आम आदमी से मुख्यमंत्री तक का सफर, ”आप” के अहम वादे और हकीकत
आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने राजनीति का एक नया व्याकरण रचा है. परंपरागत राजनीति की लीक से हट कर उन्होंने आम आदमी की जिंदगी से जुड़े मुद्दों को राजनीति के केंद्र में लाने का काम किया है. दिल्ली विधानसभा चुनाव में केजरीवाल की जीत एक ऐतिहासिक घटना इसलिए है कि जनता पहली […]
आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने राजनीति का एक नया व्याकरण रचा है. परंपरागत राजनीति की लीक से हट कर उन्होंने आम आदमी की जिंदगी से जुड़े मुद्दों को राजनीति के केंद्र में लाने का काम किया है. दिल्ली विधानसभा चुनाव में केजरीवाल की जीत एक ऐतिहासिक घटना इसलिए है कि जनता पहली बार राजनीति में खुद की हिस्सेदारी महसूस कर रही है. केजरीवाल आज दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुरसी संभालनेवाले हैं. अब उनके सामने असल चुनौती जनता की बढ़ी उम्मीदों पर खरा उतरने की होगी. केजरीवाल के अब तक के सफर पर एक नजर.
नयी दिल्ली : ज्यादातार मां-बाप की इच्छा होती है कि उनके बच्चे उनके नक्शे-कदम पर चलें. हरियाणा के हिसार में जन्मे अरविंद केजरीवाल के पिता गोविंद केजरीवाल ने भी अपने बेटे के लिए कुछ ऐसा ही सपना देखा था. उनके पिता इलेक्ट्रिकल इंजीनियर और मां गीता देवी आम भारतीय महिलाओं की तरह एक गृहिणी हैं. पिता के सपने को पूरा करने के लिए अरविंद ने इंजीनियरिंग की तैयारी की और आइआइटी खड़गपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्र बने. डिग्री पाने के बाद मौके भरपूर थे.
एक इंजीनियर के रूप में टाटा स्टील में नौकरी मिल गयी और 1989-1992 तक वहां कार्यरत रहे. उन्होंने प्रशासनिक सेवा की तैयारी की और सिविल सेवा की मुख्य परीक्षा देने के बाद साक्षात्कार के लिए बुलावे के प्रति आश्वस्त होते हुए टाटा की नौकरी छोड़ दी और छह महीने तक देश में घूमते रहे.
इस दौरान वे कोलकाता गये और मदर टेरेसा से मुलाकात की. इससे उनकी जिंदगी की दिशा बदल गयी. उन्होंने इच्छा जतायी कि वे उनके साथ काम करना चाहते हैं. केजरीवाल कहते हैं, मदर टेरेसा ने हमें कालीघाट में काम करने को कहा. इसी दौरान वहां कई लोगों को फुटपाथ पर गरीबी और बीमारी से जूझते हुए देखा. ऐसे लोगों को हम लोग कालीघाट आश्रम लाते थे और उनकी सेवा करते थे. उन्होंने लगभग दो माह तक वहां सेवा की. वे इसी दौरान रामकृष्ण मिशन और नेहरू युवा केंद्र से भी जुड़े. साक्षात्कार का बुलावा आया और फिर केजरीवाल हरियाणा लौट गये.
वर्ष 1995 में इन्होंने सिविल सेवा परीक्षा पास करके भारतीय राजस्व विभाग में नौकरी शुरू कर की. लेकिन इस दौरान पारिवारिक जिम्मेवारी बढ़ रही थी और केजरीवाल ने नागपुर स्थित प्रशासनिक अकादमी में भारतीय राजस्व सेवा में प्रशिक्षण प्राप्त कर रही अपनी बैचमेट सुनीता के साथ हुई दोस्ती को संबंध में बदलने का निर्णय लिया था. प्रशिक्षण समाप्त होने के बाद सजातीय सुनीता के साथ परिवारवालों की मरजी से शादी कर ली. दिल्ली की रहनेवाली सुनीता बातचीत में यह स्वीकार करती हैं कि उनकी इच्छा थी कि उन्हें एक ईमानदार पति मिले, जिसके पास देश को आगे ले जाने का सपना हो. प्रशिक्षण पूरा करने के बाद दोनों दिल्ली आ गये और यहीं बस गये.
