नयी दिल्ली : अंगरेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस को दिये अपने बयान में मनमोहन सरकार में कानून मंत्री रहे हंसराज भारद्वाज ने चौंकाने वाले खुलासे किये हैं. भारद्वाज ने अखबार को बताया है कि कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार ने वर्ष 2007 में भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह यादव वाली सरकार को बरखास्त करना चाहती थी. भारद्वाज के मुताबिक वह इसके लिए तैयार नहीं हुए थे. भारद्वाज का खुलासा एक ऐसे वक्त में सामने आया है जब कांग्रस और उत्तराखंड के साथ अरूणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन के लिए कांग्रेस बीजेपी को दोषी ठहराने में लगी हुई है.
तैयार नहीं होने की मिली सजा- भारद्वाज
पूर्व कानून मंत्री ने यह भी खुलासा किया है कि यूपी और 2 जी स्पेक्ट्रम जैसे मुद्दों पर असमति जताने की वजह से उन्हें कांग्रेस की मुख्यधारा की राजनीति से बाहर कर दिया गया. गौरतलब हो कि भारद्वाज को यूपीए 2 के मंत्री मंडल में जगह नहीं मिली थी और इसकी जगह उन्हें कर्नाटक का राज्यपाल बना दिया गया था. हंसराज भारद्वाज के बारे में कहा जाता है कि वह कांग्रेस पार्टी के साथ-साथ गांधी नेहरू परिवार के लिए हमेशा वफादार रहे हैं. कांग्रेस द्वारा बीजेपी पर राष्ट्रपति शासन को लेकर लगाये जा रहे आरोपों के बारे में पूछने पर उनहोंने कहा कि अरूणाचल प्रदेश और उत्तराखंड में कांग्रेस की अंदरूनी फूट और विभाजन की वजह से राष्ट्रपति शासन लगा है. एक बार जब मुख्यमंत्री अल्पमत में चला जाता है तो उसे बहुमत साबित करना होता है.
कांग्रेस ने किया धारा 356 का दुरुपयोग
हंसराज भारद्वाज ने यह भी खुलासा किया कि कांग्रेस ने भी धारा 356 का दुरुपयोग किया है. उन्होंने कहा कि 23 मई 2005 को बिहार असेंबली को भंग करने का फैसला कुछ इसी तरह का था. उन्होंने कहा कि कांग्रेस यूपी सरकार को भंग करना चाहती थी. भारद्वाज के मुताबिक भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर मुलायम सिंह यादव दबाव में थे. उन्होंने कहा कि इस मौके पर मैंने सरकार को सलाह दी कि केवल भ्रष्टाचार के आरोपों पर सरकार को भंग नहीं किया जा सकता. इसलिए जब तक वे बहुमत में हैं उन्हें विधानसभा में चुनौती मिलेगी. उन्होंने स्वीकार किया कि कांग्रेस ने बात नहीं मानी जिसके चलते पार्टी में विवाद हो गया.
कुछ पक्ष में थे कांग्रेसी, कुछ विपक्ष में
हंसराज भारद्वाज ने बताया कि कांग्रेस के कुछ सदस्य पक्ष में थे कि राष्ट्रपति शासन लगाया जाए और मैं विरोध में था. उन्होंने कहा कि मैं सोनिया, शिवराज पाटिल, चिदंबरम,प्रधानमंत्री और कपिल सिब्बल की मौजूदगी में विरोध किया. मेरा विचार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मान गये. हालांकि इसका मुझे खामियाजा भुगतना पड़ा. मुझे कई कारणों से नजरअंदाज किया गया. 2 जी इनमें से एक था. जब 2 जी का फैसला हुआ तब मैंने विरोध किया. इसका लिखित सबूत है मेरे पास. हमने फाइल पर लिखा था कि मंत्री को ऐसे नहीं करने देना चाहिए. यह पारदर्शी होना चाहिए. उस समय के मंत्री ने जोर दिया कि वह इस तरह से काम नहीं करेंगे. मामला विवाद में आया और राजस्व का भी नुकसान हुआ.