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आईआरएनएसएस-1जी: जानें क्या है इसका महत्व

चेन्नई : देश के सातवें और अंतिम नौवहन उपग्रह के प्रक्षेपण के लिए जारी उल्टी गिनती आज खत्म हो गई. इस नौवहन उपग्रह के प्रक्षेपण आज अपराह्न् भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के श्रीहरिकोटा प्रक्षेपण केंद्र से किया गया. इसरो ने इस संबंध में जानकारी देते हुए कहा कि 44.4 मीटर लंबा और 320 टन […]

चेन्नई : देश के सातवें और अंतिम नौवहन उपग्रह के प्रक्षेपण के लिए जारी उल्टी गिनती आज खत्म हो गई. इस नौवहन उपग्रह के प्रक्षेपण आज अपराह्न् भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के श्रीहरिकोटा प्रक्षेपण केंद्र से किया गया. इसरो ने इस संबंध में जानकारी देते हुए कहा कि 44.4 मीटर लंबा और 320 टन वजनी यह ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) ने गुरुवार अपराह्न् 12 बजकर 50 मिनट पर भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (आईआरएनएसएस-1जी) के साथ अंतरिक्ष के लिए उड़ा भरा.

20 मिनट की उड़ान
करीब 20 मिनट की उड़ान में यह यान 1,425 किलोग्राम वजनी आईआरएनएसएस-1जी उपग्रह को 497.8 किलोमीटर की ऊंचाई पर कक्षा में स्थापित करने में सफलता प्राप्त करेगा. आपको बता दें कि पीएसएलवी ठोस तथा तरल ईंधन द्वारा संचालित चार चरणों/इंजन वाला एक प्रक्षेपण यान है. यह उपग्रह, आईआरएनएसएस-1जी (भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली-1जी) के सात उपग्रहों के समूह का हिस्सा है.

क्या है उद्देश्य
आईआरएनएसएस-1जी उपग्रह उपयोगकर्ताओं के लिए 1,500 किलोमीटर तक के विस्तार में देश और इस क्षेत्र की स्थिति की सटीक जानकारी देगा. अब तक भारत के द्वारा छह क्षेत्रीय नौवहन उपग्रहों (आईआरएनएसएस -1 ए, 1बी, 1सी, आईडी, 1ए और 1जी) का प्रक्षेपण किया जा चुका है.

उपग्रह की लागत

बताया जा रहा है कि प्रत्येक उपग्रह की लागत 150 करोड़ रुपये के करीब है. वहीं पीएसएलवी-एक्सएल प्रक्षेपण यान की लागत 130 करोड़ रुपये के लगभग है. सातों प्रक्षेपण यानों की कुल लागत करीब 910 करोड़ रुपये बतायी जा रही है. यदि सब कुछ सुचारु रूप से हुआ चला तो समग्र आईआरएनएसएस प्रणाली के सातों उपग्रह आज सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित हो जाएंगे.

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