आइआरएस के रूप में प्रशिक्षण प्राप्त करते वक्त ही काम के प्रति समर्पित केजरीवाल प्रशासनिक अमले में फैले भ्रष्टाचार को अपने स्तर पर दूर करने का प्रयास करते रहे. लेकिन उन्हें लगता था कि व्यवस्था में रह कर व्यवस्था की कमियों को दूर करने की बजाय जमीनी स्तर पर काम करके इसमें सुधार किया जा सकता है. मन समाजसेवा की तरफ लगा हुआ था. इसी सोच को साकार करने के लिए केजरीवाल ने अपने चंद साथियों के साथ मिल कर वर्ष 2000 में दिल्ली के सीमापुरी और सुंदर नगरी इलाके में परिवर्तन नामक संस्था की शुरुआत की.
खुद केजरीवाल कहते हैं कि मात्र 50 हजार रुपये से इस संस्था की शुरुआत की गयी थी. इन्हीं पैसों से सारी दिल्ली में कपड़े के बैनर लगाये गये और परचे बांटे गये. उन बैनरों पर लिखा था- आयकर विभाग में घूस मत दो. अगर आपकी कोई समस्या है तो परिवर्तन से संपर्क करो. हमलोग आपका काम बिना पैसे लिए करवायेंगे. हमलोगों ने अपने फोन नंबर और इमेल दिये. केजरीवाल कहते हैं, पहले 18 महीनों में हमने 800 शिकायतें सुलझायीं.
वर्ष 2002 से केजरीवाल के साथ वोलंटियर के रूप में काम कर रहे सीमापुरी के स्थानीय निवासी आबिद खान कहते हैं कि उस समय दिल्ली में बिजली की व्यवस्था का काम डेसू के पास था. केजरीवाल की देखरेख में हमारे साथी स्थानीय डेसू कार्यालय के सामने टेबल लगा कर लोगों को परचे बांटते. उनसे आग्रह करते कि यदि उन्हें बिजली ग्राहक के तौर पर कोई शिकायत है, बिल को लेकर कोई परेशानी है, यदि उनसे रिश्वत की मांग की जा रही हो, तो वे अपनी शिकायत हमारे पास दर्ज करायें. हम आपकी शिकायतों को दफ्तर में पहुंचायेंगे. अधिकारियों को आपका काम करने के लिए दबाव बनायेंगे. इसके लिए न तो आपको पैसे खर्च करने की जरूरत है और न ही रिश्वत देने की.
धीरे-धीरे लोग हमारे पास आना शुरू हुए. हम उनकी शिकायतों को दफ्तर तक पहुंचाते. अधिकारियों पर शीघ्र कार्रवाई करने के लिए दबाव बनाते. इस तरह से बड़ी संख्या में लोगों को इसका लाभ हुआ, लोग हमारे साथ जुड़ने लगे. अब परिवर्तन को एनजीओ के रूप में पंजीकृत कराया गया. अरविंद आयकर अधिकारी के रूप में कार्यरत थे, लेकिन बाहर का काम उन्हीं के निर्देश पर चल रहा था.
वर्ष 2001 मे जब दिल्ली में आरटीआइ एक्ट पारित किया गया, अरविंद के निर्देश पर उनके साथियों ने इसे परिवर्तन का हथियार बना लिया. इस कानून का प्रयोग करते हुए अरविंद अपने साथियों की मदद से जनता से जुड़ी सूचनाएं निकलवाते. इसमें किसी तरह की कोई गड़बड़ी पाये जाने पर अजिर्यां देते और लोगों का काम करवाते. पुनर्वास कॉलोनियों में जनवितरण की समस्या, निजी स्कूलों में गरीब बच्चों का दाखिला आदि कई काम अपनी संस्था परिवर्तन के जरिये केजरीवाल ने किये. अरविंद की देखरेख में ये सारे कार्य किये जा रहे थे, लेकिन इसके साथ ही वे स्वराज के प्रति जनता को जागरूक करने में लगे रहे. वे जगह-जगह जाते और लोगों से स्वराज की संकल्पना पर चर्चा करते व मोहल्ला सभा के गठन का प्रयास करते. उनके ही प्रयासों से त्रिलोकपुरी, सुंदर नगरी, आरके पुरम आदि जगहों पर लोगों के बीच मोहल्ला सभा का गठन किया गया.
