarendraModiApp, पर अपने सुझाव भेज सकते हैं क्या? लोगो कैसा हो, स्लोगन कैसे हों, भारत में इस बात को फैलाने के लिए क्या-क्या तरीके हों, गीत कैसे हों, सोवेनियर बनाने हैं तो किस-किस प्रकार के सोवेनियर बन सकते हैं. सोचिए दोस्तो, और मैं चाहूंगा कि मेरा हर नौजवान ये 2017, फीफा अंडर – 17 विश्व कप का अंबेसडर बने. आप भी इसमें शरीक होइए, भारत की पहचान बनाने का सुनहरा अवसर है.

गर्मी की छुट्टियां कुछ सीखने में बितायें

मेरे प्यारे विद्यार्थियो, छुट्टियों के दिनों में आपने पर्यटन के लिए सोचा ही होगा. बहुत कम लोग हैं जो विदेश जाते हैं लेकिन ज्यादातर लोग अपने-अपने राज्यों में 5 दिन, 7 दिन कहीं चले जाते हैं. कुछ लोग अपने राज्यों से बाहर जाते हैं. पिछली बार भी मैंने आप लोगों से एक आग्रह किया था कि आप जहां जाते हैं वहाँ से फोटो अपलोड कीजिए. और मैंने देखा कि जो काम टूरिज्म डिपार्टमेंट नहीं कर सकता, जो काम हमारा कल्चरल डिपार्टमेंट नहीं कर सकता, जो काम राज्य सरकारें, भारत सरकार नहीं कर सकतीं, वो काम देश के करोड़ों-करोड़ों ऐसे प्रवासियों ने कर दिया था. ऐसी-ऐसी जगहों के फोटो अपलोड किये गए थे कि देख कर के सचमुच में आनंद होता था. इस काम को हमें आगे बढ़ाना है इस बार भी कीजिये, लेकिन इस बार उसके साथ कुछ लिखिए.

सिर्फ़ फोटो नहीं. आपकी रचनात्मक जो प्रवृति है उसको प्रकट कीजिए और नयी जगह पर जाने से, देखने से बहुत कुछ सीखने को मिलता है. जो चीजें हम क्लासरूम में नहीं सीख पाते, जो हम परिवार में नहीं सीख पाते, जो चीज हम यार-दोस्तों के बीच में नहीं सीख पाते, वे कभी-कभी भ्रमण करने से ज्यादा सीखने को मिलती है और नयी जगहों के नयेपन का अनुभव होता है. लोग, भाषा, खान-पान वहाँ के रहन-सहन न जाने क्या-क्या देखने को मिलता है. और किसी ने कहा है – ‘A traveller without observation. is a bird without wings’ ‘शौक-ए-दीदार है अगर, तो नज़र पैदा कर’.

भारत विविधताओं से भरा हुआ है. एक बार देखने के लिए निकल पड़ो जीवन भर देखते ही रहोगे, देखते ही रहोगे. कभी मन नहीं भरेगा और मैं तो भाग्यशाली हूं मुझे बहुत भ्रमण करने का अवसर मिला है. जब मुख्यमंत्री नहीं था, प्रधानमंत्री नहीं था और आपकी ही तरह छोटी उम्र थी, मैंने बहुत भ्रमण किया. शायद हिन्दुस्तान का कोई जिला नहीं होगा, जहां मुझे जाने का अवसर न मिला हो. जिन्दगी को बनाने के लिए प्रवास की एक बहुत बड़ी ताकत होती है और अब भारत के युवकों में प्रवास में साहस जुड़ता चला जा रहा है. जिज्ञासा जुड़ती चली जा रही है. पहले की तरह वो रटे-रटाये, बने-बनाये उसी रुट पर नहीं चला जाता है, वो कुछ नया करना चाहता है, वो कुछ नया देखना चाहता है. मैं इसे एक अच्छी निशानी मानता हूं.

