नयी दिल्ली : सड़क दुर्घटनाओं के पीडित लोगों की मदद करने वाले नेक लोगों को पुलिस या किसी अन्य अधिकारी द्वारा बेवजह परेशान किए जाने से बचाने के लिए उच्चतम न्यायालय ने आज इस संदर्भ में केंद्र के दिशानिर्देशों को मंजूरी दे दी है. न्यायाधीश वी गोपाला गौडा और न्यायाधीश अरुण मिश्रा की पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि वह इन दिशानिर्देशों का व्यापक प्रचार करे ताकि मुसीबत के समय दूसरों की मदद करने वाले नेक लोगों को कोई अधिकारी प्रताडित न कर पाए.
इस माह की शुरुआत में शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि वह सडक सुरक्षा पर एक पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में बनी समिति की सिफारिशों पर एक आदेश पारित करेगा. इन सिफारिशों में कहा गया था कि सडक दुर्घटनाओं के पीडितों की जिंदगी बचाने वाले लोगों को पुलिस या अन्य अधिकारियों द्वारा प्रताडित किए जाने से डरने की जरुरत नहीं है. पीठ ने सडक परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा लाए गए दिशानिर्देशों को भी शामिल किया. ये दिशानिर्देश पूर्व न्यायाधीश के एस राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति की सिफारिशों पर आधारित थे.
समिति में सडक परिवहन मंत्रालय के पूर्व सचिव एस सुंदर और पूर्व प्रमुख वैज्ञानिक निशी मित्तल भी शामिल थीं. इस समिति ने जो सिफारिशें की थीं उसमें राज्य सडक सुरक्षा परिषदें गठित करने, अंधियारे स्थानों की पहचान का प्रोटोकॉल विकसित करने, उन्हें हटाने और उठाए जाने वाले कदमों के प्रभाव की निगरानी आदि शामिल थे. शीर्ष अदालत द्वारा नियुक्त की गई समिति ने शराब पीकर या तेज गति में वाहन चलाने, लाल बत्ती पार करने और हेल्मेट या सीट बेल्ट के नियम तोडने के खिलाफ कडी कार्रवाई का भी सुझाव दिया था.
मंत्रालय ने एक बयान में कहा था कि किसी वैधानिक समर्थन के बिना इन दिशानिर्देशों को लागू कर पाना मुश्किल साबित हो रहा था। सरकार ने शीर्ष अदालत से संपर्क किया ताकि जब तक केंद्र सरकार इस संदर्भ में कानून लागू नहीं कर देती, तब तक सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए बाध्यकारी आदेश के जरिए इन दिशानिर्देशों को जारी करने के मुद्दे पर गौर किया जाए. शीर्ष अदालत ने सडक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा उठाए जा रहे कदमों की निगरानी के लिए वर्ष 2014 में तीन सदस्यीय समिति नियुक्त की थी.