गुजरात में ही पकड़ा गया 2002 के गोधरा कांड का मास्टरमाइंड फारुक

अहमदाबाद : गुजरात एटीएस ने 2002 के गोधरा कांड के मास्टरमाइंड फारुक भाणा काे गिरफ्तार कर लिया है. 14 साल बाद गिरफ्तार हुए भाणा पर आरोप है कि उसने ही 27 फरवरी 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में आग लगाने के लिएपेट्रोलियमउपलब्ध कराया था. गुजरात पुलिस को उसकी तभी से तलाश थी. बीच […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 18, 2016 12:54 PM

अहमदाबाद : गुजरात एटीएस ने 2002 के गोधरा कांड के मास्टरमाइंड फारुक भाणा काे गिरफ्तार कर लिया है. 14 साल बाद गिरफ्तार हुए भाणा पर आरोप है कि उसने ही 27 फरवरी 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में आग लगाने के लिएपेट्रोलियमउपलब्ध कराया था. गुजरात पुलिस को उसकी तभी से तलाश थी. बीच में यह भी खबर आयी कि वह भाग कर पाकिस्तान चला गया. पर, अब गुजरात एटीएस ने उसे गिरफ्तार कर लिया है.

बीबीसी ने गुजरात पुलिस के एटीएस के प्रमुख हिमांशु शुक्ल के हवाले से खबर दी है कि फारुक भाणा गोधरा कांड का मुख्य अभियुक्त है. ट्रेन में आग लगाने के लिए फारुक ने पेट्रोल बम का इंतजाम किया था और घटना के बाद वह फरार हो गया था.
पुलिस के अनुसार, पहले यह जानकारी मिली थी कि फारुक पाकिस्तान भाग गया है, लेकिन वाे हाल में गुजरात लौट आया था. इसके बाद वह कलोल में छिपा हुआ था. जैसे पुलिस को जानकारी मिली उसे गिरफ्तार कर लिया गया. ध्यान रहे कि कलोल गुजरात के पंजमहाल जिले में पड़ता है और इसी जिले में गोधरा भी आता है.

क्या हुआ था गोधरा में?

गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन जिस पर कारसेवक सवार थे ट्रेन में आग लगायी गयी थी. आग एस – 6 बोगी में लगायी गयी थी, जिसमें 59 कारसेवकों की मौत हो गयी थी. इसके अगले दिन गुजरात में दंगा भड़क गया. दंगे में 1200 से अधिक लोग मारे गये. लंबी जांच व अदालती कार्रवाई के बाद 2011 में विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 11 को फांसी व 20 को उम्रकैद की सजा सुनायी थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने चार अप्रैल 2002 को जलायी गयी ट्रेन का स्वयं मुआयना भी किया था. इस कांड की जांच के लिए विभिन्न आयोग व समितियां बनायी गयीं.

गोधरा कांड के बाद इस केस के अहम मोड़


छह मार्च को गुजरात सरकार ने कमीशन ऑफ इन्क्वायरी एक्ट के तहत गोधरा कांड व बाद की घटनाओं की जांच के लिए आयोग बनाया.


लालू प्रसाद के रेलमंत्री रहते 2004 में केंद्रीय कैबिनेट के फैसले के आधार पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश यूसी बनर्जी की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया. 2006 में गुजरात उच्च न्यायालय यूसी बनर्जी समिति को अवैध व असंवैधानिक बताया, क्योंकि नानावटी-शाह आयोग पहले से दंगों के मामलों की जांच कर रहा है.


2008 में नानावटी आयोग ने गोधरा कांड की जांच सौंपी और कहा कि यह पूर्व नियोजित षड्‍यंत्र था और एस6 कोच को भीड़ ने पेट्रोल डालकर जलाया था.


2010 में गोधरा कांड की सुनवाई पूरी हुई और 2011 में फैसला आया, इस मामले में 31 लोगों को दोषी पाया गया और 63 को बरी किया गया. 31 दोषी लोगों में 11 को फांसी व 20 को उम्रकैद की सजा सुनायी गयी.

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