वर्ष 2001 के दौरान ही केजरीवाल के साथ मनीष सिसोदिया जुड़े. अन्ना के जनलोकपाल आंदोलन के दौरान केजरीवाल द्वारा लिखी गयी पुस्तक जारी की गयी. 200 पन्ने की इस पुस्तक से अरविंद के स्वराज की संकल्पना को बखूबी समझा जा सकता है. इस पुस्तक में न सिर्फ व्यवस्था परिवर्तन और संपूर्ण क्रांति के आदर्श को विस्तार से रेखांकित किया गया है, बल्कि देश के अलग-अलग भागों में घूम कर केजरीवाल ने बेरोजगारी, महंगाई जैसी आम जनता की समस्याओं को रेखांकित करने के साथ ही, ग्राम पंचायतों को अधिकार दिये जाने और ग्राम सभा को मजबूत किये जाने पर भी काफी विस्तार से चरचा की है.
2006 में केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई लड़ने का संकल्प लेकर सरकारी नौकरी छोड़ दी. जनता की समस्याओं पर विस्तार से शोध करने के लिए अरविंद ने पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन बनाया. रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से मिले पैसों से समाजसेवा के अपने काम को बढ़ाया. आरटीआइ को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने के लिए और सूचना आयुक्तों के कामकाज को जनता के सामने लाने के लिए पीसीआरआफ द्वारा वर्ष 2009 से आरटीआइ अवार्ड शुरू किया गया.
इस अवार्ड के जरिये देशभर के सूचना आयुक्तों को कामकाज को जनता के सामने लाया जाता. अच्छा काम करनेवाले सूचना आयुक्तों को पुरस्कृत किया जाता और सही तरीके से काम न करनेवाले अधिकारियों की सूची जारी कर इस दिशा में जनता का ध्यान खींचा जाता. सूचना के अधिकार की लड़ाई को आगे बढ़ाते हुए केजरीवाल ने देशभर के सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ मिल कर लोकपाल की रूपरेखा तैयार की. अन्ना हजारे, किरण बेदी, शांति भूषण, प्रशांत भूषण, मनीष सिसोदिया, जस्टिस संतोष हेगड़े, देवेद्र शर्मा आदि नामचीन लोगों के साथ मिल कर इंडिया अगेंस्ट करप्शन का गठन किया गया. आइएसी के बैनर तले जब अन्ना हजारे के नेतृत्व में अप्रैल, 2011 में जंतर-मंतर पर आंदोलन शुरू हुआ.
भ्रष्टाचार के खिलाफ इस लड़ाई में न तो सरकार झुकने के लिए तैयार थी, और न ही आंदोलनकारी जनलोकपाल से पीछे हटने को तैयार थे. देश भर में जनलोकपाल के पक्ष में आवाज बुलंद की जा रही थी. यूपीए सरकार ने ड्राफ्ट कमिटी बना कर आंदोलन की धार को कमजोर करने का प्रयास किया. इसके खिलाफ अन्ना और उनके साथियों ने रामलीला मैदान में अनशन किया और वहां से तब उठे जब संसद के दोनों सदनों में एक राय से लोक पाल पारित किये जाने की बात कही गयी.
बावजूद इसके जब सरकार ने इस दिशा में सकारात्मक नहीं बढाया, तो केजरीवाल, सिसोदिया, और गोपाल राय ने अन्ना के नेतृत्व में जंतर-मंतर पर एक बार फिर अनशन किया. राजनीतिक दलों द्वारा व्यवस्था परिवर्तन की यह लड़ाई व्यवस्था से जुड़ कर, चुनावी राजनीति में भागीदार बन कर लड़ने की चुनौती देने के बाद केजरीवाल के पास और कोई रास्ता नहीं बचा था. हालांकि इस सवाल पर अन्ना आंदोलन दो धड़ो में बंट गया.