हमारा युवा साहसिक हो, जहां कभी पैर नहीं रखा है, वहां पैर रखने का उसका मन होना चाहिए. मैं कोल इंडिया को एक विशेष बधाई देना चाहता हूं. वेस्टर्न कोलफिल्‍ड लिमिटेड, नागपुर के पास एक सावनेर, जहां कोल माइन्स हैं. उस कोल माइन्स में उन्होंने इको फ्रेंडली माइल टूरिज्म सर्किट विकसित की है. आम तौर पर हम लोगों की सोच है कि कोल माइन्स – यानि दूर ही रहना. वहां के लोगों की तस्वीरें जो हम देखते हैं तो हमें लगता है वहां जाने जैसा क्या होगा और हमारे यहाँ तो कहावत भी रहती है कि कोयले में हाथ काले, तो लोग यूं ही दूर भागते हैं. लेकिन उसी कोयले को टूरिज्म का डेस्टिनेशन बना देना और मैं खुश हूं कि अभी-अभी तो ये शुरुआत हुई है और अब तक करीब दस हजार से ज्यादा लोगों ने नागपुर के पास सावनेर गांव के निकट ये इको फ्रेंडली माइन टूरिज्म की मुलाकात की है. ये अपने आप में कुछ नया देखने का अवसर देती है. मैं आशा करता हूँ कि इन छुट्टियों में जब प्रवास पर जाएं तो स्वच्छता में आप कुछ योगदान दे सकते हैं क्या?

टूरिज्म प्लेस को स्वच्छ बनाने में मदद करें

इन दिनों एक बात नजर आ रही है, भले वो कम मात्रा में हो अभी भी आलोचना करनी है तो अवसर भी है लेकिन फिर भी अगर हम ये कहें कि एक जागरूकता आई है. टूरिस्ट प्लेस पर लोग स्वच्छता बनाये रखने का प्रयास कर रहे हैं. टूरिस्ट भी कर रहे हैं और जो टूरिस्ट डेस्टिनेशन के स्थान पर स्थाई रूप से रहने वाले लोग भी कुछ न कुछ कर रहे हैं. हो सकता है बहुत वैज्ञानिक तरीके से नहीं हो रहा? लेकिन हो रहा है. आप भी एक टूरिस्‍ट के नाते ‘tourist destination पर स्वच्छता’ उस पर आप बल दे सकते हैं क्या? मुझे विश्वास है मेरे नौजवान मुझे इसमें जरूर मदद करेंगे. और ये बात सही है कि टूरिज्म सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला क्षेत्र है.

गरीब से गरीब व्यक्ति कमाता है और जब टूरिस्ट, टूरिस्ट डेस्टिनेशन पर जाता है. गरीब टूरिस्ट जाएगा तो कुछ न कुछ तो लेगा. अमीर होगा तो ज्यादा खर्चा करेगा. और टूरिज्म के द्वारा बहुत रोजगार की संभावना है. विश्व की तुलना में भारत टूरिज्म में अभी बहुत पीछे है. लेकिन हम सवा सौ करोड़ देशवासी हम तय करें कि हमें अपने टूरिज्म को बल देना है तो हम दुनिया को आकर्षित कर सकते हैं. विश्व के टूरिस्‍ट के एक बहुत बड़े हिस्से को हमारी ओर आकर्षित कर सकते हैं और हमारे देश के करोड़ो-करोड़ों नौजवानों को रोजगार के अवसर उपलब्ध करा सकते हैं. सरकार हो, संस्थाएं हों, समाज हो, नागरिक हो हम सब ने मिल करके ये करने का काम है. आइये हम उस दिशा में कुछ करने का प्रयास करें.

छुट्टियों में कुछ नया सीखने का प्रयास करें

मेरे युवा दोस्तो, छुट्टियां ऐसे ही आ कर चला जाएं, ये बात मुझे अच्छी नहीं लगती. आप भी इस दिशा में सोचिए. क्या आपकी छुट्टियां, ज़िन्दगी के महत्वपूर्ण वर्ष और उसका भी महत्वपूर्ण समय ऐसे ही जाने दोगे क्या? मैं आपको सोचने के लिए एक विचार रखता हूं. क्या आप छुट्टियों में एक हुनर, अपने व्यक्तित्व में एक नयी चीज जोड़ने का संकल्प, ये कर सकते हैं क्या? अगर आपको तैरना नहीं आता है, तो छुट्टियों मे संकल्प कर सकते हैं, मैं तैरना सीख लूं, साईकिल चलाना नही आता है तो छुट्टियों मे तय कर लूं मैं साईकिल चलाऊं. आज भी मैं दो उंगली से कंप्यूटर को टाइप करता हूँ, तो क्या मैं टाइपिंग सीख लूं?

