।। स्वामीशांतात्मानंद।।
(सचिव,रामकृष्णमिशनआश्रम,नयीदिल्ली)
1897 में विवेकानंद द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन आज भी न सिर्फ जीवित है, बल्कि दुनिया के लाखों लोगो के लिए उम्मीद का केंद्र बना हुआ है. यह संगठन शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सामाजिक क्षेत्रों में अपने अथक सेवा कार्यो के लिए दुनियाभर में अपना खास और सम्मानित स्थान रखता है. देश की राजधानी दिल्ली में स्थित रामकृष्ण मिशन आश्रम में भी इस सेवा भावना के साकार रूप को देखा जा सकता है. दिल्ली आश्रम के सचिव स्वामी शांतात्मानंद पिछले चालीस साल से बतौर संन्यासी मठ में हैं और लगातार स्वामी विवेकानंद के विचारों को आगे बढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं. वर्तमान में रामकृष्ण मिशन की स्थापना के उद्देश्य और स्वामी विवेकानंद के विचारों का किस तरह निर्वाह हो रहा है, जैसे सवालों पर स्वामी शांतात्मानंद से प्रीति सिंह परिहार की बातचीत के मुख्य अंश..
-स्वामी विवेकानंद ने कहा था ‘दरिद्र देवो भव:’. वे आम जन की सेवा को ही धर्म मानते थे. आज उनके इस विचार का किस तरह से निर्वाह होते देखते हैं?
समाज में लोग जैसे-जैसे स्वामी विवेकानंद जी के विचारों से प्रभावित हुए हैं, वैसे-वैसे परिवर्तन आया है. हिंदू धर्म शास्त्र में शुरू से सेवा का संदेश था लेकिन पहले लोग सेवाकार्य को दूसरी तरह से देखते थे. जो लोग साधक बनते थे, आध्यात्मिक दिशा में चलना चाहते थे, उनकी धारणा थी कि कर्म से दूर रहना चाहिए. इसलिए वे कर्म छोड़ कर, वानप्रस्थ होकर संन्यासी की तरह रहते थे. लेकिन, स्वामी विवेकानंद ने कहा कि धरती पर मानव सेवा के अनेक प्रयोजन हैं. क्यों न, हम ऐसा कुछ करें कि हर काम मनुष्य को भगवान की तरफ ले जाये. इसका आधार बनी वह शिक्षा, जो उन्हें श्रीरामकृष्ण परमहंस से मिली. वे जब श्रीरामकृष्ण देव के घर दक्षिणोश्वर गये, तो सिर्फ नरेंद्रनाथ थे. श्रीरामकृष्ण ने उन्हें वैष्णव धर्म के बारे में बाताया. वैष्णव धर्म में तीन प्रधान चीजें हैं. भगवान के नाम में रुचि, जीव पर दया और वैष्णव सेवा. श्रीरामकृष्ण, भगवान के नाम में रुचि और जीव पर दया बोल कर समाधिष्ट हो गये. नरेंद्र ने सोचा यह कैसे संभव है, जीव इतना छोटा है, इतना सूक्ष्म है, कीट के समान है, उस पर कैसे कोई दया दिखायेगा? यह दया नहीं है, सेवा है, शिव ज्ञान से जीव सेवा. हर जीव में भगवान के दर्शन करके उसकी सेवा करना. नरेंद्र ने कहा कि मैंने आज नयी शिक्षा प्राप्त की. भगवान मुङो समय दें, तो मैं सारे जगत के सामने यह प्रकट कर दूंगा. इसलिए उन्होंने पूरे भारत में घूम कर देखा कि देश की क्या स्थिति है? देश का उद्धार कैसे होगा? वह जब अमेरिका से धर्म सम्मेलन में भाग लेकर वापस आये, तो उसी समय उन्होंने ‘अपनी मुक्ति के लिए, जगत के कल्याण के लिए’ रामकृष्ण मिशन की स्थापना की. रामकृष्ण से उन्होंने जो शिक्षा प्राप्त की थी, उसमें मिशन को ढाला. यह बताया कि इस सृष्टि के माध्यम से हम जो भी काम करें, स्कूल या अस्पताल चलाएं, राहत कार्य करें, रैन बसेरे बनायें, सबके साथ आध्यात्मिक भाव रखें. ‘मैं ऊंचा हूं,’ ‘किसी के लिए कर रहा हूं’, जैसी सोच अहंकार है. ‘मेरे सामने जो है, वह भगवान का स्वरूप है, भगवान का प्रकाश है’, ऐसी सोच की साथ की गयी सेवा ही सच्ची साधना होगी. इस वजह से, देश के सारे अखाड़ों और संन्यासियों की, जो कर्म को बंधन समझते थे, धीरे-धीरे सोच बदली है और वे भी सेवा कार्यो में संलग्न हो गये हैं. इस सोच के साथ कि ऐसा करने से पवित्रता आयेगी. आज भारत में जितना सेवा कार्य होता है, ज्यादा से ज्यादा ऐसी संस्थाएं ही कर रही हैं. मेरे ख्याल से यह सब स्वामी जी के प्रभाव से हुआ है.
