नयी दिल्ली : देश में समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखने वाले उच्चतम न्यायालय के निर्णय पर पुनर्विचार के लिये केंद्र सरकार की याचिका खारिज करने हेतु एक नई याचिका शीर्ष अदालत में दायर की गयी है. यह याचिका वकील विश्वनाथ चतुर्वेदी ने दायर की है. याचिका में कहा गया है कि यह पुनर्विचार याचिका संवैधानिक मापदंडों के खिलाफ है क्योंकि सरकार खुद ही भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को निरस्त करने का अनुरोध नहीं कर सकती है.
याचिका के अनुसार पुनर्विचार याचिका अनावश्यक रुप से शीर्ष अदालत के माध्यम से संसद और सरकार के बीच अनुचित टकराव की स्थिति पैदा कर संसद, सरकार और शीर्ष अदालत के बीच स्थापित सांविधानिक संतुलन बिगाड़ना चाहती है. उन्होंने केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका खारिज करने का अनुरोध किया है. चतुर्वेदी का तर्क है कि धारा 377 की संवैधानिकता के बारे में शीर्ष अदालत के निर्णय से यदि सरकार प्रभावित हो रही है तो उसे कानून में संशोधन लाना चाहिए.
शीर्ष अदालत ने स्वेच्छा से वयस्कों के बीच एकांत में स्थापित यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने के दिल्ली उच्च न्यायालय के दो जुलाई, 2009 के निर्णय को गत वर्ष 11 दिसंबर को निरस्त कर दिया था. न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि अप्राकृतिक यौनाचार को दंडनीय अपराध बनाने वाली धारा 377 संवैधानिक है और इसमें किसी प्रकार की खामी नहीं है. न्यायालय के इस निर्णय की कुछ तबकों के लोगों ने तीखी आलोचना की थी. इसके बाद केंद्र सरकार और समलैंगिकों के अधिकारों के लिये संघर्षरत संगठन ने इस निर्णय पर पुनर्विचार के लिये याचिका शीर्ष अदालत में दायर की थी.