हमारे व्यक्तित्व के विकास के लिए कितने प्रकार के कौशल है? क्यों ना उसको सीखें? क्यों न हमारी कुछ कमियों को दूर करें? क्यों न हम अपनी शक्तियों में इजाफा करें. अब सोचिए और कोई उसमें बहुत बड़े क्लासेज चाहिए कोई ट्रेनर चाहिए, बहुत बड़ी फीस चाहिए, बड़ा बजट चाहिए ऐसा नहीं है. आप अपने अगल-बगल में भी मान लीजिये आप तय करें कि मैं वेस्ट में से बेस्ट बनाऊंगा. कुछ देखिये और उसमे से बनाना शुरू कर दीजिये. देखिये आप को आनंद आयेगा शाम होते-होते देखिये ये कूड़े-कचरे में से आपने क्या बना दिया. आप को पेंटिंग का शौक है, आता नही है, अरे तो शुरू कर दीजिये ना, आ जायेगा.

आप अपनी छुट्टियों का समय अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए, अपने पास कोई एक नये हुनर के लिए, अपने कौशल-विकास के लिए अवश्य करें और अनगिनत क्षेत्र हो सकते हैं जरुरी नहीं है, कि मैं जो गिना रहा हूं वही क्षेत्र हो सकते है. और आपके व्यक्तित्व की पहचान उससे और उससे आप का आत्मविश्वास इतना बढ़ेगा इतना बढ़ेगा। एक बार देख लीजिये जब छुट्टियों के बाद स्कूल में वापिस जाओगे, कॉलेज मे वापिस जाओगे और अपने साथियों को कहोगे कि भाई मैंने तो छुट्टीयों मे ये सीख लिया और अगर उसने नहीं सिखा होगा, तो वो सोचेगा कि यार मेरा तो बर्बाद हो गया तुम बड़े पक्के हो यार कुछ करके आ गए. ये अपने साथियों मे शायद बात होगी. मुझे विश्वास है कि आप जरूर करेंगे. और मुझे बताइए कि आप ने क्या सीखा. बतायेंगे ना. इस बार ‘मन की बात’ में My-gov पर कई सुझाव आये हैं.

बच्चे ने याद दिलायी पिछली बातें

‘मेरा नाम अभि चतुर्वेदी है। नमस्ते प्रधानमंत्री जी, आपने पिछले गर्मियों की छुट्टियों में बोला कि चिड़ियों को भी गर्मी लगती है, तो हमने एक बर्तन में पानी में रखकर अपनी बालकोनी में या छत पर रख देना चाहिये, जिससे चिड़िया आकर पानी पी लें. मैंने ये काम किया और मेरे को आनंद आया, इसी बहाने मेरी बहुत सारी चिड़ियों से दोस्ती हो गयी. मैं आपसे विनती करता हूँ कि आप इस कार्य को वापस ‘मन की बात’ में दोहराएं.’

मेरे प्यारे देशवासियो, मैं अभि चतुर्वेदी का आभारी हूं इस बालक ने मुझे याद कराया वैसे मैं भूल गया था. और मेरे मन में नहीं था कि आज मैं इस विषय पर कुछ कहूंगा लेकिन उस अभि ने मुझे याद करवाया कि पिछले वर्ष मैंने पक्षियों के लिए घर के बाहर मिट्टी के बर्तन में. मेरे प्यारे देशवासियो मैं अभि चतुर्वेदी एक बालक का आभार व्यक्त करना चाहता हूं. उसने मुझे फोन करके एक अच्छा काम याद करवा दिया. पिछली बार तो मुझे याद था. और मैंने कहा था कि गर्मियों के दिनों मे पक्षियों के लिए अपने घर के बाहर मिट्टी के बर्तनों मे पानी रखे. अभि ने मुझे बताया कि वो साल भर से इस काम को कर रहा है. और उसकी कई चिड़िया उसकी दोस्त बन गई है. हिन्दी की महान कवि महादेवी वर्मा वो पक्षियों को बहुत प्यार करती थीं. उन्होंने अपनी कविता में लिखा था –

तुझको दूर न जाने देंगे,

दानों से आंगन भर देंगे.

