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शत्रु संपत्ति कानून में संशोधन के सरकार के कदम को रास में मंजूरी के आसार नहीं

नयी दिल्ली : मोदी सरकार के, 48 साल पुराने शत्रु संपत्ति कानून को संशोधित करने के प्रयास को राज्यसभा में मंजूरी मिलने के आसार नहीं हैं क्योंकि इस कदम का विरोध कर रहे चार राजनीतिक दलों का कहना है कि मूल कानून संतुलित था और इसमें किए जा रहे बदलाव प्राकृतिक न्याय के आधारभूत सिद्धांत […]

नयी दिल्ली : मोदी सरकार के, 48 साल पुराने शत्रु संपत्ति कानून को संशोधित करने के प्रयास को राज्यसभा में मंजूरी मिलने के आसार नहीं हैं क्योंकि इस कदम का विरोध कर रहे चार राजनीतिक दलों का कहना है कि मूल कानून संतुलित था और इसमें किए जा रहे बदलाव प्राकृतिक न्याय के आधारभूत सिद्धांत का उल्लंघन है. कांग्रेस, जदयू, भाकपा और समाजवादी पार्टी का कहना है कि प्रस्तावित परिवर्तन से लाखों भारतीय नागरिकों को एक तरह से सजा मिलेगी और किसी ‘‘शत्रु सरकार” पर कोई प्रभाव नहीं पडेगा.

चार राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों जदयू के केसी त्यागी, कांग्रेस के पी एल पुनिया, के. रहमान खान और हुसैन दलवई, भाकपा के डी राजा और सपा के जावेद अली खान ने शत्रु संपत्ति कानून 1968 में संशोधनों पर प्रवर समिति में अपनी असहमति की टिप्पणियां दी हैं. यह रिपोर्ट शुक्रवार को राज्यसभा में पेश की गई. असहमति टिप्पणियों में कहा गया है ‘‘वर्तमान विधेयक 2016 के प्रावधान पूर्वकथित सिद्धांतों के उलट हैं और अगर इन्हें कानून 1968 में शामिल करने की अनुमति दी गई तो न केवल पूरा संतुलन गडबडा जाएगा बल्कि यह कानून की अदालत में भी टिकाउ नहीं होगा। इसलिए हम यह असहमति टिप्पणी इस आग्रह के साथ दे रहे हैं कि इसे समिति की रिपोर्ट के हिस्से की तरह देखा जाए।” सांसदों ने कहा है कि उनके विचार से, वर्तमान विधेयक के प्रावधान प्राकृतिक न्याय के मूलभूत सिद्धांतों , मानवाधिकारों और स्थापित कानून के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं. इसके प्रतिकूल प्रभाव पडेंगे जिसके कारण लाखों भारतीय नागरिकों को एक तरह से सजा मिलेगी और इसका किसी शत्रु सरकार पर कोई असर नहीं पडेगा.

सरकार ने शत्रु संपत्ति कानून में संशोधन के लिए अप्रैल माह में अध्यादेश जारी किया था ताकि लडाइयों के बाद दूसरे देशों, ज्यादातर पाकिस्तान चले गए लोगों द्वारा छोडी गई संपत्ति के स्थानांतरण अथवा उत्तराधिकार के दावों की निगरानी की जा सके. राजग सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है. इसलिए प्रस्तावित संशोधन को उच्च सदन में मंजूरी मिलने के आसार नहीं हैं. वैसे भी चार दल इसका विरोध कर रहे हैं.

केंद्र ने पाकिस्तान के नागरिकों के स्वामित्व वाली कुछ संपत्तियों को वर्ष 1962, 1965 और 1971 की लडाइयों के बाद शत्रु संपत्ति का दर्जा दे दिया था. इसके कारण ये संपत्तियां केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाले ‘‘कस्टोडियन ऑफ एनिमी प्रॉपर्टी फॉर इंडिया” के तहत चली गईं. शत्रु संपत्ति कानून 1968 इन शत्रु संपत्तियों का नियमन करता है और कस्टोडियन के अधिकारों के बारे में बताता है. वर्ष 1965 और 1971 में हुए भारत पाक युद्धों के बाद बडी संख्या में लोग भारत से पाकिस्तान गए थे। भारत के रक्षा कानून के तहत बनाए गए भारत के रक्षा नियमों के अनुसार, पाकिस्तान जा कर वहां की नागरिकता ले चुके ऐसे लोगों की संपत्तियां और कंपनियां सरकार ने अपने अधिग्रहित कर ली थीं.

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