नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सूखे को लेकर मोदी सरकार की खिंचाई की. कोर्ट ने केंद्र का यह दावा खारिज कर दिया जिसमें उसने कहा था कि अपने इलाकों में सूखे की हालत से निपटना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है. केंद्र सरकार की भूमिका इतनी है कि वह किसी भी समस्या से पार पाने के लिए राज्य सरकार को पर्याप्त फंड देने तक सीमित है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को उसकी भूमिका बताते हुए कहा कि सूखे की स्थिति का अनुमान लगाने से लेकर सूखे से निपटने के प्रयासों को व्यवस्थित करना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है.
केंद्र सरकार को मंगलवार को उस समय सूखे जैसे हालात से निपटने के संदर्भ में कडे सवालों का सामना करना पडा जब सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि क्या राज्यों को इसके लिए आगाह करना उसकी जिम्मेदारी नहीं है कि ऐसी परिस्थिति निकट भविष्य में बन सकती है. न्यायालय ने हलफनामा दायर नहीं करने को लेकर गुजरात सरकार की भी खिंचाई की और कहा कि ‘आप गुजरात हैं तो इसका यह मतलब नहीं कि जो चाहें वो कर सकते हैं. ‘ उसने कहा, ‘‘यह केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इन :सूखा प्रभावित: राज्यों को सूचित और आगाह करे कि कम बारिश होगी.’
न्यायमूर्ति एमबी लोकुड और न्यायमूर्ति एन वी रमण की पीठ ने कहा कि अगर आपको बताया जाए कि राज्य के किसी इलाके में 96 फीसदी फसल दिखी है, लेकिन आपके पास कम बारिश होने की सूचना है तो उनको सिर्फ यह नहीं कहिए कि सबकुछ ठीक है. यह भी सोचिए कि संभावित सूखे के बारे में बताना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है. पीठ ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब अतिरिक्त सॉलीशीटर जनरल पीए नरसिम्हा ने कहा कि 10 राज्यों के 256 जिलों को सूखाग्रस्त घोषित किया गया है.
उन्होंने यह भी कहा कि किसी इलाके को सूखाग्रस्त घोषित करने का मतलब यह नहीं है कि इससे उस इलाके की संपूर्ण आबादी प्रभावित है क्योंकि सभी किसान नहीं होते अथवा सभी लोग कृषि से जुडे नहीं है. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि केंद्र को आकलन की बजाय सूखे के हालात का पता लगाने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करना चाहिए. उसने केंद्र को निर्देश दिया कि वह इसकी जानकारी दे कि सूखा प्रभावित इलाकों में कितने घरों को मनरेगा के तहत 150 दिनों का रोजगार मिला है.