-मिशन की स्थापना जिस उद्देश्य के साथ हुई थी, उन उद्देश्यों को पूरा करने के सामने किस तरह की चुनौतियां हैं?
एक वक्त ऐसा था, जब स्वामी जी की बातें बड़े पैमाने पर लोग न सिर्फ सुनते थे, अपने जीवन में उनका अनुसरण भी करते थे. लेकिन, आज हम देश का दूसरा चेहरा देख रहे हैं. उनके सपनों का भारत साकार नहीं हुआ, उनके संदेश को लोग भूल गये. जैसे आजादी प्राप्त करके, आजादी के महत्व को भूल गये. आजादी दिलानेवालों को भूल गये. भोगवाद हावी हो गया, इसलिए आज देश की यह हालत हो गयी है. लेकिन स्वामी जी के 150वीं जयंती वर्ष में देश भर में जिस तरह से कार्यक्रम हुए, मैंने देखा कि फिर से एक तरह का पुनर्जागरण हो रहा है. हजारों-हजार युवक इन कार्यक्रमों में शामिल हुए. मिशन के उद्देश्यों से जुड़े. इसलिए मुङो लगता है कि युवा पीढ़ी में दोबारा एक नयी चेतना आ रही है. युवाओं में जन सेवा, देश सेवा की भावना जागृत हो रही है. मिशन की कोशिश है कि अधिक से अधिक युवा स्वामी विवेकानंद के उद्देश्यों में सहभागी बनें. मुङो विश्वास है कि स्वामी जी का भारत को गौरवपूर्ण राष्ट्र बनाने का सपना जरूर पूरा होगा. इस दिशा में मिशन आगे बढ़ रहा है. लगातार यूथ प्रोग्राम कर रहा है. यूथ फोरम बनाये गये हैं, जिनमें नियमित रूप से युवाओं से चरचा की जाती है कि कैसे इस मानव सेवा की दिशा में आगे बढ़ा जाये. युवाओं के संशयों का समाधान किया जाता है.
-आज समाज में किस तरह के बदलाव की विशेष तौर पर जरूरत लगती है आपको?
भारत को युवाओं का देश कहा जा रहा है. इसलिए इस समय ज्यादा से ज्यादा युवाओं के बारे में ही सोचने की जरूरत है. युवाओं में वैचारिक दृष्टि से एक बड़े परिवर्तन की आवश्यकता है और रामकृष्ण मिशन मानस परिवर्तन की दिशा में काम कर रहा है. सब जानते हैं कि एक रात में कुछ नहीं बदलता, इसलिए बदलाव आने में समय लगेगा, लेकिन इसकी शुरुआत देश में हो चुकी है. पांच-छह साल बाद इसका आकलन कर सकते हैं कि असल में इसमें कितनी सफलता मिली या नहीं मिली, तो क्या वजहें थीं? लेकिन लगातार प्रयास से बदलाव जरूर आयेगा.
–आपको नहीं लगता कि आज नैतिक शिक्षा पर विशेष जोर देने की आवश्यकता है?