अन्ना के नेतृत्व में कुछ साथी इस बात पर अडिग थे कि जनआंदोलन के जरिए ही देश में व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई लड़ी जा सकती है. इस सवाल पर उपजे मतभेद के बाद केजरीवाल और उनके साथियों ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में उतरने का फैसला लिया. आम आदमी पार्टी का गठन किया गया. राजनीति के उबड़-खाबड़ रास्ते पर बिना अंजाम का परवाह किये चल पड़े केजरीवाल को जनता पर भरोसा था. उस जनता पर जो कि भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी, भाई-भतीजावाद से ऊब चुकी थी और इसके खात्मे के लिए एक नये विकल्प के तलाश में थी.
व्यवस्था परिवर्तन और भ्रष्टाचार के मसले पर मात्र एक साल पहले बनी पार्टी को दिल्ली की जनता ने 70 सदस्यीय विधानसभा में 28 सीटें देकर परंपरागत राजनीतिक दलों की नींद उड़ा दी है. इस बदलाव के वाहक बने हैं 45 वर्षीय अरविंद केजरीवाल. भले ही आप को 36 सीटें नहीं मिली हैं, लेकिन दिल्ली की जनता ने केजरीवाल को मुख्यमंत्री के रूप में लाने का मन बनाया. जनता के इसी मनोभाव को समझते हुए, जनदबाव में कांग्रेस ने केजरीवाल को समर्थन देने का फैसला लिया. आज केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले रहे हैं, लेकिन उनके सामने जनता के समक्ष किये गये वादे को पूरा करने की चुनौती है. इस चुनौती को वे किस हद तक निभा पाते है, यह तो भविष्य के गर्त में हैं.
* आप के मंत्री
मनीष सिसोदिया
पेशे से पत्रकार मनीष सिसोदिया ने पटपड़गंज विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक अनिल कुमार और भाजपा के युवा व छात्र नेता नकुल भारद्वाज को हराया. जी न्यूज और ऑल इंडिया रेडियो के साथ लंबे समय तक जुड़े रहे सिसोदिया बाद में पत्रकारिता छोड़ कर सूचना के अधिकार आंदोलन से जुड़ गये. जन लोकपाल आंदोलन की कोर टीम के सदस्य सिसोदिया ने भ्रष्ट मंत्रियों के खिलाफ जांच के लिए एसआइटी गठित किये जाने की मांग को लेकर जंतर-मंतर पर 10 दिनों तक अनशन भी किया. उन्हें लोकपाल आंदोलन के दौरान अन्ना हजारे के साथ जेल भी भेजा गया. वे पार्टी की संसदीय मामलों की कमिटी और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के भी सदस्य हैं.
सोमनाथ भारती
सोमनाथ भारती ने मालवीय नगर से कांग्रेस के कद्दावार नेता व शीला सरकार में मंत्री किरण वालिया और एमसीडी की पूर्व मेयर व भाजपा उम्मीदवार आरती मेहरा को हराया. 39 वर्षीय सोमनाथ ने आइआइटी, दिल्ली से एमएससी की उपाधि ली और उसके बाद कानून की पढ़ाई की. भारती दिल्ली हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस भी करते हैं. 16 दिसंबर गैंग रेप के बाद उभरे जनाक्रोश के दौरान पुलिस के शिकंजे में आये निदरेष युवाओं के लिए उन्होंने कानूनी लड़ाई लड़ी और सफल हुए. उन्होंने जन लोकपाल आंदोलन के दौरान काफी सक्रियता दिखायी. सोमनाथ बिहार के नवादा जिले के हिसुआ के निवासी हैं.
सत्येंद्र कुमार जैन
शकूर बस्ती से भाजपा विधायक श्याम लाल गर्ग और कांग्रेस के एससी वत्स को हरानेवाले सत्येंद्र कुमार जैन पेशे से आर्किटेक्ट हैं. सीपीडब्ल्यूडी में नौकरी करनेवाले सत्येंद्र ने विभाग में बढ़ते भ्रष्टाचार के कारण नौकरी छोड़ दी. उन्होंने सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर भी पहचान बनायी और जन लोकपाल सत्याग्रह में शामिल हुए. इन्होंने चित्रकूट में दृष्टिहीन लड़कियों के लिए दृष्टि नाम से सामाजिक संगठन के लिए भवनों का निर्माण कराया है. इतना ही नहीं, वे दिल्ली में मानसिक तौर पर अक्षम बच्चों के लिए कार्यरत स्पर्श नाम के एनजीओ से भी जुड़े हैं और गरीब लड़कियों की शादी कराने में भी सहयोग करते हैं.