और होद में भर देंगे हम,

मीठा-मीठा ठंडा पानी.’

आइये महादेवी जी की इस बात को हम भी करें. मैं अभि को अभिनन्दन भी देता हूं और आभार भी व्यक्त करता हूं कि तुमने मुझको बहुत महत्वपूर्ण बात याद कराई. मैसूर से शिल्पा कूके, उन्होंने एक बड़ा संवेदनशील मुद्दा हम सब के लिए रखा है. उन्होंने कहा है कि हमारे घर के पास दूध बेचने वाले आते हैं, अख़बार बेचने वाले आते हैं, पोस्टमैन आते हैं. कभी कोई बर्तन बेचने वाले वहाँ से गुजरते हैं, कपड़े बेचने वाले गुजरते हैं। क्या कभी हमने उनको गर्मियों के दिनों मे पानी के लिए पूछा है क्या? क्या कभी हमने उसको पानी ऑफर किया है क्या? शिल्पा मैं आप का बहुत आभारी हूं आपने बहुत संवेदनशील विषय को बड़े सामान्य सरल तरीके से रख दिया. ये बात सही है बात छोटी होती है लेकिन गर्मी के बीच अगर पोस्टमैन घर के पास आया और हमने पानी पिलाया कितना अच्छा लगेगा उसको. खैर भारत में तो ये स्वाभाव है ही है. लेकिन शिल्पा मैं आभारी हूं कि तुमने इन चीज़ों को ऑबजर्व किया.

किसानों के लिए भी उपयोगी है डिजिटल इंडिया

मेरे प्यारे किसान भाइयो और बहनो, डिजिटल इंडिया – डिजिटल इंडिया आपने बहुत सुना होगा. कुछ लोगों को लगता है कि डिजिटल इंडिया तो शहर के नौजवानों की दुनिया है. जी नही, आपको खुशी होगी कि एक ‘किसान सुविधा App’ आप सब की सेवा में प्रस्तुत किया है. ये ‘किसान सुविधा App’ के माध्यम से अगर आप उसको अपने मोबाइल फोन में डाउनलोड करते हैं तो आपको कृषि सम्बन्धी, मौसम सम्बन्धी बहुत सारी जानकारियां अपनी हथेली में ही मिल जाएगी. बाजार का हाल क्या है, मंडियों में क्या स्थिति है, इन दिनों अच्छी फसल का क्या दौर चल रहा है, दवाइयां कौन-सी उपयुक्त होती हैं? कई विषय उस पर है. इतना ही नहीं इसमें एक बटन ऐसा है कि जो सीधा-सीधा आपको कृषि वैज्ञानिकों के साथ जोड़ देता है, एक्सपर्ट के साथ जोड़ देता है. अगर आप अपना कोई सवाल उसके सामने रखोगे तो वो जवाब देता है, समझाता है, आपको. मैं आशा करता हूँ कि मेरे किसान भाई-बहन इस ‘किसान सुविधा App’ को अपने मोबाइल फोन पर डाउनलोड करें. प्रयास तो कीजिए उसमें से आपके काम कुछ आता है क्या? और फिर भी कुछ कमी महसूस होती है तो आप मुझे शिकायत भी कर दीजिये.