स्वामी विवेकानंद कहते थे कि तमस में डूब कर आदमी सोया रहता है. पहले उसे जगाना होगा. रजस में आते समय भी दिक्कतें आयेंगी, लेकिन जब वह सतोगुण की तरफ आयेगा, तो स्थितियां सुधरेंगी. आज समाज की हालत ऐसी इसलिए है, क्योंकि लोगों के पास अचानक से बहुतायत में धन आया है. तथाकथित विकास का प्रभाव है. इसलिए समाज में विसंगतियां बढ़ी हैं. लेकिन लोग धीरे-धीरे स्वामी विवेकानंद की बतायी राह की और लौट रहे हैं और लौटेंगे. इसके लिए सबको मिल कर काम करना होगा .
-वर्तमान परिदृश्य में स्वामी विवेकानंद की शिक्षा किस तरह प्रासंगिक है?
अगर देश की पूरी शिक्षा पद्धति वैसी कर दें, जैसा स्वामी विवेकानंद कहते थे, तो भारत आज जिन समस्याओं से जूझ रहा है, वो पंद्रह-बीस साल के अंदर पूरी तरह समाप्त हो जायेंगी. स्वामी जी ने कहा, शिक्षा में सशक्तीकरण भी शामिल होना. शिक्षा ऐसी हो, जो विद्यार्थियों को सशक्त बनाये. लेकिन शिक्षा प्राप्त करके अवसाद में जाना, आत्महत्या करना, नौकरी न मिलना, जैसी चीजें बताती हैं कि यह पद्धति ठीक नहीं है. स्वामी जी ने कहा है, आपके अंदर जो शक्ति विद्यमान है, उसे बाहर निकालना ही शिक्षा है. अंदर की पूर्णता का प्रकाश शिक्षा है. लेकिन लॉर्ड मैकाले जो छोड़ शिक्षा पद्धति छोड़ कर कर गये, देश में वही चली आ रही है. इसे बदलना होगा. शिक्षा पद्धति ऐसी हो, जो आपके स्वरूप और देश के बारे में बताये. कैसे जीवन-यापन करना चाहिए, यह बताये. वैसे अब एक तरह का जन जागरण सब जगह आ रहा है. राजनीति में इस बदलाव को देखा जा सकता है. हालांकि रामकृष्ण मिशन कभी राजनीति में भाग नहीं लेता. कभी किसी दल के समर्थन में नहीं खड़ा होता है, सब यह बात जानते हैं. लेकिन आम आदमी पार्टी की दिल्ली चुनाव में जीत संकेत है नव जागरण का. पहले दो दिन में चीजों को इधर-उधर करके बदल दिया जाता था. अब किसी का साहस नहीं है कि ऐसा कर ले. सबको पकड़े जाने का डर है. बड़े पैमाने पर पढ़े-लिखे युवा देश में व्यवस्था परिवर्तन के लिए आगे आये हैं. मैं नहीं जानता कि इस पार्टी का भविष्य क्या होगा, आगे क्या योजना है, क्या कर पायेंगे, मैं इस सबमें नहीं जाऊंगा. मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता, लेकिन एक तरह का जागरण तो दिख ही रहा है.
-रामकृष्ण मिशन वर्तमान में किस तरह से काम कर रहा है?
तकरीबन एक करोड़ अस्सी लाख छात्र विभिन्न जगहों पर मिशन के माध्यम से शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. रोज मिशन के अस्पतालों और डिस्पेंसरियों में बड़े पैमाने पर लोगों को मुफ्त चिकित्सा सेवा मुहैया करायी जाती है. स्कूल, कॉलेज, नॉन फॉर्मल एजुकेशन, ट्रेनिंग फॉर यंगस्टर्स ऐसे बहुत से काम मिशन कर रहा है.
-आर्थिक चुनौतियां भी होंगी?
सरकार की सहायता और डोनेशन से कम से कम खर्च पर मिशन अपने सेवा कार्य को आगे बढ़ा रहा है. बहुत से लोग नि:शुल्क सेवा देते हैं. दिल्ली में ही करीब सत्तर डॉक्टर रजिस्टर्ड हैं रामकृष्ण मिशन की डिस्पेंसरी में, जो यहां आकर नि:शुल्क मरीजों को देखते हैं. कुछ मात्र आने-जाने का किराया लेकर यहां सेवा देते हैं. कोलकाता में इस तरह से दो सौ- तीन सौ डॉक्टर जुड़े हैं.
