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सुषमा ने आतंकी मसूद अजहर पर चीन को सुनायी खरी-खरी

एजेंसी / इंटरनेट डेस्क नयी दिल्ली/मॉस्को: विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने चीन के विदेश मंत्री वांगयीके समक्षमसूद अजहरका मुद्दा उठायाहैऔर चीनकेसमक्ष इस आतंकी पर उसके स्टैंड का कड़ा प्रतिरोध जताया है.सुषमा ने रूस-भारत-चीन के विदेश मंत्रियों की त्रिपक्षीय बैठक से इतर वांग के साथ हुई द्विपक्षीय बैठक में यह मुद्दा उठाया. संयुक्त राष्ट्र संघ से जैश-ए-मुहम्मद […]

एजेंसी / इंटरनेट डेस्क


नयी दिल्ली/मॉस्को: विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने चीन के विदेश मंत्री वांगयीके समक्षमसूद अजहरका मुद्दा उठायाहैऔर चीनकेसमक्ष इस आतंकी पर उसके स्टैंड का कड़ा प्रतिरोध जताया है.सुषमा ने रूस-भारत-चीन के विदेश मंत्रियों की त्रिपक्षीय बैठक से इतर वांग के साथ हुई द्विपक्षीय बैठक में यह मुद्दा उठाया. संयुक्त राष्ट्र संघ से जैश-ए-मुहम्मद केप्रमुख मसूद अजहर पर भारत प्रतिबंध लगाना चाहता है,जिसपर चीन ने हाल के दिनों मेंकमसे कम दो बार वीटो किया है. संयुक्त राष्ट्र संघ में चीन को यह हैसियत सुरक्षा परिषद के उसकेस्थायीसदस्य होने के कारण हासिल है. मालूम हो कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज इन दिनों रूस के दौरे पर हैं और आज वहां वे रूस, चीन व भारत के विदेश मंत्रियों की बैठक में शामिल हो रही हैं. उधर, रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर पांच दिवसीय दौरे पर चीन गये हैं और आज वहां उनकी चीनी रक्षा मंत्री व रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों के साथ बैठक संभावित है.


इस माह की शुरुआत में चीन ने संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंध समिति को अजहर को आतंकी घोषित करने से यह कहते हुए रोक दिया था कि यह मामला सुरक्षा परिषद की ‘‘अनिवार्यताओं को पूरा नहीं करता’.

यह पहली बार नहीं है, जब चीन ने पाकिस्तान आधारित आतंकी समूहों और नेताओं को संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित करवाने के भारत के प्रयास को अवरुद्ध किया है.

संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2001 में जैश-ए-मुहम्मद को प्रतिबंधित कर दिया था लेकिन वर्ष 2008 के मुंबई हमलों के बाद अजहर पर प्रतिबंध लगवाने के भारत के प्रयास फलीभूत नहीं हो सके क्योंकि चीन ने स्पष्ट तौर पर पाकिस्तान के कहने पर ऐसा होने नहीं दिया था. चीन के पास वीटो अधिकार है.

पिछले साल जुलाई में, चीन ने भारत के उस कदम को भी अवरुद्ध कर दिया था, जिसके तहत उसने मुंबई आतंकी हमले के मास्टरमाइंड जकीउर रहमान लखवी की रिहाई के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र को कार्रवाई करने के लिए कहा था. तब चीन ने कहा था कि उसका यह रुख ‘‘तथ्यों पर आधारित था और वास्तविकता एवं निष्पक्षता के अनुरूप था.’ इसके साथ ही बीजिंग ने एक बार फिर यह दावा किया था कि वह नयी दिल्ली के संपर्क में है.


मोदी सरकार को क्या हासिल हुआ?


नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार के साथ आतंकवाद पर अपने तीखे तेवर के कारण प्रबल बहुमत के साथ सत्ता में आये. ऐसे में अपने कूटनीतिक प्रयासों से वैश्विक आतंकवाद पर रोक लगाना और भारत को इसकाआसान निशाना बनाने से बचाना उनकी प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर है. चीन के रुख से भारतदुखी औरनाराज है. पाकिस्तान को अपना भाई बताने वाले चीन को लगता है कि उसके यहां के आतंकी को वह बचा कर भारत को काबू में रख सकता है. पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी परमाणु सुरक्षा सम्मेलन में शामिल हुए. वहां भी उन्होंने आतंकवाद के प्रति दुनिया को आगाह किया. विश्व नेताओं के सामने उन्होंने कहा कि परमाुण आतंकवाद के संबंध में उच्च स्तरीय निगरानी बनाये रखने की जरूरत है. उन्होंने पाकिस्तान का नाम लिये बिना यह भी कहा था कि परमाणु तस्करों के साथ काम करनेवालेसरकारी तत्वों से सबसे बड़ा खतरा है. मोदी आतंकवाद पर दुनिया के कुछ देशों के स्टैंड पर भी सवाल उठा चुके हैं और गुड टेरेरिज्म, बेड टेरेरिज्म को खारिज कर चुके हैं. भारत के प्रयासों की बड़ी कामयाबी यह है कि पिछले दिनों अमेरिका ने पाकिस्तान से अपने यहां के आतंकी संगठनों पर रोक लगाने को कहा.

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सुषमा ने आतंकी मसूद अजहर पर चीन को सुनायी खरी-खरी 2


14 देशों ने किया था भारत का समर्थन

हाल ही में जब संयुक्त राष्ट्र् में मसूद अजहर को बैन करने पर वोटिंग हुई थी, तो उसमें सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी व 10 अस्थायी सदस्यों में चीन को छोड़ सभी ने भारत के प्रस्ताव का मजबूती से समर्थन किया था. यानी भारत के प्रस्ताव के पक्ष में 14 वोट पड़े. इसमें अमेरिका, रूस, ब्रिटेन व फ्रांस जैसे अन्य स्थायी सदस्यदेश शामिल हैं. स्थायी सदस्य को वीटो का हक होता है, इसलिए चीन ने भारत के प्रस्ताव के खिलाफ वोट कर उसे गिरा दिया. इसके बाद संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने चीन के स्टैंड का कड़ा विरोध जताया था और तथ्यों व तर्कों की झड़ी लगा दी थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बारंबारसंयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में सुधार की भी मांगवैश्विक मंचों से उठाते रहे हैं.


विदेश सचिव ने क्या कहा था?


विदेश सचिव एस जयशंकर ने पिछले सप्ताह नयी दिल्ली में कहा था कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा अजहर को आतंकी घोषित करवाने की भारत की कोशिश को बीजिंग द्वारा बाधित किए जाने का मुद्दा भारत ने चीन के साथ ‘‘काफी उच्च स्तर’ तक उठाया है लेकिन यह मुद्दा द्विपक्षीय संबंधों के अन्य क्षेत्रों पर ‘‘हावी’ नहीं होगा.

चीन ने अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा कि वह ऐसे मुद्दों पर तथ्यों एवं नियमों के आधार पर ‘‘निष्पक्ष और न्यायपूर्ण तरीके’ से काम करता है.

दो जनवरी को पठानकोट स्थित एयरबेस पर हुए हमले के बाद भारत ने फरवरी में संयुक्त राष्ट्र को पत्र लिखकर अजहर को तत्काल ही संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध समिति के तहत सूचीबद्ध करने की अपील की थी.

भारत के इस अनुरोध के तकनीकी पक्षों और उपलब्ध करवाए गए साक्ष्यों पर गौर करने के लिए आतंकवाद रोधी कार्यकारी निदेशालय ने इसपर गौर किया था.

