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सिकल सेल को काबू में करने के लिए नई टेलीमेडिसीन सेवा

अहमदाबाद : गुजरात सरकार ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के साथ मिलकर सिकल सेल बीमारी से जूझ रहे नवजातों के परिवारों को फोन पर चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने की अनूठी पहल शुरु की है.सिकल सेल बीमारी (एससीडी) हीमोग्लोबीन से जुड़ी है. यह एचबीएस नामक असमान्य जीन की मौजूदगी के कारण होती है. दक्षिण गुजरात […]

अहमदाबाद : गुजरात सरकार ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के साथ मिलकर सिकल सेल बीमारी से जूझ रहे नवजातों के परिवारों को फोन पर चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने की अनूठी पहल शुरु की है.सिकल सेल बीमारी (एससीडी) हीमोग्लोबीन से जुड़ी है. यह एचबीएस नामक असमान्य जीन की मौजूदगी के कारण होती है. दक्षिण गुजरात की जनजातीय आबादी के बीच इसकी मौजूदगी पायी गयी है. गैर सरकारी संगठन(एनजीओ) वलसाड रक्तदा केंद्र :वीआरके: के सचिव डॉक्टर याजदी इटालिया ने बताया कि कम से कम 44 जनजातीय परिवारों के एससीडी से पीड़ित नवजातों को मोबाइल फोन की मदद से उपचार हो रहा है.

उन्होंने कहा, ‘‘हमारे पास एससीडी से पीड़ित मरीजों के बारे में सही इतिहास नहीं उपलब्ध है क्योंकि डॉक्टरों को इस बीमारी से जुड़े आंकड़ों का पता नहीं है. इसलिए, हमने पिट्सबर्ग के बाल अस्पताल के साथ हाथ मिलाया है और 5000 नवजातों की जांच की जिसमें 44 में एससीडी के बारे में पता चला.’’ उन्होंने कहा कि ‘इन नवजात शिशुओं के परिवारों को मोबाइल फोन दिया गया है जिससे कि आपात स्थिति में वे हमें फोन कर सके और खुद घर पर उपचार कर सके. हम उन्हें फोन करेंगे और आवश्यक सुझाव देंगे.’

आईसीएमआर-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोहेमाटोलॉजी के निदेशक डॉ. कंजांक घोष के मुताबिक वर्तमान अध्ययन परियोजना के तहत सिकल सेल बीमारी से जूझ रहे नवजातों पर पांच साल तक नजर रखी जाएगी. घोष ने बताया कि देश में पहली बार इस तरह की अध्ययन परियोजना शुरु की गयी है. अध्ययन परियोजना पूरा होने के बाद भारत में सिकल सेल बीमारी के बारे में पूरी जानकारी मिल पाएगी. आम तौर पर एससीडी की मौजूदगी मलेरिया से प्रभावित क्षेत्रों में देखी गयी है. दक्षिण गुजरात का जनजातीय समुदाय इसका अपवाद नहीं है और सिकल जीन की उच्च मौजूदगी पायी गयी है.

सिकल सेल एनीमिया पर 1978 से काम कर रहे और आईसीएमआर अध्ययन परियोजना के सह जांचकर्ता, सिकल सेल कार्यक्रम के अगुवा डॉ. इटालिया ने कहा कि अगर सिकल जीन के बारे में सभी जनजातीय लोगों की रक्त की जांच नहीं की जाती तो उपचार गलत होता. आंकड़ों के मुताबिक, पूरी दुनिया में एससीडी से पीड़ित 20 प्रतिशत लोगों की 20 वर्ष की आयु तक मौत हो जाती है.

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