-कुछ कट्टरवादी हिंदू संगठन स्वामी विवेकानंद को अपने साथ जोड़कर देखते हैं. इस पर क्या कहेंगे?
स्वामी विवेकानंद ने पहली धर्म महासभा से लेकर अपने पूरी जीवनकाल तक समन्वय और समानता की बात की, फिर वह कट्टरवादी कैसे हो सकते हैं? लेकिन, वह चाहते थे कि हिंदुओं के अंदर पुनर्जागरण हो. हिंदुत्व में क्या है, वे यह जानें. दरअसल, हिंदुत्व की समस्या हिंदुत्व के अंदर से ही है. आप उत्तर प्रदेश जाएं, दक्षिण में देखें, अब भी लोगों के व्यवहार में छुआ-छूत की भावना हावी है .
इस वजह से ही धर्मातरण होता है. हिंदुत्व अगर स्वयं में मजबूत हो जायेगा, तो कोई और उसे नुकसान नहीं पहुंचा सकता. इसलिए स्वामी जी ने कहा था कि अपना धर्म क्या है, इसे आप अच्छे से समझो. अगर आप अपने धर्म के बारे में कुछ नहीं समझते हैं और झंडा उठा कर दूसरे से झगड़ते हैं, तो इसका कोई फायदा नहीं. आप पूछिए, हिंदुत्व को माननेवाले कितने लोग सभी जातियों के लोगों के साथ बैठ कर भोजन करने के लिए तैयार हैं? छुआ-छूत की भावना त्यागने के लिए कितने तैयार हैं? अगर वे इसके लिए तैयार हैं, तो समस्या अपने आप ही हल हो जायेगी.
-मौजूदा समय में बच्चों के चरित्र निर्माण के लिए क्या किये जाने की खास आवश्यकता है?
चरित्र निर्माण के लिए रामकृष्ण मिशन ने बहुत से कार्यक्रम किये हैं. वैल्यू एजुकेशन प्रोग्राम्स अभी भी चल रहे हैं. इसके लिए 7वीं, 8वीं और 9वीं कक्षा के छात्रों को चुना गया है. इससे छोटी कक्षा के छात्र इस शिक्षा को ग्रहण करने के लिहाज से बहुत छोटे हैं और दसवीं से छात्रों की व्यस्तता बढ़ जाती है. इन कक्षाओं के छात्रों की उम्र बेस्ट है नैतिक शिक्षा के लिए. इसमें धार्मिक उपदेश नहीं दिये जा रहे हैं. ये करो, ये न करो नहीं बताया जा रहा है. यह प्रयास किया जा रहा है कि छात्र स्वयं अपने भीतर की शक्ति को पहचानें. स्वयं उसका आविष्कार करें. इसमें स्वामी जी का मूल विचार,’आपके अंदर जो पूर्णत: है, उसका विकास ही शिक्षा है’ को आगे बढ़ाया जा रहा है. आप के अंदर सब कुछ है, बच्चों में यह विश्वास जगाने का काम किया जा रहा है. अभी दिल्ली में सीबीएसी ने इसे अपने यहां शुरू कर दिया है. अब मिशन पूरे भारत में यह कार्यक्रम कराने के लिए प्रयासरत है. इसी क्रम में भोपाल में 15 जनवरी को स्कूल के प्रिंसपिलों को वैल्यू ऐजुकेशन कार्यक्रम के बारे में बताने के लिए एक वर्कशॉप का आयोजन किया जा रहा है. दिल्ली में दिसंबर में यह वर्कशॉप हुई थी, जिसमें पांच सौ प्रिसिंपल शामिल हुए थे. इस प्रोग्राम के बाद ढाई सौ स्कूलों ने तुरंत सुनिश्चित किया कि इस प्रशिक्षण को अगले साल अपने-अपने स्कूल में शुरू करेंगे.
-स्वामी विवेकानंद जी की विचार-सेवा परंपरा का निर्वाह किस तरह से हो रहा है?
रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना 1897 में हुई थी. 116 साल हो गये, अभी भी यह अटूट है और अपने उद्देश्य में आगे बढ़ रहा है. मठ के संन्यासी स्वामी जी की परंपरा का पूरी निष्ठा से निर्वाह कर रहे हैं और उनके बताये मार्ग पर चल रहे हैं.