मेरे किसान भाइयो और बहनों, बाकियों के लिए तो गर्मी छुट्टियों के लिए अवसर रहा है. लेकिन किसान के लिए तो और भी पसीना बहाने का अवसर बन जाता है. वो वर्षा का इंतजार करता है और इंतजार के पहले किसान अपने खेत को तैयार करने के लिए जी-जान से जुट जाता है, ताकि वो बारिश की एक बूंद भी बर्बाद नहीं होने देना चाहता है. किसान के लिए, किसानी के सीजन शुरू होने का समय बड़ा ही महत्वपूर्ण होता है. लेकिन हम देशवासियो को भी सोचना होगा कि पानी के बिना क्या होगा? क्या ये समय हम अपने तालाब, अपने यहां पानी बहने के रास्ते तालाबों में पानी आने के जो मार्ग होते हैं जहाँ पर कूड़ा-कचरा या कुछ न कुछ इनक्रोचमेंट हो जाता तो पानी आना बंद हो जाता है और उसके कारण जल-संग्रह धीरे-धीरे कम होता जा रहा है. क्या हम उन पुरानी जगहों को फिर से एक बार खुदाई करके, सफाई करके अधिक जल-संचय के लिए तैयार कर सकते हैं क्या? जितना पानी बचायेंगे तो पहली बारिश में भी अगर पानी बचा लिया, तालाब भर गए, हमारे नदी नाले भर गए तो कभी पीछे बारिश रूठ भी जाये तो हमारा नुकसान कम होता है.

इस बार आपने देखा होगा 5 लाख तालाब, खेत-तालाब बनाने का बीड़ा उठाया है. मनरेगा से भी जल-संचय के लिए एसेट क्रियेट करने की तरफ बल दिया है. गांव-गांव पानी बचाओ, आने वाली बारिश में बूंद-बूंद पानी कैसे बचाएं. गांव का पानी गांव में रहे, ये अभियान कैसे चलायें, आप योजना बनाइए, सरकार की योजनाओं से जुड़िए ताकि एक ऐसा जन-आंदोलन खड़ा करें, ताकि हम पानी से एक ऐसा जन-आन्दोलन खड़ा करें जिसके पानी का माहत्म्य भी समझें और पानी संचय के लिए हर कोई जुड़े. देश में कई ऐसे गांव होंगे, कई ऐसे प्रगतिशील किसान होंगे, कई ऐसे जागरूक नागरिक होंगे जिन्होंने इस काम को किया होगा. लेकिन फिर भी अभी और ज्यादा करने की आवश्यकता है.

मेरे किसान भाइयो-बहनों, मैं एक बार आज फिर से दोहराना चाहता हूं. क्योंकि पिछले दिनों भारत सरकार ने एक बहुत बड़ा किसान मेला लगाया था और मैंने देखा कि क्या-क्या आधुनिक टेकनोलॉजी आई है, और कितना बदलाव आया है, कृषि क्षेत्र में, लेकिन फिर भी उसे खेतों तक पहुंचाना है और अब किसान भी कहने लगा है कि भई अब तो फर्टीलाइजर कम करना है. मैं इसका स्वागत करता हूं. अधिक फर्टीलाइजर के दुरुपयोग ने हमारी धरती मां को बीमार कर दिया है और हम धरती मां के बेटे हैं, सन्तान हैं हम अपनी धरती मां को बीमार कैसे देख सकते हैं. अच्छे मसाले डालें तो खाना कितना बढ़िया बनता है, लेकिन अच्छे से अच्छे मसाले भी अगर ज्यादा मात्रा में दाल दें तो वो खाना खाने का मन करता है क्या? वही खाना बुरा लगता है न?

ये फर्टीलाइजर का भी ऐसा ही है, कितना ही उत्तम फर्टीलाइजर क्यों न हो, लेकिन हद से ज्यादा फर्टीलाइजर का उपयोग करेंगे तो वो बर्बादी का कारण बन जायेगा. हर चीज बैलेंस होनी चाहिये और इससे खर्चा भी कम होगा, पैसे आपके बचेंगे. और हमारा तो मत है – कम कोस्ट ज्यादा ऑउटपुट, ‘कम लागत, ज्यादा पावत’, इसी मंत्र को ले करके चलना चाहिए और वैज्ञानिक तौर-तरीकों से हम अपने कृषि को आगे बढ़ाना चाहिए. मैं आशा करता हूं कि जल संचय में जो भी आवश्यक काम करना पड़े, हमारे पास एक-दो महीने हैं बारिश आने तक, हम पूरे मनोयोग से इसको करें. जितना पानी बचेगा किसानी को उतना ही ज्यादा लाभ होगा, ज़िन्दगी उतनी ही ज्यादा बचेगी.