राखी बिड़ला
26 वर्षीय राखी बिड़ला ने मंगोलपुरी से 15 वर्षो से शीला सरकार में मंत्री रहे कांग्रेस के कद्दावर नेता राजकुमार चौहान को हराया. मास कम्युनिकेशन में एमए की डिग्री प्राप्त राखी पेशे से पत्रकार हैं. दलितों के कल्याण जैसे सामाजिक कार्य करने वाली राखी के पिता काफी समय तक कांग्रेस से जुड़े रहे, लेकिन बाद में पार्टी से मोहभंग कर जन लोकपाल आंदोलन से जुड़ गये. राखी भी तभी से निजी न्यूज चैनल की नौकरी छोड़ आंदोलन से जुड़ गयीं और बाद में पार्टी गठन के समय से ही इसमें सक्रिय सदस्य की भूमिका निभा रही हैं. राखी बिड़ला की मां शीला राजकीय सर्वोदय कन्या विद्यालय में बतौर सफाईकर्मी कार्यरत हैं.
सौरभ भारद्वाज
सौरभ भारद्वाज ने ग्रेटर कैलाश से भाजपा के कद्दावर नेता विजय मल्होत्रा के पुत्र अजय मल्होत्रा और एमसीडी के सेंट्रल क्षेत्र के चेयरमैन व कांग्रेसी उम्मीदवार वीरेंद्र कसाना को हराया. एक निजी कंपनी में बतौर इंजीनियर काम करनेवाले सौरभ के जीवन में एक गरीब बच्ची के साथ हुए बलात्कार की घटना में बड़ा बदलाव ला दिया. यह अहसास होने पर कि ऐसे मामलों में इंसाफ दिलाने के लिए कानून की पूरी जानकारी जरूरी है, उन्होंने कानून की पढ़ाई भी की. जरूरतमंद गरीबों को हर मुमकिन कानूनी मदद मुहैया करानेवाले सौरभ नेत्रहीन, गरीब छात्रों, बाढ़ पीड़ितों, बुजुर्गों की मदद भी करते हैं.
गिरीश सोनी
गिरीश सोनी ने कांग्रेस के विधायक मालाराम गंगवाल और भाजपा के कैलाश सांकला को हराया. चमड़े का व्यवसाय करनेवाले सोनी ने 12वीं पास करने के बाद आइटीआइ कोर्स किया है. उनके नाम पर एक जनता फ्लैट, 2 कारें व एक स्कूटर है. 1980 से भारत की जनवादी नौजवान सभा के साथ काम किया और मादीपुर के महासचिव के पद पर रहते हुए शिक्षा एवं रोजगार के लिए संघर्षरत आम आदमी की आवाज बने. गिरीश सोनी की समाज में साफ छवि है और इलाके की समस्याओं के लिए लोगों के साथ मिल कर लड़ते रहे हैं. बिजली-पानी आंदोलन के दौरान उन्होंने घर-घर जाकर लोगों को आंदोलन से जुड़ने के लिए प्रेरित किया.
– आप की चुनौतियां
आम आदमी पार्टी ने अपने घोषणापत्र में कई वादे किये हैं. इनमें बिजली की दरों को 50 फीसदी कम करना, हरेक परिवार को रोजाना 700 लीटर पानी मुफ्त में देना, अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करना, विकास कार्यों को संचालित करने के लिए मोहल्ला सभाओं का गठन और जनलोकपाल कानून लागू करना अहम है. सबकी नजरें इस बात पर हैं कि क्या आप की सरकार इन वादों को पूरा कर पायेगी? ऐसा नहीं है कि केजरीवाल इन मुद्दों पर तुरंत कोई कदम नहीं उठा सकते हैं. लोकसभा चुनाव को देखते हुए वे सब्सिडी के सहारे कीमतों को कम कर सकते हैं, लेकिन दिल्ली के अधिकारियों का कहना है कि वित्तीय लिहाज से यह सही नहीं होगा. दिल्ली की आय का स्त्रोत टैक्स है और अन्य जरूरतों के लिए उसे केंद्र पर निर्भर रहना होता है.