तब अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस की मदद से तकनीकी दल ने इसे सभी सदस्यों को भेज दिया था. सबसे कहा गया था कि यदि इस पर कोई आपत्ति नहीं होती है तो समयसीमा खत्म होने के बाद उसे आतंकी का दर्जा दिए जाने की घोषणा कर दी जाएगी. लेकिन समय सीमा पूरी होने के कुछ ही घंटे पहले चीन ने संयुक्त राष्ट्र की समिति से ऐसा किए जाने पर रोक लगाने का अनुरोध कर दिया.

भारत कर चुका है जवाबदेही की मांग


इस सप्ताह की शुरुआत में, भारत ने ‘गुप्त वीटो’ के इस्तेमाल की आलोचना करते हुए जवाबदेही की मांग की थी और कहा था कि वैश्विक संस्था के आम सदस्यों को यह कभी नहीं बताया जाता कि आतंकियों पर प्रतिबंध लगाने के उनके अनुरोधों को न माने जाने की वजह क्या है? संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने सुरक्षा परिषद को ‘आतंकी कृत्यों से अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा पर मंडराने वाले खतरों’ के मुद्दे पर एक खुली बहस में कहा था, ‘‘अलकायदा, तालिबान और आइएसआइएस से संबंधित प्रतिबंध समितियों की प्रक्रियाओं को लेकर सर्वसम्मति और गोपनीयता की समीक्षा की जरूरत है. सर्वसम्मति और गोपनीयता की प्रक्रियाओं का नतीजा जवाबदेही की कमी केरूप में सामने आता है.’ सुषमा ने वांग के साथ आपसी हितों के कई मुद्दों पर चर्चा की.

अपने संबोधन की शुरुआत में सुषमा ने कहा कि पिछले एक साल में संबंधों में काफी सुधार आया है. उन्होंने दोनों पक्षों के बीच वार्ताओं को बढाने के लिए जल्दी-जल्दी बैठकों की वकालत की.

उन्होंने कहा, ‘‘हम एक लंबे समय के बाद मिल रहे हैं और मुझे लगता है कि हमें थोड़ा जल्दी-जल्दी मिलना चाहिए क्योंकि दुनिया में चीजें तेजी से आगे बढ़ रही हैं और यदि हम जल्दी-जल्दी मिलते हैं. तो हम उनपर विचार कर पाएंगे.’


चीन के विदेश मंत्री ने क्या कहा?


चीनी विदेश मंत्री ने कहा कि दोनों देशों को संबंधों के विस्तार पर ध्यान केंद्रित रखना चाहिए और ‘हमारी रणनीतियों’ के अनुरूप रहना चाहिए ताकि एशिया और दुनिया के विकास में अहम योगदान दिया जा सके.

उन्होंने कहा, ‘‘चीन और भारत दोबड़े देश हैं और दो बड़े पड़ोसी हैं. हमारे लिए यह अहम है कि हम बेहद करीबी सहयोग बनाकर रखें. हम दो विकासशील देश हैं और उभरते हुए बाजार हैं. हम दोनों ही आर्थिक विकास को बढावा देने और राष्ट्रीय कायाकल्प की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं.’ उन्होंने कहा, ‘‘हम रणनीतिक साझेदार हैं और चूंकि विश्व का आर्थिक एवं राजनीतिक केंद्र एशिया-प्रशांत की ओर स्थानांतरित हो रहा है, ऐसे में दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है कि वे हाथ मिला लें क्योंकि हमारे सहयोग के क्षेत्र और दुनिया के लिए व्यापक एवं सकारात्मक प्रभाव होंगे.’ वांग ने कहा, ‘‘इसलिए हमें अपने संबंध को विकसित करने पर, अपनी रणनीतियों को अनुरूप बनाने पर और अपनी साझेदारी को बढाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ताकि हम एशिया और विश्व के विकास में संयुक्त रूप से योगदान दे सकें.’ सुषमा और वांग रूस, भारत और चीन के विदेश मंत्रियों की बैठक के लिए यहां आए हैं.

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