गुरु गोविंद सिंह जयंती पर विशेष

जसबीर सिंह जीवन का मूल तत्व प्रदान करते हुए गुरुगोविंद सिंह जी ने उद्घोषणा की : ‘मानस की जात सभै एकै पहिचानबो’ यह भी कितनी विचित्र बात है कि मनुष्य एक दूसरे से ऊंच-नीच का व्यवहार करता है, जबकि सब में उसी प्रभु की लौ प्रज्ज्वलित हो रही है. नतीजा? हम एक दूसरे की ऊर्जा, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 7, 2014 7:45 AM

जसबीर सिंह

जीवन का मूल तत्व प्रदान करते हुए गुरुगोविंद सिंह जी ने उद्घोषणा की :

‘मानस की जात सभै एकै पहिचानबो’ यह भी कितनी विचित्र बात है कि मनुष्य एक दूसरे से ऊंच-नीच का व्यवहार करता है, जबकि सब में उसी प्रभु की लौ प्रज्ज्वलित हो रही है. नतीजा? हम एक दूसरे की ऊर्जा, शक्ति एवं उसकी क्षमता का ह्रास कर रहे हैं. हमने संभवत: इसकी कल्पना भी नहीं की थी कि इससे सारा देश व समाज कितना कमजोर हो रहा है, देश की क्षमता कितनी कम हो रही है. अगर हम इसे ऊर्जा में तौलें तो देखेंगे कि कई करोड़ लाख मेगावाट के बराबर हमारी ऊर्जा बर्बाद हो रही है क्योंकि हम दूसरे मनुष्य को बराबर का दर्जा नहीं प्रदान करते. अगर इस ऊर्जा को हम समेट लें तो कल्पना करें कि देश कितना शक्तिशाली हो जायेगा.

गुरु गोविंद सिंह जी ने इस ऊर्जा को समेटने के लिए वर्ष1699 में वैशाखी वाले दिन देश के विभिन्न इलाकों में एक विशाल जनसम्मेलन बुलाया. इसमें छोटीबड़ी जाति के सभी लोग शामिल थे. उन्हें अमृतपानकरा कर उनका जातिभेद समाप्त कर दिया और सभी को सिंह की उपाधि देकर बराबरी का दर्जा प्रदान किया. इस अमृतपान से लोगों की मानसिकता बदल गयी. स्वयं को दीनहीन समझनेवाले, जातिकर्म से अभिशप्त लोगों में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ. ऊंचनीच की भावना लुप्त हो गयी. ब्राह्मण शूद्र सभी एक साथ बैठ सकते थे, खा सकते थे.

इस संबंध में जेडी कनिंघम ने अपनी भावना इस प्रकार प्रकट की है.

‘‘गुरुजी ने अमृत-पान करा कर अपने अनुयायियों को शूर-वीर में परिवर्तित कर दिया. चार वर्णो के लोग-बड़े से बड़ा और छोटे से छोटा- सभी एक समान हो गये और सभी एक ही संगत एवं पंगत में बैठ खाने लगे.’’

गुरुगोविंद सिंह जी विश्व के इतिहास में अद्वितीय एवं अदभुत बलिदानी थे. उन्होंने देश की सेवा में अपने पिता, चारों पुत्र, माताजी एवं स्वयं का बलिदान कर दिया. इसके समकक्ष कोई अन्य उदाहरण इतिहास में ढूंढ़ने से भी नहीं मिलता. उन्होंने अन्याय एवं अत्याचार से जूझने में सर्ववंश का बलिदान कर दिया और कभी भी हार नहीं मानी. सजे हुए दीवान में जब बच्चों की माता जी ने पूछा कि बच्चे कहां हैं, तो आपका जवाब था

‘‘इन पुत्रण के सीस पर वार दिये सुत चार

चार मूए तो किआ हुआ, जीवत

कई हजार’

अकाल पुरुष (ईश्वर) की वंदना करते हुए आप सिर्फ ये वरदान मांगते हैं कि शुभ कार्यो के संपादन में भी कभी भी पीछे नहीं हटूं और धर्म-युद्ध में शत्रुओं का नाश कर निश्चय ही विजय प्राप्त करूं. आप कहते हैं –

"दे शिवा वर मोहि इहै शुभ करमन ते कबहूं न टरौं

न डरो अरि सो जब जाइ लरों, निसचै कर अपनी जीत करों’’

प्रसिद्ध सूफी कवि किबरीया खां गुरुगोविंद सिंह जी के प्रति अपने उद्गार इस तरह प्रगट करते हैं –

‘‘क्या दशमेश पिता तेरी बात करूं जो तूने परोपकार किए

एक खालस खालसा पंथ सजा, जातों के भेद निकाल दिए

इस तेग के बेटे तेग पकड़, दुखियों के काट जंजाल दिए

उस मुलको-वतन की खिदमत में, कहीं बाप दिया कहीं लाल दिए’’

लेखक एसबीआइ के

महाप्रबंधक (सेवानिवृत्त) हैं.

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