– आप के अहम वादे और जमीनी हकीकत
* सस्ती बिजली
आप ने दिल्ली के लोगों से वादा किया है कि सरकार बनने के चार महीने के भीतर बिजली के दाम 50 फीसदी कम हो जायेंगे. मौजूदा समय में 200 यूनिट तक की बिजली के लिए 3 रुपये 90 पैसे देने पड़ते हैं और इससे अधिक के लिए 6.80 रुपये.
– हकीकत : दिल्ली को रोजाना 5600 मेगावॉट बिजली की आवश्यकता है और आपूर्ति होती है 5200 मेगावॉट. खास बात है कि इसमें ज्यादातर बिजली निजी कंपनियों और दूसरे राज्यों से खरीदी जाती है. आप ने बिजली कंपनियों का ऑडिट कराने की बात कही है. साथ ही बिजली के मीटरों की निष्पक्ष एजेंसी से जांच कराने का वादा भी किया है. जानकारों का कहना है कि सब्सिडी के बिना बिजली के दाम कम करना संभव नहीं है.
* 700 लीटर मुफ्त पानी
आप ने वादा किया है कि हरेक परिवार को रोजाना 700 लीटर पानी मुफ्त में दिया जायेगा. पार्टी ने दिल्ली जल बोर्ड का पुनर्गठन करने और टैंकर माफिया पर रोक लगाने की बात भी कही है. मौजूदा समय में 20 हजार लीटर तक पानी के लिए 100 रुपये, 20-30 हजार लीटर के लिए 150 रुपये और उससे अधिक के लिए 200 रुपये देना होता है.
– हकीकत : दिल्ली में रोजाना 435 करोड़ लीटर पानी की आवश्यकता है, जबकि मौजूदा समय में 316 करोड़ लीटर पानी की ही आपूर्ति हो रही है. पानी के लिए दिल्ली को हरियाणा पर निर्भर रहना पड़ता है. जानकारों का कहना है कि मुफ्त पानी देने से पानी की बर्बादी बढ़ेगी.
* झुग्गीवालों को पक्का मकान
आप ने वादा किया है कि झुग्गी वालों को पक्के मकान दिये जायेंगे और अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित किया जायेगा.
– हकीकत : एक अनुमान के मुताबिक़ दिल्ली में 600 से अधिक झुग्गियां है, जिनमें लगभग 50 लाख लोग रहते हैं. सवाल है कि इतनी बड़ी आबादी के लिए मकान बनाने के लिए पैसा कहां से आयेगा. साथ ही अनधिकृत कॉलोनियों के विकास के लिए पैसा कहां से आयेगा और कौन देगा.
* दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा
कांग्रेस और भाजपा की तरह आप ने अपने चुनावी घोषणापत्र में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने का वादा किया है.
– हकीकत : दिल्ली पुलिस और डीडीए केंद्र सरकार के अधीन हैं. विभिन्न देशों के दूतावास और केंद्रीय सरकार के महत्वपूर्ण कार्यालयों और वीआइपी को देखते हुए उनकी सुरक्षा एक चुनौतीपूर्ण काम है. इस मांग को पूरा करने के लिए केंद्र की मंजूरी जरूरी है.
जनलोकपाल बिल
आम आदमी पार्टी ने सरकार बनने पर 15 दिन के अंदर दिल्ली में जनलोकपाल विधेयक पारित करके मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक और सभी सरकारी एवं सार्वजनिक कर्मचारियों को जांच के दायरे में लाने का वादा किया है.
– हकीकत : हाल ही में केंद्र सरकार ने लोकपाल कानून पारित किया है. दिल्ली में जनलोकपाल कानून को लागू करने के लिए केंद्र सरकार की मंजूरी जरूरी है. जानकारों का कहना है कि जनलोकपाल के कई प्रावधान व्यावहारिक नहीं हैं.