स्वास्थ पर जोर, टीबी और मधुमेह से मुक्ति का संकल्प

मेरे प्यारे देशवासियो, 7 अप्रैल को ‘वर्ल्ड हेल्थ डे’ है और इस बार दुनिया ने ‘वर्ल्ड हेल्थ डे’ को ‘बीट डायबिटीज’ इस थीम पर केन्द्रित किया है. डायबिटीज को परास्त करिए. डायबिटीज एक ऐसा मेजबान है कि वो हर बीमारी की मेजबानी करने के लिए आतुर रहता है. एक बार अगर डायबिटीज घुस गया तो उसके पीछे ढेर सारे बीमारी रुपी मेहमान अपने घर में, शरीर में घुस जाते हैं. कहते हैं 2014 में भारत में करीब साडे छः करोड़ डायबिटीज के मरीज थे. 3 प्रतिशत मृत्यु का कारण कहते हैं कि डायबिटीज पाया गया. और डायबिटीज के दो प्रकार होते हैं एक टाइप-1, दूसरा टाइप-2. टाइप- 1 में वंशगत रहता है, माता-पिता को है इसलिए बालक को होता है. और टाइप-2 आदतों के कारण, उम्र के कारण, मोटापे के कारण. हम उसको निमंत्रण देकर के बुलाते हैं.

दुनिया डायबिटीज से चिंतित है, इसलिए 7 तारीक को ‘वर्ल्ड हेल्थ डे’ में इसको थीम रखा गया है. हम सब जानते हैं कि हमारी लाइफ स्टाइल उसके लिए सबसे बड़ा कारण है. शारीरिक श्रम कम हो रहा है. पसीने का नाम-ओ-निशान नहीं है, चलना-फिरना हो नहीं रहा है. खेल भी खेलेंगे तो ऑनलाइन खेलते है, ऑफलाइन कुछ नहीं हो रहा है. क्या हम, 7 तारीख से कुछ प्रेरणा ले कर के अपने निजी जीवन में डायबिटीज को परास्त करने के लिए कुछ कर सकते है क्या? आपको योग में रूचि है तो योग कीजिए नहीं तो कम से कम दौड़ने चलने के लिए तो जाइये. अगर मेरे देश का हर नागरिक स्वस्थ होगा तो मेरा भारत भी तो स्वस्थ होगा. कभी कबार हम संकोचवश मेडिकल चेक अप नहीं करवाते हैं. और फिर बहुत बुरे हाल होने के बाद ध्यान में आता है कि ओह… हो… मेरा तो बहुत पुराना डायबिटीज था. चेक करने में क्या जाता है इतना तो कर लीजिये और अब तो सारी बातें उपलब्ध हैं. बहुत आसानी से हो जाती हैं. आप जरूर उसकी चिंता कीजिए.

भारत मे टीबी मरीजों की संख्या काफी ज्यादा

24 मार्च को दुनिया ने टीबी डे मनाया. हम जानते है, जब मैं छोटा था तो टीबी का नाम सुनते ही डर जाते थे. ऐसा लगता था कि बस अब तो मौत आ गयी. लेकिन अब टीबी से डर नहीं लगता है क्योंकि सबको मालूम है कि टीबी का उपचार हो सकता है, और असानी से हो सकता है. लेकिन जब टीबी और मौत जुड़ गये थे तो हम डरते थे लेकिन अब टीबी के प्रति हम बेपरवाह हो गए हैं. लेकिन दुनिया की तुलना में टीबी के मरीजों की संख्या बहुत है. टीबी से अगर मुक्ति पानी है तो एक तो करेक्ट ट्रीटमेंट चाहिये और कंपलीट ट्रीटमेंट चाहिये. सही उपचार हो और पूरा उपचार हो. बीच में से छोड़ दिया तो वो मुसीबत नयी पैदा कर देता है. अच्छा टीबी तो एक ऐसी चीज है कि अड़ोस-पड़ोस के लोग भी तय कर सकते है कि अरे भई चेक करो देखो, टीबी हो गया होगा. खांसी आ रही है, बुखार रहता है, वजन कम होने लगता है. तो अड़ोस-पड़ोस को भी पता चल जाता है कि देखो यार कहीं उसको TB-VB तो नहीं हुआ. इसका मतलब हुआ कि ये बीमारी ऐसी है कि जिसको जल्द जांच की जा सकती है.

