संयुक्त राष्ट्र : संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि गैर संचारी बीमारियों जैसे कार्डियोवैस्कुलर, मधुमेह और कैंसर आदि के कारण वर्ष 2012-2030 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था पर 6.2 खरब डॉलर का भार पड़ सकता है.साथ ही रिपोर्ट में, तेजी से शहरीकरण की ओर अग्रसर भारत तथा चीन जैसे देशों में ऐसी बीमारियों के प्रसार के बारे में भी चेताया गया है.
‘‘ग्लोबल रिपोर्ट ऑन अर्बन हेल्थ : इक्विटेबल, हेल्दियर सिटीज फॉर सस्टेनेबल डवलपमेंट’ को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और यूएन… ह्यूमन सेटलमेंट प्रोग्राम : यूएन … हैबिटाट ने संयुक्तरूप से जारी किया है.
इस रिपोर्ट में कहा गया है ‘‘गैर संचारी बीमारियां शहरों में न केवल मानवीय स्वास्थ्य को खतरे में डालती हैं बल्कि इनके आर्थिक उलझाव भी होते हैं.’ रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ते शहरीकरण ने स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियां पेश की हैं और शहरी लोगों की जीवन शैली तथा काम करने के तरीके में शहरों में गैर संचारी बीमारियों को बढ़ाने की क्षमता है.
इस रिपोर्ट के अनुसार, इसमें कोई हैरत नहीं है कि गैर संचारी बीमारियों की वजह से शहरीकरण वाली अर्थव्यवस्थाओं, खास कर चीन और भारत में खासा आर्थिक बोझ है.
एक अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2014 से 2050 के बीच चीन में 29.2 करोड़ और भारत में 40.4 करोड़ लोगों के शहरों में बसने की संभावना है.
रिपोर्ट में चेताया गया है कि भारत में ‘‘शहरीकरण में अवश्यंभावी वृद्धि ‘ के लिए अपर्याप्त योजना के कारण सामाजिक और आर्थिकरूप से अस्थायी स्थिति उत्पन्न हो रही है.
इसमें कहा गया है ‘‘वर्ष 2012-2030 के दौरान कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों, मधुमेह, कैंसर, श्वांस संबंधी बीमारियां तथा मानसिक समस्याओं के कारण चीन पर 27.8 खरब डाॅलर और भारत पर 6.2 खरब डालर की लागत आने का अनुमान है.’ चीन और भारत में कार्डियोवैस्कुलर बीमारी और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या अर्थव्यवस्था के लिएबड़ा खतरा हैं और इनके बाद श्वांस संबंधी बीमारियों तथा कैंसर का स्थान है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस अवधि में भारत के लिए कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों का आर्थिक बोझ करीब 2.25 खरब डॉलर है और इतना ही खर्च मधुमेह का है. मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या पर करीब 2.28 खरब डालर खर्च होने का अनुमान है.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में शहरों के उन्नयन एवं प्रबंधन में मुख्य रुकावट ‘‘राजनीतिक’ है.