– आप समाजवादी है अतिवामपंथी नहीं
।। योगेंद्र यादव ।।
(आप के रणनीतिकार)
देश की राजधानी दिल्ली में अब आम आदमी पार्टी (आप) का शासन लगभग तय है. आप के उद्देश्यों में समाजवाद है, लेकिन इन लक्ष्यों को कैसे हासिल किया जायेगा इसके प्रति पार्टी अनभिज्ञ नहीं है. पार्टी के रणनीतिकार और नीति गुरु योगेंद्र यादव पार्टी के अतिवामपंथी होने के आरोपों को खारिज करते हुए कहते हैं कि अधिकतर आलोचकों को इस बात का पता नहीं है कि आप की नीतियों और वादों को तैयार करने में कितना शोध और विचार किया गया है. वे कहते हैं कि आप की बड़ी चुनौती उसका आर्थिक दर्शन नहीं, बल्कि शासकीय अनुभवनहीनता है. हमें बहुत जल्द शासन के तरीके को सीखना होगा.
आप की राजनीतिक कार्यकारिणी के सदस्य और पार्टी की नीति-निर्माण से जुड़े प्रमुख बौद्धिक ताकत यादव का कहना है कि नयी-नवेली पार्टी के आलोचक और आर्थिक सुधार के पैरोकार अर्थशास्त्री जब हमें अतिवामपंथी कहते हैं तो मुख्य मुद्दे की अनदेखी कर देते हैं. हमारा संविधान समाजवादी सिद्धांतों की बात करता है. उद्योग जगत के प्रमुख सीइओ ने आप की चुनावी सफलता की प्रशंसा की, लेकिन वे पार्टी की आर्थिक नीतियों को लेकर संशय में हैं. वे कहते हैं कि हम तय मानकों का अनुसरण नहीं करेंगे और हमारी पार्टी अपनी आर्थिक नीतियों को लेकर व्यावहारिक नहीं होगी.
योगेंद्र यादव कहते हैं, आप सरकार का प्रयास असमानता और गरीबी को कम करने का होगा और इसके लिए जो भी नीतियां अपनाने की जरूरत होगी उसे लागू किया जायेगा. वे कहते हैं कि आप के समाजवाद में आंख बंद कर राज्य को पंच, नियामक और सेवा प्रदाता के तौर पर नहीं माना गया है.
हालांकि वे स्वीकार करते हैं कि विभिन्न मसलों पर आप का नजरिया चाहे जैसा हो, लेकिन सरकार बनाने पर उसके समक्ष बड़ी चुनौतियां हैं. लोगों की उम्मीदों का बोझ, शासकीय अनुभव की कमी, सभी विधायकों का पहली बार चुना जाना और नौकरशाहों को आप की नीतियों को लागू करने के लिए राजी करना सबसे बड़ी चुनौतियां है. वे कहते हैं कि समय भी एक बड़ा मसला है. आम चुनाव को देखते हुए चुनाव आयोग की आचार संहिता फरवरी के अंत तक लागू हो जायेगी. ऐसे में हमारे पास सिर्फ दो महीने यह दिखाने के लिए होगा कि हम काम कर रहे हैं.
अन्य पार्टी की तुलना में आप की अलग तसवीर के बारे में अपने और अरविंद केजरीवाल के नजरिये पर वे कहते हैं, पार्टी कांग्रेस और भाजपा की पहचान की राजनीति को खारिज करती है. मुसलिम केवल दंगों और उर्दू, दलित केवल ऐतिहासिक तौर पर पीड़ित के संदर्भ में ही सीमित नहीं हैं. यादव कहते हैं आज आप दिल्ली की सबसे बड़ी दलित पार्टी है. लेकिन हम दलितों के समर्थन को उस तरह से नहीं देखते. हमलोग उन्हें इस तरीके से देखते हैं कि उनकी असल जरूरत है क्या? बिजली, शिक्षा, शुद्ध पेयजल. यादव कहते हैं, हमारी मजबूती हमारे कार्यकर्ताओं का त्याग और इच्छाशक्ति है. हम सभी आम आदमी की पार्टी में आम लोग हैं.