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उत्तराखंड : हाइकोर्ट ने राष्ट्रपति शासन हटाया, फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जायेगा केंद्र

देहरादून/नैनीताल/ नयी दिल्ली : उत्तराखंड में 27 मार्च से लगे राष्ट्रपति शासन को उत्तराखंड हाइकोर्ट ने हटा दिया है. पूर्व सीएम हरीश रावत ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती दी थी. उत्तराखंड से राष्ट्रपति शासन हटने के बाद कांग्रेस को 29 अप्रैल को बहुमत साबित करने का […]

देहरादून/नैनीताल/ नयी दिल्ली : उत्तराखंड में 27 मार्च से लगे राष्ट्रपति शासन को उत्तराखंड हाइकोर्ट ने हटा दिया है. पूर्व सीएम हरीश रावत ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती दी थी. उत्तराखंड से राष्ट्रपति शासन हटने के बाद कांग्रेस को 29 अप्रैल को बहुमत साबित करने का मौका मिलेगा. उधर हाइकोर्ट के इस फैसले के बाद से हरीश रावत के घर में जश्न का माहौल बन गया. उनके समर्थकों में उत्साह की लहर दौड़ गयी. हाइकोर्ट के इस फैसले के बाद से जहां कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में उत्साह का माहौल हैं वहीं भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय बीजेपी के प्रवक्ताओं के साथ बैठक कर रहे हैं. उधर केंद्र सरकार के अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने बताया कि सरकार कल 10 बजे सुप्रीम कोर्ट जायेगी और हाइकोर्ट के फैसले को चुनौती देगी.

उत्तराखंड हाई कोर्ट ने बागियों की सदस्यता रद्द करने का फैसला सुनाते हुए कहा, बागियों ने जो संवैधानिक पाप किया है उसकी सजा उन्हें भुगतनी होगी. उच्च न्यायालय ने कहा, नौ विद्रोही कांग्रेस विधायकों की किस्मत राष्ट्रपति शासन लगाने के मामले से पूरी तरह असंगत और असंबद्ध है. नौ विद्रोही कांग्रेस विधायकों को अयोग्य हो कर दलबदल का ‘‘संवैधानिक गुनाह’ करने की कीमत चुकानी पडेगी.उच्च न्यायालय ने कहा, राष्ट्रपति शासन लागू करने की तारीख के दिन की यथास्थिति बहाल की जाए.

उच्च न्यायालय ने केंद्र के स्थगन आग्रह को ठुकरा दिया. ‘‘हम अपना फैसला खुद स्थगित नहीं कर सकते. आप इसपर स्थगन के लिए उच्चतम न्यायालय जा सकते हैं.उच्च न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रपति शासन लगाने का आधार उपयुक्त नहीं है. हाई सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विपरीत उत्तराखंड में धारा 356 लागू किया गया.

हरीश रावत ने कहा अंतत : सत्य की जीत हुई

हाइकोर्ट के इस फैसले के बाद हरीश रावत ने कहा अंतत : सत्य की जीत हुई. उन्होंने भाजपा पर आरोप लगाते हुए कहा कि सत्ता और धनबल से दलबदल करवाया गया. विधानमंडल पर चंद कदम की दूरी पर जब हम विश्वासमत हासिल करने जा रहे थे. उस दौरान राष्ट्रपति शासन लगवाया गया. एक लोकप्रिय, जनप्रिय आम बजट को रद्दी की टोकरी में डाल दिया था. खासकर दो महीने हमें बहुत नुकसान उठाना पड़ा. मार्च- अप्रैल का महीना किसी भी राज्य के लिए बेहद अहम होता है. उच्च न्यायलय का आदेश घाव में मरहम की तरह है.राज्य की जनता से कहना चाहूंगा सब भूलकर आगे देखें. यह वक्त जश्न मनाने का नहीं है, यह वक्त राज्य के प्रति अपनी कर्तव्यों को निभाने का है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार से किसी तरह का कटुता नहीं है.

कल हाइकोर्ट ने कहा था राष्ट्रपति भी गलती कर सकते हैं
उधर कल उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाये जाने के मामले की सुनवाई करते हुए नैनीताल हाइकोर्ट ने आज कहा कि राष्ट्रपति भी गलती कर सकते हैं और वे कोई राष्ट्रपति शासन का निर्णय किसी राजा का निर्णय नहीं है कि उसकी समीक्षा नहीं हो सकती है. हाइकोर्ट की बेंच ने कहा कि अगर राष्ट्रपति के फैसले गलत हो सकते हैं तो हर विषय की न्यायिक समीक्षा हो सकती है. अदालत ने कहा कि हम राष्ट्रपति के विवेक व बुद्धिमत्ता पर संदेह नहीं कर रहे हैं, लेकिन सबकुछ न्यायिक समीक्षा के तहत आता है. यह टिप्पणी नैनीताल हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने की है.

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