मेरे प्यारे देशवासियो, इस दिशा में बहुत काम हो रहा है. तेरह हजार पांच सौ से अधिक माइक्रोस्कोपी सेंटर हैं. चार लाख से अधिक DOT प्रोवाइडर हैं. अनेक एडवांस लैब हैं. और सारी सेवाएं मुफ़्त में हैं. आप एक बार जांच तो करा लीजिए. और ये बीमारी जा सकती है. बस सही उपचार हो और बीमारी नष्ट होने तक उपचार जारी रहे. मैं आपसे आग्रह करूंगा कि चाहे टीबी हो या डायबिटीज हो हमें उसे परास्त करना है. भारत को हमें इन बीमारियों से मुक्ति दिलानी है. लेकिन ये सरकार, डॉक्टर, दवाई से नहीं होता है जब तक की आप न करें. और इसलिए मैं आज मेरे देशवासियों से आग्रह करता हूं कि हम डायबिटीज को परास्त करें. हम टीबी से मुक्ति पायें.

नव वर्ष की शुभकामनाएं

मेरे प्यारे देशवासियो, अप्रैल महीने में कई महत्वपूर्ण अवसर आ रहे हैं. विशेष कर 14 अप्रैल भीमराव बाबा साहिब अम्बेडकर का जन्मदिन. उनकी 125वी जयंती साल भर पूरे देश में मनाई गयी. एक पंचतीर्थ, मऊ उनका जन्म् स्थान, लंदन में उनकी शिक्षा हुई, नागपुर में उनकी दीक्षा हुई, 26-अलीपुर रोड, दिल्ली में उनका महापरिनिर्वाण हुआ और मुंबई में जहां उनका अन्तिम संस्कार हुआ वो चैत्य भूमि. इन पांचों तीर्थ के विकास के लिए हम लगातार कोशिश कर रहे हैं. मेरा सौभाग्य है कि मुझे इस वर्ष 14 अप्रैल को मुझे बाबा साहिब अम्बेडकर की जन्मस्थली मऊ जाने का सौभाग्य मिल रहा है. एक उत्तम नागरिक बनने के लिए बाबा साहिब ने हमने बहुत कुछ दिया है. उस रास्ते पर चल कर के एक उत्तम नागरिक बन कर के उनको हम बहुत बड़ी श्रधांजलि दे सकते हैं.

कुछ ही दिनों में, विक्रम संवत् की शुरुआत होगी. नया विक्रम संवत् आएगा. अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग रूप से मनाया जाता है. कोई इसे नव संवत्सर कहता है, कोई गुड़ी-पड़वा कहता है, कोई वर्ष प्रतिप्रता कहता है, कोई उगादी कहता है. लेकिन हिन्दुस्तान के क़रीब-क़रीब सभी क्षत्रों में इसका महात्म्यं है. मेरी नव वर्ष के लिए सब को बहुत-बहुत शुभकामनाएं है.

मिस्ड कॉल देकर सुनें ‘मन की बात’

आप जानते हैं, मैं पिछली बार भी कहा था कि मेरे ‘मन की बात’ को सुनने के लिए, कभी भी सुन सकते हैं. क़रीब-क़रीब 20 भाषाओं में सुन सकते हैं. आपके अपने समय पर सुन सकते हैं. आपके अपने मोबाइल फ़ोन पर सुन सकते हैं. बस सिर्फ आपको एक मिस्ड कॉल करना होता है. और मुझे ख़ुशी है कि इस सेवा का लाभ अभी तो एक महीना बड़ी मुश्किल से हुआ है. लेकिन 35 लाख़ लोगों ने इसका फायदा उठाया. आप भी नंबर लिख लीजिये 81908-81908. मैं रिपीट करता हूं 81908-81908. आप मिस्ड कॉल करिए और जब भी आपकी सुविधा हो पुरानी ‘मन की बात’ भी सुनना चाहते हो तो भी सुन सकते हो, आपकी अपनी भाषा में सुन सकते हो. मुझे ख़ुशी होगी आपके साथ जुड़े रहने की.

मेरे प्यारे देशवासियो, आपको बहुत-बहुत शुभकामनायें. बहुत-बहुत धन्यवाद.

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